चुनावी घोषणाएं
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ओम प्रकाश उनियाल
चुनाव होने से पहले हर राजनीतिक दल झूठी घोषणाओं, वायदों के पुलिंदे बांधने लगते हैं। सत्ता में आते ही तमाम वायदे, घोषणाएं फुर्र हो जाते हैं। नागरिक फिर भी इनके बहकावे में आ जाते हैं। झूठे वायदे करना हमारी राजनीति का एक खास हिस्सा बन चुका है।
हर राजनीतिज्ञ शायद यही सोचता है कि झूठ बोलकर जनता को आसानी से बरगरलाया जा सकता है। जिस दल की लहर फैला दी या जिस मुद्दे को लेकर जनता की भावनाओं को भुनाया जाए या अन्य कोई और सरल तरीका जिससे जनता की भावनाओं के साथ खेलने का मौका मिले पूरा फायदा उठाने का प्रयास किया जाता है। जो कि इनकी सबसे बड़ी भूल होती है।
हमारा देश मुद्दों का देश है। हर प्रकार के मुद्दे यहां हर समय उपलब्ध रहते हैं। खासतौर पर चुनावी मुद्दे। जिनकी बड़ी महत्ता होती है। क्योंकि चुनावी मुद्दे बहुत कम ही हल होते हैं। सरल भाषा में ये अल्पावधि वाले मुद्दे होते हैं। जुबान से निकले और राज-पाठ संभालते ही गौण हो जाते हैं।
हालांकि, जनता में इतनी ताकत होती है कि कोरे जुमलों, घोषणाओं की गठरी बांधने वालों की ही गठरी बांध सकती है। लेकिन जनता भी तो भेड़ चाल चलने लगती है। न जाने चुनाव आते ही झूठों का साथ देने की हिम्मत कैसेे आ जाती है। न किसी प्रकार का सोच-विचार करना न झूठों को कड़ा सबक सिखाना।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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