चुनावी चक्कलस…
ओम प्रकाश उनियाल
ज्यों-ज्यों मतदान की तारीख नजदीक आती है त्यों-त्यों राजनैतिक दल धुंआधार प्रचार पर पूरी ताकत झोंकने लगते हैं। हरेक प्रत्याशी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त होता है।
इस बार हालांकि, कोविड गाइडलाइन के चलते प्रत्याशियों के साथ समर्थकों का रैला जिस प्रकार से नजर आना चाहिए था वह उस प्रकार नहीं है लेकिन उत्साह हर प्रत्याशी के समर्थकों में पूरा है। कोई समूह बनाकर घर-घर प्रचार कर रहा है तो कोई छोटी चुनावी जनसभा व रैली निकालकर। भौंपुओं की चिल्ला-पौं बदस्तूर जारी है।
रिकॉर्डिड नारेबाजी के साथ-साथ लोकभाषा में प्रत्याशी समर्थित लोकगीत। कहीं-कहीं राजनैतिक दलों के लहराते झंडे व टंगे बैनर अपनी शान बढ़ा रहे हैं तो कहीं घरों की दीवारों पर पोस्टर चिपकाकर व नारे लिखे नजर आ रहे हैं।
चुनाव आयोग की नजर ऐसे दलों व प्रत्याशियों पर है या नहीं जो लोगों की दीवारों पर पोस्टर थोपकर या लिखाईकर खराब कर रहे हैं? चुनाव प्रचार के नियमों के तहत ही सभी को प्रचार करना चाहिए। यह ध्यान रखना जरूरी है। चुनावी दौर हो और गल्ली-मोहल्लों के नुक्कड़ों व चाय की दुकानों पर चाय की चुस्की लेते हुए चुनावी चर्चा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता।
यह नजारा भी इन दिनों खूब मिलता है। बड़े-बूढे बहसबाजी में मस्त नजर आते हैं तो बच्चे झंडे-डंडे समेटने में। कभी प्रचार के लिए बिल्ले भी बांटे जाते थे। जिन्हें बड़े तो शान से अपनी छाती पर लगाते थे और बच्चे बिल्ले इक्कट्ठे करने में लगे रहते थे। अब तो स्टीकर का जमाना आ गया है। जहां मर्जी थोप दो।
चुनावी दौर में कुछ समर्थक तो इतने उत्साहित होते हैं कि जैसे अपने प्रत्याशी को जिताने का सारा जिम्मा इनके ही सिर पर हो। बिल्कुल समर्पित होकर अपना सबकुछ छोड़कर जुटे रहते हैं प्रचार में। धत् पिटती है तो सरकारी कर्मियों की। उन पर चुनाव तैयारियों का जिम्मा जो रहता है।
सबसे अधिक पौ-बाहर रहती है गल्ली-कूचों के छुट्टभईए नेताओं की जिन्हें शाम होते ही गला तर करने और लजीज व्यंञ्जनों का स्वाद चखने को मिलता है। सुनहरे दिन होते हैं इनके लिए चुनावी दिन। ये कहीं भी फिट और सेट हो जाते हैं। सावधान! आप एक जिम्मेदार नागरिक हैं ऐसा कदापि न करें।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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