
डॉ शशि वल्लभ शर्मा
अम्बाह जिला मुरैना ( मध्यप्रदेश)
जेठ की भोर जब अपने पैरों में अंगारे बाँधकर धरती पर उतरती है और रोहिणी नक्षत्र की आभा में सूर्य देव का प्रवेश होता है, तभी नौतपा का शुभारंभ होता है। यह वह काल है जब समय अपनी तपन में सृष्टि की सुरक्षा का सूत्र रचता है। नौतपा केवल मौसम का एक खंड नहीं, बल्कि प्रकृति की वह रहस्यमयी प्रयोगशाला है जहाँ नौ दिन की अग्नि साधना से धरती, जल, जीव, अन्न और वायु शुद्ध होते हैं। जिस प्रकार एक माता अपने गर्भ में नौ मास तक संतान को पालती है और उसी तपस्या में उसका संपूर्ण विकास संभव होता है, उसी तरह सूर्य की यह नौ दिवसीय यात्रा धरती को संतुलित और सुरक्षित बनाने का प्रयास है। यह अग्निकाल है, तपस्या है, शुद्धि है, परंतु यह ताप विनाश नहीं करता, यह ताप जीवन के लिए अनिवार्य है।
प्रथम एवं द्वितीय दिवस: नौतपा के पहले दो दिन यदि सूर्य की किरणें संकोच करें और धूप धरती को न छुए, तो यह संकेत होता है कि प्रकृति के निचले स्तर पर असंतुलन बढ़ेगा। चूहों की संख्या अचानक बढ़ने लगती है। ये छोटे जीव अनाज के भंडारों के लिए संकट बन जाते हैं और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार सूर्य की अनुपस्थिति पहला संकेत है—अन्न संकट का आरंभ।
तृतीय एवं चतुर्थ दिवस: इन दो दिनों में यदि सूर्य की तपन मद्धम हो जाए तो टिड्डियों के अंडे, जो मिट्टी में छिपे पड़े हैं, सुरक्षित रह जाते हैं। ये टिड्डियाँ ही भविष्य में उन फसलों को नष्ट कर देती हैं जिनका दाना हमारे जीवन की थाली में पड़ता है। धूप का अभाव यहाँ प्रकृति के रक्षात्मक कवच को कमजोर करता है।
पंचम एवं षष्ठ दिवस: यह दिन रोगाणुओं के अंत की घड़ी होते हैं। यदि इन दिनों सूर्य की गर्मी पर्याप्त न हो, तो मलेरिया, डेंगू और अन्य बुखार फैलाने वाले सूक्ष्म जीवाणु नष्ट नहीं हो पाते। अग्नि की यह तपन चिकित्सा है, वह ताप जो रोगों की जड़ पर प्रहार करता है। यह सूर्य की औषधीय भूमिका का प्रतीक है।
सप्तम एवं अष्टम दिवस: सूर्य की अनुपस्थिति इन दिनों विशेष रूप से संकटकारी होती है। साँप और बिच्छू जैसे विषैले जीव, जो सूर्य की गर्मी से सीमित रहते हैं, उसकी अनुपस्थिति में निर्भय होकर उग्र हो जाते हैं। ये जीव प्रकृति की विषैली धाराएँ हैं, जिनका संतुलन आवश्यक है।
नवम दिवस: नौतपा का अंतिम दिन निर्णायक होता है। यदि इस दिन भी सूर्य की धूप पृथ्वी पर नहीं पड़ती, तो वायुमंडल में संतुलन भंग हो जाता है। आंधियों और तूफानों का तांडव आरंभ होता है, जिससे खेत की खड़ी फसलें तक नष्ट हो जाती हैं। यह ताप का अभाव, हवा के रुख को उन्मत्त कर देता है।
नौतपा का आध्यात्मिक संदेश: नौतपा केवल जलवायु चक्र नहीं, यह एक चेतना है जो हमें प्रकृति के संतुलन की आवश्यकता का बोध कराती है। यह बताती है कि समय पर, सीमित मात्रा में, और उचित स्थान पर तपन भी जीवन के लिए उतना ही आवश्यक है जितनी शीतलता। इस वर्ष 25 मई से नौतपा का यह काल प्रारंभ हो रहा है। यह समय है तप का, ध्यान का, संयम का और संवेदना का। प्रकृति को देखने, समझने और उससे एकाकार होने का। आइए, इन नौ दिनों में सूर्य की तपन को केवल सहन न करें, उसे स्मरण करें, स्वीकार करें और उसका सम्मान करें, क्योंकि यही तप जीवन की रक्षा का सबसे सरल और प्राचीन उपाय है।