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फीचर

हिंदी कविता में अनुभूति और संवेदना के आयाम

राजीव कुमार झा

हिंदी में भारतेंदु हरिश्चन्द्र को आधुनिकता का प्रवर्तक कहा जाता है और उन्होंने कविता लेखन को नये भावबोध और विचारभूमि पर प्रतिष्ठित किया. हिंदी में इसके पहले ब्रजभाषा में कविता लेखन का प्रचलन था और भारतेंदु के काल में खड़ी बोली में कविता लेखन की शुरुआत हुई.

भारतेंदु और उनके काल के कवियों ने देशप्रेम के अलावा समाज की विसंगतियों का अपनी कविताओं में चित्रण किया और कविता में परंपरागत रूप से लिखे जाने वाले जीवन प्रसंगों को भी नया रूप प्रदान किया इसलिए इस काल की कविता में नयी तरह की जीवनधर्मिता का भाव प्रवाहित होता दिखाई देता है.

हिंदी कविता के विकासक्रम की अनंतर धाराओं में आगे इस प्रवृत्ति का सुंदर समावेश इसकी प्रमुख विशेषता है. इस काल में देश के राजनीतिक- सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश का यथार्थ और इसकी विडंबनाओं का विचारोत्तेजक चित्रण भारतेंदु की कविताओं में पढ़ने के लिए मिलता है और उनकी कुछ काव्य पंक्तियां आज भी उद्धरण के रूप में हिंदी पढ़ने – लिखने वाले तमाम आयु वर्ग के लोगों के बीच प्रचलित हैं.

आवहु सब मिलिकै रोवहु भारतभाई, हाहा भारत दुर्दशा न देखि जाई.

इस प्रसंग में उनकी कुछ और काव्य पंक्तियां भी लोकप्रिय हैं –

अंग्रेजी पढ़के जदपि सबगुण होत प्रवीण,
पै निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन.

निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल,
पै निज भाषा ज्ञान बिन मिटत न हिय को शूल.

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने आधुनिक काल में हिंदी काव्य लेखन को दिशाबोध प्रदान किया और काव्य लेखन को पुरानी रूढ़ियों से मुक्त किया. उनके साहित्य विषयक विचारों को इसके बाद के कालों में और आज भी लेखन का बीज वक्तव्य और सृजन सूत्र माना जाता है. समकालीन हिंदी कविता लेखन में मौलिक प्रतिभा से संपन्न अनेकानेक कवियों ने अपना अमूल्य योगदान दिया है.

इस दृष्टि से छायावाद के स्तंभ के रूप में दृष्टिगोचर होने वाले कवि जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के अलावा हिंदी की स्वच्छंदतावादी काव्यधारा के कवि के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी , रामधारी सिंह दिनकर , सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम इस दौर के काव्य लेखन में महत्वपूर्ण है. मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय जीवन चेतना के कवि हैं और साकेत की रचना करके उन्होंने देश की संस्कृति और सभ्यता की धारा को इसके पुरातन गौरव के माध्यम से पराधीनता की परिस्थितियों में उसके पुनरुद्धार के भावों से प्रकट किया है .

राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है.

निराला को यथार्थवादी धारा का कवि कहा कहा जाता है और समाज के निम्न वर्ग के प्रति उनकी कविताओं में प्रेम और सहानुभूति का भाव है. उन्होंने ‘तोड़ती पत्थर’, ‘भिक्षुक’ और ‘विधवा’ शीर्षक कविता को लिखकर काव्य संवेदना के नये सामाजिक और मानवीय आयामों को उद्घाटित किया .

वह आता दो टूक कलेजे को करता
पछताता पथ पर आता
मुट्ठी भर दाने को मुंहफटी पुरानी झोली का फैलाता
पछताता पथ पर आता. …(भिक्षुक)

निराला अदम्य जिजीविषा के कवि माने जाते हैं और देश में विद्यमान पराधीनता की परिस्थितियों के प्रति स्वतंत्रता संघर्ष का आह्वान उनकी कविताओं को विशिष्ट रूप प्रदान करता है.

वर दे वीणा वादिनि वर दे
प्रिय स्वतंत्र रव अमृत मंत्र नव भारत में भर दे!
कट अंध उर के बंधन स्तर, बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद तम हर प्रकाश भर जगमग कर दे! …(सरस्वती वंदना)

सुमित्रानंदन पंत के अंतर्मन पर भी युगचिंतन से जुड़े रचनात्मक विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा . वह कौसानी के रहने वाले थे. उन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता है.

आलोकित पथ करो हमारा
हे जग के अंतर्यामी
शुभ प्रकाश दो स्वच्छ दृष्टि दो
जड़ चेतन सबके स्वामी! …(प्रार्थना)

महादेवी वर्मा को नारीमन की पीड़ा और प्रेम को करुणा के माध्यम से काव्य फलक पर उकेरने का श्रेय दिया जाता है. उन्हें आधुनिक काल का मीरा कहा गया है-

क्या पूजन क्या अर्चन रे
उस असीम का सुंदर मंदिर, मेरा लघुतम जीवन रे.

इस काल के आसपास या इसके कुछ बाद के काल में हरिवंश राय बच्चन भी काफी बड़े कवि के रूप में उभरकर सामने आये और उनकी कविताओं में संसार के सुख-दुख के साथ कवि का एकाकार होता मन कविता में मनुष्य के मनप्राण के अमिट रंगों को विलक्षण भाव, भाषा , शैली में प्रकट करता है. देश की आजादी के हिंदी कविता अपनी अभिव्यक्ति में निरंतर जीवन के नये स्वर का संधान करती दिखाई देती है और कविता में इस प्रवृत्ति के पुरोधा के रूप में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का नाम प्रसिद्ध है.

भवानी प्रसाद मिश्र भी इसी समय के आसपास काव्य साधना में संलग्न थे और उन्होंने गांधीजी के जीवन चिंतन के आधार पर अपनी कविताओं में देश ,समाज और संस्कृति के जीवन प्रसंगों को भी लेकर कविता में अपने आत्मीय उद्गारों को प्रकट किया है. इसके बाद नयी कविता के नाम से सामने आने वाली काव्यधारा के कवियों ने भी इस दौर के थोड़े बाद कविता के भाव विचार के नये धरातल को गढ़ने में उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन किया और इनमें श्रीकांत वर्मा, कुंअर नारायण , सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के अलावा केदारनाथ सिंह का नाम महत्वपूर्ण है.

श्रीकांत वर्मा की कविताओं में जीवन के उत्थान और पतन की प्रक्रियाओं में कवि के अंतर्मन के भाव समाज में परिस्थितियों से संवाद के अलावा कविता में उससे उत्तर की प्रत्याशा में गहरे चिंतन को जन्म देती दिखाई देती हैं .मगध उनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह है . कुंअर नारायण की कविताओं में भारतीय जीवन परंपरा और चेतना की दार्शनिक झलक समायी हुई है . हिंदी कविता पर नक्सलबाड़ी विद्रोह का भी काफी प्रभाव पड़ा और ‘ जागते रहो सोने वालो ‘ शीर्षक कविता संग्रह को लिखने वाले कवि गोरख पांडेय की कविताओं को याद करना इस प्रसंग में समीचीन होगा.

हिंदी में प्रगतिशील काव्यधारा के कवि शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल , त्रिलोचन और नागार्जुन के नामोल्लेख के बिना समकालीन हिंदी कविता की चर्चा कुछ अधूरी सी लगेगी . नागार्जुन और त्रिलोचन की कविताओं में ग्रामीण जनता के जीवन के साथ प्रेम का भाव प्रकट हुआ है और मौजूदा दौर में जीवन के कई प्रकार के छल प्रपंच झूठ और भुलावों के बीच इन कवियों की कविताओं में देश की राजनीति, सामाजिक अंतर्विरोध और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में जनजीवन से जुड़े मुद्दों को इन कविताओं ने अपनी कविताओं में उठाया है.’

चंपा काले काले अक्षर नहीं चिन्हति ‘और ‘अमल धवल गिरि के शिखरों पर बादल को घिरते देखा है ‘ इन कविताओं को लिखने वाले त्रिलोचन और नागार्जुन की कविताएं हमारे समाज संस्कृति और यहां के सारे परिवेश के साथ गहन सरोकारों को प्रकट करती हैं.

पिछली शताब्दी के आठवें दशक में अरुण कमल, राजेश जोशी , मंगलेश डबराल का नाम भी कवि के रूप में काफी चर्चित हुआ ओर इनकी कविताओं में समाज और जनजीवन के नये प्रसंगों का समावेश है. मंगलेश डबराल की कविताओं में वर्तमान दौर में आदमी के जीवन में फैलती चुप्पी और इन सबके साथ उसका विस्थापन-भटकाव उसके अव्यक्त मन की बातें कविता के कैनवास पर सार्थक जीवन विमर्श का रूप ग्रहण करती हैं.

आलोकधन्वा का नाम आठवें दशक के इन कवियों से कुछ पहले के काल से जुड़ा रहा है और 1975 में देश में छात्र आंदोलन के दौरान इनकी लिखी कविताएं खूब लोकप्रिय हुई थीं.इसी दौर में दुष्यन्त कुमार ने भी गजल लेखन से हिंदी कविता लेखन में गजल को भी उसकी एक जगह दिलाई और ‘ कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए ‘ तथा ‘ हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए ‘इन ग़ज़लों को लिखकर समाज में सरकार और शासन के प्रति जनता के अरमानों के साथ इससे उसके मोहभंग के भावों को भी स्वर प्रदान किया.


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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राजीव कुमार झा

कवि एवं लेखक

Address »
इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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