राष्ट्रीय समाचार

कुमार आशू का गीत-संग्रह ‘दोहद’ हुआ लोकार्पित

(देवभूमि समाचार)

कवि कुमार आशू के प्रथम काव्य संग्रह “दोहद” का लोकार्पण समारोह दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के तत्वाधान में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी विभाग के वर्तमान आचार्य एवं भूतपूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अनिल राय जी ने किया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता गोरखपुर के प्रतिष्ठित कवि श्रीधर मिश्र, प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री प्रमोद कुमार, डॉ आनन्द पाण्डेय, प्रो. कमलेश गुप्त, प्रो विमलेश मिश्र, प्रो राजेश मल्ल जी रहे।

अतिथियों का स्वागत वक्तव्य हिंदी विभाग के वर्तमान विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दीपक त्यागी ने दिया। पुस्तक लोकार्पण के पूर्व अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर तथा पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। पुस्तक लोकार्पण के पश्चात कुमार आशू ने पुस्तक में संकलित दो गीतों का सस्वर पाठ किया। वक्तव्य देते हुए डॉ आनंद पांडेय ने कहा कि प्रेम गीत लिखना मौलिक कार्य है। प्रेम और घृणा सामाजिक उत्पाद है। प्रेम की परिस्थितियों पर भी कवि की कलम चले, यही कामना है।

श्रीधर मिश्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेम करने की उम्र में आशू प्रेम को जी रहे हैं, प्रेम को रच रहे हैं, यह बड़ी बात है, जो कि मनुष्य का मूल धर्म प्रेम है। कोई भी पदार्थ अपना मूल धर्म नहीं छोड़ता। आशु के प्रेम गीतों में भारतीय सांस्कृतिक प्रेम है। यहां मानसंता नहीं है। दरअसल आशु के लिए प्रेम उर्जा और जिजीविषा का प्रतीक है। प्रणय के पावन प्रतीक की एवं सात्विकता के लिए कवि को बधाई।

प्रोफेसर राजेश मल्ल ने आशु को बधाई देते हुए कहा कि प्रेम और क्रांति में कोई अंतर नहीं है। प्रेमयुग के समय की समकालीन कविताओं में ऐसी उपस्थिति प्रशंसनीय है। असफलता की आशंकाओं को भी आशू ने छुआ है। ‘दोहद’ पर चर्चा करते हुए प्रोफेसर विमलेश मिश्र ने कहा कि प्रेम आदमी को विस्तार देता है। यदि आप प्रेम नहीं करेंगे तो क्रांति भी नहीं कर सकेंगे। आधुनिकीकरण के दौर में आशु का प्रेमगीतों को शांति के प्रतीक के रूप ‘दोहद’ को सामने रखना निसंदेह प्रासंगिक है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आशु के प्रेम गीत की यह यात्रा इसी तरह जारी रहे।

प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त ने आशुतोष को बधाई देते हुए कहा की प्रेम बेशर्त व स्वाभाविक है। आशू ने जिस सरलता के साथ रचनात्मक निर्वहन करते हुए अपने अहं का विलयन किया है वह प्रणम्य है। अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रोफेसर अनिल राय ने कुमार आशु को गोरखपुर के साहित्य समाज की प्रत्यक्ष नागरिकता प्राप्त करने हेतु एवं इस यात्रा में निरंतर गतिमान रहने व यशस्वी होने की शुभकामनाएं दी। प्रोफेसर राय ने कहा की आत्मा की तृप्ति का पर्याय बनने वाली यह रचना बधाई के पात्र है।

इस कार्यक्रम को प्रोफ़ेसर प्रत्यूष दुबे, डॉ सुनील यादव, डॉ रामनरेश राम, श्री रमाशंकर तिवारी, आकृति विज्ञा अर्पण, निखिल पांडे, सलीम मजहर, शिवेंद्र, रविंद्र, रविकांत, उमाकांत, रजनीश, दीपक, शिव, शंकर, रोहन, उत्सव आकांक्षा, अंशिका निशा, काजल, संजना इत्यादि बन्धु-बांधवों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति एवं सहयोग से सफल बनाया। कार्यक्रम का संचालन और आभार ज्ञापन डॉ अखिल मिश्र ने किया। इसके बाद ‘दोहद’ के रचनाकार आशु एवं अतिथियों के द्वारा वृक्षारोपण का शुभ कार्य किया गया।

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