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आधुनिक परिवेश में बदली संबंधों की परिभाषा

आधुनिक परिवेश में बदली संबंधों की परिभाषा… हमारे लिए मधुर संबंध ‘जीवन स्तंभ’ की भूमिका निभाते हैं , जिसकी मजबूती से ही हम अपने जीवन पथ पर, प्रत्येक सुख-दुःख की पगडंडियों पर चलकर… विजय कनौजिया, अम्बेडकर नगर (उत्तर प्रदेश)

वर्तमान आधुनिक परिवेश में जिस तरह हमारे जीवन व दैनिक परिदृश्य में बदलाव हुआ है, ठीक उसी तरह हमारे संबंधों की परिभाषाएं भी बदल गई हैं । इस बदलाव को मेरी कुछ पंक्तियां भी प्रमाणित करती हैं कि-

“बदले-बदले हालातों से अपने भी अब बदल गए
सपने जो बुनते थे मिलकर वो सब तो अब विखर गए ।।
रिश्तों का माधुर्य मिलन जो सुखदायी सा लगता था
वक्त की आंधी ऐसी आई वे सब दुःख में बदल गए ।।
जिन रिश्तों को सींचा हमने स्नेह का जल संचय करके
वे तो अवसरवादी बनकर ना जाने कब निकल गए ।।
हालातों का ऐसा मंजर इक दिन ऐसे आएगा
इसी सोच में आंखों से अब आंसू मेरे निकल गए ।।”

उपर्युक्त भावों से ये स्पष्ट है कि किस तरह वर्तमान सम्बंध अब अवसरवादी के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं। रिश्तों में त्याग और समर्पण की जो भूमिका थी उनका अस्तित्व धीरे-धीरे धूमिल होता जा रहा है। अपनी आवश्यकता के अनुरूप ही अधिकतर लोग संबंधों का निर्माण करते हैं, और आवश्यकता की पूर्ति के पश्चात संबंध विच्छेद की जुगत में लग जाते हैं।

पहले हमारे संबंधों में प्रेम की रसता प्रवाहित होती थी, और स्नेह रूपी उर्वरक एवं समर्पण रूपी आधारशिला के रूप में पहचानी जाती थी, परंतु अब उसमें निरंतर अभाव देखने को मिल रहा है । यहां भी मुझे अपनी कुछ पंक्तियां उद्वेलित कर रही हैं कि-

“रिश्तों में सच्चाई ढूंढूं अपनों की परछाईं ढूंढूं
रिश्तों की जो गहराई थी वे सब अब बदलाव लिए हैं
संबंधों की नीति बदल गई मिलने की तकनीक बदल गई
स्वार्थ भरी रिश्तों की चाहत अब तो ये राजनीति बन गई ।।”

निश्चित रूप से ही उपर्युक्त स्थिति आज के संबंधों की रूपरेखा को दर्शाती है। जो संबंध कभी हम स्नेह की लड़ियों में पिरोकर, उसे प्रेम, त्याग समर्पण रूपी माला के रूप में तैयार करते थे, आज वही संबंध आवश्यकता की पृष्ठभूमि के अनुरूप निर्मित की जाती है ।
“आवश्यकता आविष्कार की जननी है” ये वैज्ञानिक मान्यता आज हमारे आधुनिक परिवेश के संबंधों पर भी हावी है, जो कि निश्चित रूप से ही ये वैज्ञानिक मान्यता हमारे स्नेहिल संबंधों के लिए उपयुक्त नहीं है । जिसके कारण हमें इसके दुष्परिणाम से गुजरना पड़ता है । ऐसे संबंधों की पीड़ा को मेरी कुछ पंक्तियों ने पुनः दर्शाया है कि-

“संबंध भी अब बदलाव लिए नीरसता के परिधानों में
ना जाने फिर कब बदल जाएं जीवन की ये परिभाषा है
मन व्यथित हुआ चिंता उपजी रिश्तों के उन खलिहानों में
जो उपजाऊ वे रिश्ते थे मुरझाए से अब दिखते हैं ।।”

हमारे लिए मधुर संबंध ‘जीवन स्तंभ’ की भूमिका निभाते हैं , जिसकी मजबूती से ही हम अपने जीवन पथ पर, प्रत्येक सुख-दुःख की पगडंडियों पर चलकर अपने निश्चित गंतव्य तक पहुंचने में सफल होते हैं । अतः हमें अपने समस्त संबंधों को मधुर एवं मजबूत बनाने की दिशा में तत्पर रहना पड़ेगा, तभी हम अपनी महत्ता एवं अपने संबधों को विच्छेद होने से बचा पाएंगे ।
अंततः मैं अपनी चार पंक्तियों के माध्यम से यही कहूंगा कि –

“मिले गर ज़ख्म अपनों से छुपा लो तुम उसे साहब
जिस डाली पर कभी बैठो उसे काटा नहीं करते ।।”


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आधुनिक परिवेश में बदली संबंधों की परिभाषा... हमारे लिए मधुर संबंध 'जीवन स्तंभ' की भूमिका निभाते हैं , जिसकी मजबूती से ही हम अपने जीवन पथ पर, प्रत्येक सुख-दुःख की पगडंडियों पर चलकर... विजय कनौजिया, अम्बेडकर नगर (उत्तर प्रदेश)

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