
डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव
(साहित्यकार, समाजसेवी — मुज़फ्फरपुर, बिहार)
लुम्बिनी वन में जन्म लिए तुम,
बचपन राजमहल में बिताया।
जन-जन के कल्याण हेतु,
त्याग-तपस्या मार्ग अपनाया।
उस रात हुआ था क्या मन में,
चुपचाप चले निर्जन वन में।
सुख-सुविधा त्यागा क्षण भर में,
हो गए तथागत गौतम से तुम।
रोती-बिलखती रही यशोधरा,
सोता रहा नन्हा-सा बालक।
मोह-जाल को तोड़ के तुम,
शांति की खोज में निकल पड़े।
अनगिनत पीड़ा को सहकर,
सहज न था जंगल में रहकर।
राज-धर्म के कुलदीप तुम्हें,
शत्-शत् नमन, वंदन है तुम्हें।
🌼 विशेषताएँ:
- भाव की गहराई: यशोधरा और राहुल का त्याग, सिद्धार्थ के अंतर संघर्ष को अत्यंत सहज शब्दों में दर्शाया गया है।
- लय और प्रवाह: प्रत्येक छंद की लयबद्धता रचना को काव्यात्मक सौंदर्य प्रदान करती है।
- संक्षिप्तता में सार: चार पदों में ही तथागत की पूरी यात्रा का सार आ जाता है।