बागवान
बागवान… इसलिए बच्चों को सदैव पत्र पत्रिकाओं को केवल मनोरंजन के लिए या खाली समय व्यतीत करने के लिए ही नहीं पढना चाहिए अपितु उन्हें पढ कर श्रेष्ठ विचारों और शब्दों को सीख कर अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए। ये उत्तम विचार और शब्द ही बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होते हैं . #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
रचनाकार एक बागवान (माली) के समान होता है। जिस प्रकार एक बागवान अपने बगीचे में तरह तरह के पुष्प तैयार कर उनकी खेती करता है और पुष्पों की सुंदर सुंदर मालाएं बना कर बाजार में बिकने के लिए भेजता हैं ठीक उसी प्रकार एक रचनाकार विभिन्न प्रकार के शब्दों को अपने शब्द कोष में रखता है और फिर उन्हें लिखते समय सही स्थान पर सही शब्दों का इस्तेमाल कर एक सुन्दर सी रचना तैयार कर उसे प्रकाशन के लिए पत्र पत्रिकाओं के सम्पादक मंडल के पास भेजता हैं।
उस सुन्दर शब्दों की माला (रचना) को पढ कर सम्पादक मंडल उसे अपनी पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित कर जन जन तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं और फिर पाठक उन रचनाओं को पढ कर व ऊनकी खुशबू लेकर (श्रेष्ठ शब्दों व विचारों को आत्मसात करके) उन पर अपनी प्रतिक्रिया स्वरूप अपने विचार व्यक्त करके रचनाकारों का हौसला अफजाई करते हैं वहीं दूसरी ओर ये प्रतिक्रियाएं रचनाकारों के लेखन में सहायक सिद्ध होती है।
इसलिए बच्चों को सदैव पत्र पत्रिकाओं को केवल मनोरंजन के लिए या खाली समय व्यतीत करने के लिए ही नहीं पढना चाहिए अपितु उन्हें पढ कर श्रेष्ठ विचारों और शब्दों को सीख कर अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए। ये उत्तम विचार और शब्द ही बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होते हैं और उस बागवान (रचनाकार) का पुष्प उगाना (लेखन) सार्थक सिद्ध होता हैं।
राज्य निगम कर्मचारी अधिकारी महासंघ की शासन के साथ विधिवत वार्ता…