
बंजारा महेश राठौर ‘सोनू’
गांव: राजपुर छाजपुर गढ़ी, जिला: मुज़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश
अब दिल को पत्थर-सा करना है मुझे,
तेरी मुश्किल यादों से गुज़रना है मुझे।
फिलहाल ज़िम्मेदारियों की गिरफ्त में हूँ,
ख़ुद से ही अब समझौता करना है मुझे।
तुम्हें तुम्हारी नई मंज़िल मुबारक हो,
अभी पुराने रास्तों पर भटकना है मुझे।
निकाल दिए किताबों से सारे गुलाब,
मालूम है — एक दिन मुरझाना है मुझे।
और जो रह गईं बातें — वो लिखनी हैं मुझे,
ख़ुद ही लिखकर ख़ुद को समझाना है मुझे।
बंद मुट्ठी में तक़दीर होती है मोहब्बत की,
फिर भी पता है — एक दिन मर जाना है मुझे।
💬 समीक्षा और विशेषताएँ:
- भावनात्मक गहराई: कविता दिल टूटने की तकलीफ़ को बहुत सादगी और संजीदगी से बयान करती है।
- वास्तविकता की झलक: “फिलहाल ज़िम्मेदारियों की गिरफ्त में हूँ” जैसी पंक्तियाँ आज के युवा वर्ग के संघर्ष को प्रतिबिंबित करती हैं।
- काव्य-सौंदर्य: “बंद मुट्ठी में तक़दीर होती है मोहब्बत की” – यह पंक्ति संपूर्ण कविता का emotional climax है।
- वाक्य-संरचना और प्रवाह: मूल कविता की आत्मा को बनाए रखते हुए इसे थोड़ी कसावट और लय दी गई है, ताकि पठन और मंच प्रस्तुति दोनों में प्रभावी हो।