राजनीति

विस्तारपूर्वक संवाद करने का अलौकिक अवसर

डॉ दिनेश चन्द्र सिंह

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम में अगाध आस्था रखने वाले और समग्र मानव कल्याण के प्रति निष्पक्षता एवं समानता के भाव से समर्पित होकर कार्य करने वाले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में कुछ लिखना यानी अभिव्यक्त करने की विद्वता एवं अनुभव मुझमें नहीं है। क्योंकि सन्त-महन्त की साधना को समीप से जाने एवं अनुभव किये बिना कुछ भी अभिव्यक्त करना तार्किक रूप से उचित नहीं है। हालांकि मैंने उनको बहुत नजदीक से अनुभव किया एवं वर्षों से आशीर्वाद प्राप्त करता रहा।

यदा-कदा कुछ क्षण पश्चिमी उत्तरप्रदेश की सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि पर विस्तारपूर्वक संवाद करने का अलौकिक अवसर भी प्राप्त हुआ। यह अवसर पूर्वी उत्तर प्रदेश स्थित गोरखपुर में अपर जिलाधिकारी- वित्त एवं राजस्व की तैनाती के दौरान भी प्राप्त हुआ। इस सन्दर्भ को मैं अतीत की स्मृतियों से विस्तारपूर्वक अनावृत करना चाहूंगा। लोगों को आपके स्नेही व कल्याणकारी व्यक्तित्व की एक मिशाल का स्मरण कराना चाहूंगा ताकि सबको यह पता चल सके आप कितने स्नेहसिक्त व्यक्तित्व के स्वामी हैं।

एक बार की बात है। जब मेरा स्थानान्तरण गोरखपुर से मेरठ के लिए वर्ष 2015 में हुआ तो 18 जून, 2015 को श्री गोरखनाथ मन्दिर से फोन आया कि योगी आदित्यनाथ जी का स्नेह पूर्वक निर्देश है कि आपको मेरठ जाने से पूर्व मठ यानी मन्दिर पर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सपरिवार बुलाया गया है। उत्सुकता वश मैं मन्दिर से प्राप्त आशीर्वाद से अभिसिंचित स्नेह एवं आमंत्रण को स्वीकार करते हुए परिवार सहित मन्दिर पहुंच गया और सपरिवार उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का गौरव प्राप्त किया। वहां क्या बातें हुई, उसका वर्णन कर मैं उनके आशीर्वाद को भुलाना नहीं चाहता हूँ।

निःसन्देह योगी आदित्यनाथ जी एक महान सन्त हैं और संवेदनशील शासकीय व्यक्तित्व के स्वामी भी। हम सब जानते हैं कि सन्त सदैव परहित एवं जनकल्याण के लिये ही मानव के रूप में ईश्वर के प्रतिनिधि के तौर पर समाज हित के लिए सांसारिक माया मोह एवं भौतिक संसार के सुखों के आकर्षण को त्यागकर जनकल्याणार्थ बनने का दृढ़ संकल्प धारण करते हैं। उसी युगीन परम्परा के संत-महन्त परम श्रद्धेय योगी आदित्यनाथ जी हैं।

कहना न होगा कि महन्त बनना मात्र गेरूआ वस्त्र को धारण करने की प्रक्रिया नहीं है, अपितु अपनी आन्तरिक संरचना के नैसर्गिक आवेग-संवेग को त्यागकर धार्मिक वृत्तियों को धारण कर वैश्विक जगत के कल्याण हेतु आध्यात्मिक जगत एवं समाज और राष्ट्रहित के लिये कार्य करने की युगों-युगों से चली आ रही परम्परा है, जिसे उन्होंने परमार्थ हेतु आत्मसात किया है। यहां समाज एवं मानव कल्याण में ही वन्य जीव जन्तुओं के कल्याण का भी भाव निहित है।

इसी परम्परा एवं भावना के साथ योगी आदित्यनाथ जी ने गोरक्षनाथ पीठ के पीठाधीश्वर सर्वोच्च सन्त, धार्मिक आस्था के युगीन प्रतिबिम्ब महन्त अवैद्यनाथ जी के गुरुत्व में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर नाथ सम्प्रदाय की परम्परा को अंगीकार किया। हम सब जानते हैं कि नाथ सम्प्रदाय स्वयं युगों से मानव कल्याण के प्रति धार्मिक आस्था का केन्द्र बिन्दु रहा है। उसी दीक्षा से पल्लवित-पुष्पित सन्त से गोरक्षनाथ पीठ के महंत तक की उनकी यात्रा हिन्दू धर्म एवं समाज के प्रति योगी जी के द्वारा किये जा रहे निःस्वार्थ कर्म का परिणाम है।

सच कहा जाए तो गोरखपुर की पीठ के महन्त योगी आदित्यनाथ जी हिन्दू धर्म के प्रति अगाध आस्था रखने वाले करोड़ों जनसमुदाय के लिये श्रद्धेय हैं। उन्होंने अपनी कर्मठता, अनुशासनप्रियता, निष्ठा, बिना भय एवं पदीय लालसा के हिन्दू धर्म के अनुयायियों की पीड़ा, वेदना, यातना, शोषण के खिलाफ मुखर आवाज उठाकर उन धर्मनिरपेक्ष चेहरों को बेनकाब किया है जो धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनकर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति के अन्तर्गत हिन्दू धर्म के अनुयायियों के कष्टों, उनकी पीड़ा, वेदना को जन आन्दोलन का रूप नहीं देने दे रहे थे।

समय के सापेक्ष ऐसे व्यक्तियों को खुली चुनौती देकर श्री योगी आदित्यनाथ जी 1998 से 2017 तक एक सन्यासी यानी योगी के रूप में एवं एक सांसद के रूप में न केवल जनमानस की आवाज बने, अपितु हिन्दुत्व के प्रति गहरी आस्था एवं लगाव के कारण हिन्दुओं के शुभेच्छु एवं संरक्षक बनकर उनकी पीड़ा को दूर करने का पुनीत कार्य किया।

– डॉ दिनेश चन्द्र सिंह, आईएएस, डीएम बहराइच, यूपी

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