कांग्रेस आलाकमान की समझ
ओम प्रकाश उनियाल
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस अंतिम सांसे गिन रही है। पांचों राज्यों की जनता ने जिस तरह से कांग्रेस को नकारा है उससे यह भी बात छनकर आती है कि कांग्रेस का नेतृत्व कुशल नहीं है। ‘अधजल गगरी छलकत जाए’ कहावत कांग्रेस पर सटीक बैठ रही है।
मोदी की छवि जनमानस के मन में इस कदर घर किए हुए है कि विपक्षी किसी भी तरह उनके आगे टिक नहीं पा रहे हैं। एक प्रतिष्ठित राजनीतिक दल की छवि बुरी तरह से खराब होना साफ संकेत दे रही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कहीं कांग्रेस को जनता भूल ही न जाए। कांग्रेस हाईकमान को दल की कमान अब किसी ऐसे कुशल नेता को सौंप देनी चाहिए जो कि दल में कुछ दम भर सके।
लेकिन, आलाकमान ऐसे नहीं चाहती। अपने परिवार के भंवर में फंसाकर रखना चाहती है। जब तक सोनिया गांधी का परिवारवाद का मोहभंग नहीं होगा तब तक कांग्रेस हर कदम पर ठोकर खाती रहेगी। ठोकर खाकर भी न संभलना सबसे बड़ी भूल या चूक आलाकमान की होगी। जहां तक राहुल गांधी व प्रियंका का सवाल है तो इनकी राजनीति कितनी परिपक्व है यह तो सभी समझते हैं।
राजनीति करने के लिए महज बयानबाजी करना ही जरूरी ही नहीं होता अपितु नागरिकों के दिलों में पैठ बनाना भी होता है। साथ देश को विकास के पथ पर अग्रसर ले जाने के लिए नीति नियोजन की समझ होना आवश्यक होती है। जिसकी कमी गांधी परिवार में साफ दिखती है।
यही कारण है कि दल का जो वर्चस्व पहले था वह धीरे-धीरे खत्म होता गया। स्वर्गीय इंदिरा गांधी के कार्यकाल तक भी कांग्रेस का खासा बोलबाला रहा। अब कांग्रेस उभरने के लिए छटपटा रही है। दल को नयी कुशल रणनीति के तहत सक्रिय होना होगा, तब कहीं कांग्रेस में कुछ हद तक जान फूकी जा सकेगी। मगर आलाकमान की समझ से यह सब परे है?
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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