कहानी : अगले जन्म मोहे… (भाग – IV)
कहानी : अगले जन्म मोहे… प्रकाश ने गुस्से से प्रताप की तरफ़ देखा तो वहीं नीलिमा के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं। बस रीमा ही अकेली सबके चेहरे देख कर मुस्कुरा रही थी। प्रताप ने गुस्से में उस से कहा, “क्या बकवास कर रही हो रीमा? अपना मुंह बंद रखो”। मगर रीमा कहां सुनने वाली थी, वो तो कई दिन से इस क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी। उसने पलटकर जवाब दिया, “ झूठ क्या कहा मैंने? इसे मैंने ही पैदा किया है ना तो मैं ही इसकी मां हुई”। #गीतिका सक्सेना, मेरठ कैंट, उत्तर प्रदेश
यह समय बस उन चारों का अपना होता था और कोई पाँचवाँ इस में शामिल नहीं होता था। और इस साल तो वो दोहरा जश्न मना रहे थे। कुछ ही समय में मान की शादी उस की दोस्त, इति, से होने जा रही थी। मगर एक बार फ़िर रीमा ने प्रताप के साथ वहां पहुंचकर सबको चौंका दिया। किसी को रीमा का बेवक्त वहां पहुंचना अच्छा नहीं लगा। निकिता और मान को तो बिल्कुल नहीं। फ़िर भी सब चुप रहे। जैसे ही निकिता ने केक काटा एक बार फिर रीमा ने आगे बढ़कर उसे केक खिलाने की कोशिश की। मगर आज निकिता से चुप नहीं रहा गया। उसने तुरंत ही रीमा का हाथ रोकते हुए नीलिमा से कहा, “मम्मा, सबसे पहले आप मुझे केक खिलाओ”। अभी नीलिमा आगे बढ़ी ही थीं कि रीमा ने आग बबूला होते हुए कहा, “तुम्हारी मां ही पहले तुम्हें केक खिला रही है”। उसके इतना कहते ही जैसे कमरे में सन्नाटा छा गया। निकिता और मान को तो कुछ समझ ही नहीं आया।
प्रकाश ने गुस्से से प्रताप की तरफ़ देखा तो वहीं नीलिमा के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं। बस रीमा ही अकेली सबके चेहरे देख कर मुस्कुरा रही थी। प्रताप ने गुस्से में उस से कहा, “क्या बकवास कर रही हो रीमा? अपना मुंह बंद रखो”। मगर रीमा कहां सुनने वाली थी, वो तो कई दिन से इस क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी। उसने पलटकर जवाब दिया, “ झूठ क्या कहा मैंने? इसे मैंने ही पैदा किया है ना तो मैं ही इसकी मां हुई”। निकिता तो जैसे सन्न रह गई। नीलिमा ने आगे बढ़कर रीमा से कहा, “ये क्या कर रही हो? हम सबने फ़ैसला किया था कि इस बात को कभी उजागर नहीं करेंगे”। इसपर रीमा बोली,” हां, तब किया था लेकिन अब मैं सच निकी को बताना चाहती हूं। मैं चाहती हूं वो मुझे मां कहे और मैं भी सबके सामने उसे अपनी बेटी कह पाऊं”।
यह सुनकर नीलिमा का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उसने गुस्से से कहा, “ मां! तुम मां शब्द के नाम पर धब्बा हो रीमा। मुझे हंसी आती है तुम्हारे मुंह से ये शब्द सुनकर। जिस औरत ने अपनी औलाद की शक्ल देखने से मना कर दिया, उसे पालने से मना कर दिया सिर्फ़ इसलिए कि वो एक लड़की है। आज वो औरत उसी बच्ची की मां बनना चाहती है। समझ नहीं आ रहा हसूं या रोऊं”। “आप चाहे हंसो या रो भाभी मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे तो सिर्फ़ अपनी बेटी से मतलब है”। कहकर रीमा निकिता की तरफ़ बढ़ी और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, “निकिता बेटा मैं ही तुम्हारी मां हूं, यही सच है”। मगर निकिता तो जैसे कुछ बोलने की हालत में ही नहीं थी। उसने झटके से रीमा का हाथ अपने कंधे से हटा दिया। ये देखते ही मान ने उसे रीमा से अलग कर दिया और बोला, “आप जो कोई भी हो चाची मगर बेहतर होगा फ़िलहाल आप निकी से दूर रहें”। रीमा ने तमतमाकर कहा, “ मैं क्यों दूर रहूं? मैं सच कह रही हूं, मैंने ही इसे पैदा किया है”।
“सच” इस शब्द ने जैसे निकिता को किसी नींद से जागा दिया। उसने प्रकाश की ओर देखकर पूछा, “डैडी, मैं आपसे सच सुनना चाहती हूं। पूरा सच”। प्रताप को एक तरफ़ ये डर था कि ना जाने सच जानने के बाद निकिता क्या करेगी मगर दूसरी तरफ़ वो ये भी समझ गए थे कि अब कुछ भी छुपाने का कोई फायदा नहीं है। इसलिए उन्होंने कहना शुरू किया, “ये सच है बेटा कि रीमा और प्रताप जन्म से तुम्हारे माता पिता हैं लेकिन ये भी सच है कि इन दोनों को एक बेटा चाहिए था। जब तुम्हारा जन्म हुआ और इन्हें पता चला कि बेटी हुई है तो दोनों बहुत दुखी हो गए। ये दोनों ही एक लड़की को पालना नहीं चाहते थे, पालना तो दूर उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहते थे। हमें इन दोनों पर बहुत गुस्सा आया और हमने इन्हें समझाने की बहुत कोशिश की मगर इनका रोना पीटना बंद ही नहीं हुआ। मैं और नीलिमा हमेशा ही बेटी के लिए तरसते थे इसलिए हम दोनों ने वहीं हॉस्पिटल में तुम्हें गोद लेने का प्रस्ताव इन दोनों के सामने रखा और ये दोनों तो जैसे उस बच्ची से पीछा छुड़ाना ही चाहते थे सो तुरंत मान गए .
पैंतीस साल पहले तुम्हारे जन्म के दिन ही हमने तुम्हें गोद ले लिया और हॉस्पिटल से घर ले आए। बाकी तो सब तुम जानती ही हो”। इतना कहकर प्रकाश ने निकिता के सर पर हाथ फेरा और एक तरफ़ खड़े हो गए। वो उसे कुछ भी समझाने से पहले निकिता को समय देना चाहते थे कि वो इस सत्य से सामंजस्य स्थापित कर सके। अभी प्रकाश चुप हुए ही थे कि प्रताप ने कहा,” जो कुछ भी भाई साहब ने कहा सब सच है निकिता। मैं और रीमा कभी बेटी चाहते ही नहीं थे। जब सोचता हूं क्यों तो कोई सही जवाब नहीं आता ज़ेहन में। पहले लगता था लड़कियां सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी हैं। पढ़ाओ- लिखाओ, पालो – पोसो और शादी करके किसी दूसरे के घर भेज दो। मगर आज जब तुम्हें देखता हूं तो अपनी ही सोच बचकानी और बेवकूफी भरी लगती है। ख़ैर हम चारों ने ये फ़ैसला किया था कि इस बात को हमेशा राज़ ही रखेंगे मगर ना जाने आज रीमा के दिमाग़ में क्या फितूर उठा है, इसने क्यों ये बात छेड़ी मैं नहीं जानता”।
मान सब सुनकर गुस्से से …
यहां क्लिक करें और कहानी का अगला भाग पढ़ें…