कुछ तो लोग कहेंगे
धीरे धीरे नयना का स्कूल खत्म हो गया और उसका दाखिला आई. आई. टी, कानपुर में हो गया। अब तो गुप्ता जी के पैर ज़मीन पर नहीं टिक रहे थे, उन्हें बेटी की सफलता पर गर्व हो रहा था। नयना के साथ साथ अब्बास का चयन भी आई. आई. टी, कानपुर में हो गया। दोनों ने साथ ही कॉलेज शुरू किया। #गीतिका सक्सेना, मेरठ कैंट (यू.पी.)
हर रोज़ की तरह गुप्ता जी पार्क में टहल रहे थे कि तभी उनकी नज़र बेंच पर बैठे शर्मा जी पर पड़ी। शर्मा जी किसी गहरी सोच में डूबे थे उनकी भौं में पड़े बल बता रहे थे कि वो किसी बात से बेहद परेशान थे। गुप्ता जी जाकर उनके बराबर में बैठ गए। गुप्ता जी यानी अरुण कुमार गुप्ता पंजाब नेशनल बैंक से करीब 10 साल पहले रिटायर हुए थे, उनकी उम्र अब लगभग 72 वर्ष थी दूसरी तरफ़ शर्मा जी यानी आलोक प्रसाद शर्मा अभी अभी भारतीय जीवन बीमा निगम से रिटायर हुए थे।
दोनों रोज़ शाम को पार्क में बैठकर गप्पे मारा करते। हालांकि दोनों की उम्र में काफ़ी फ़र्क था लेकिन फ़िर भी उनकी खूब दोस्ती थी। जब कुछ समय बीत जाने पर भी शर्मा जी का ध्यान गुप्ता जी पर नहीं गया तो गुप्ता जी ने धीरे से उनके कंधे पर हाथ रख कर पूछा, ” किस सोच में डूबे हो आलोक”? उनकी आवाज़ सुनकर शर्मा जी चौंक गए और उन्होंने अचरज से पूछा, “आप कब आए”? गुप्ता जी ने कहा, ” आए हुए तो थोड़ी देर हो गई लेकिन तुम ये बताओ तुम परेशान क्यों हो?
घर परिवार में सब ठीक तो है”? “क्या बताऊं आपको, आजकल के बच्चे मां बाप की बिल्कुल नहीं सुनते। बेटा सारे समाज के सामने हमारी नाक कटवाना चाहता है। एक गैर जाति की लड़की पसंद कर ली है कहता है शादी उसी से करेगा, बहुत समझा रहा हूं लेकिन सुन नहीं रहा। हम शर्मा पंडित और लड़की त्यागी, कोई मेल ही नहीं है। रिश्तेदारों को पता चलेगा तो हंसेंगे हम पर”, शर्मा जी एक सांस में सब बोल गए। सारी बातें सुनकर गुप्ता जी के चेहरे पर कई भाव आए लेकिन फिर उन्होंने खुद को नियंत्रित कर के कहा,” तुम लड़की से मिले हो आलोक? कैसी है”?
“एक बार बेटे के ऑफिस के दोस्तों के साथ घर आई थी तब हम मिले थे। देखने में तो ठीक ही है, आचरण में भी शिष्ट लगी थी। पढ़ी लिखी भी है और बेटे के साथ ही नौकरी करती है। सुबह उसके मां बाप आए थे रिश्ते की बात करने, लोग भी ठीक हैं लेकिन मैंने मना कर दिया हम गैर बिरादरी में शादी नहीं करेंगे। बेटे ने उनके सामने ही हमसे कह दिया कि वो कहीं और शादी नहीं करेगा। समझ नहीं आ रहा उसे कैसे समझाऊं”, अपना माथा पकड़कर शर्मा जी बोले।
” समझने की ज़रूरत उसे नहीं तुम्हें है आलोक”, गुप्ता जी ने बात काटते हुए कहा। ” लड़की अच्छी है, उसके घरवाले सभ्य लोग हैं। तुम्हारा बेटा और वो दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं और क्या चाहिए तुम्हें? इस से क्या फर्क पड़ता है कि वो तुम्हारी जाति की नहीं है, तुम्हारा बेटा तो उसके साथ खुश रहेगा। तुम्हारे लिए क्या ज़रूरी है समाज या अपने बेटे की खुशी? अगर तुमने अपनी पसंद की किसी लड़की से उसकी शादी कर दी और वो दुखी रहा तो क्या ये समाज तुम्हारा साथ देगा? क्या तब वो तुम्हें दकियानूसी कह कर तुम्हारा मज़ाक नहीं उड़ाएंगे?
क्या तुम अपने बेटे को परेशान देखकर चैन से जी पाओगे और जिस लड़की से उसकी शादी करवाओगे क्या तुम उसके साथ धोखा नहीं करोगे? तुम समझदार हो आलोक ज़िद मत करो, सिर्फ अपने घर की खुशी के बारे में सोचो”। शर्मा जी ने गुप्ता जी को अचरज से देखा और उनसे पूछा,” मेरी जगह अगर आप होते तो क्या आप अपने बच्चे की शादी गैर बिरादरी में कर देते”? अब गुप्ता जी की आंखों में नमी सी थी और वो बहुत धीमे स्वर में बोले,” कर देनी चाहिए थी”। इतना कहकर वो उठकर चल दिए।
शर्मा जी समझ गए थे कि उन्होंने गलती से गुप्ता जी की किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया था और वो जो कुछ अभी अभी समझाने का प्रयास कर रहे थे उसके भुक्त भोगी थे। शर्मा जी कुछ देर और वहीं बैठे रहे और गुप्ता जी की कही बातों पर विचार करते रहे। उधर गुप्ता जी भारी मन से घर की तरफ़ बढ़ गए। घर पहुंचकर उन्होंने एक पुरानी एल्बम निकाली और उसे देखने बैठ गए। सबसे पहली फोटो में वो एक छोटी सी बच्ची को गोद में लिए खड़े थे; ये फोटो उस दिन की थी जब उनकी बेटी पैदा हुई थी।
उसे गोद में लेकर वो बेहद खुश थे। अभी अभी ज़ोर से रोती हुई बच्ची उनकी गोद में आकर अचानक ही शांत हो गई थी और उन्होंने चिढ़ाते हुए अपनी पत्नी से कहा था ये है पापा की परी और हुआ भी ऐसा ही था दोनों पापा बेटी एक दूसरे की पूरी दुनिया थे। गुप्ता जी और उनकी पत्नी राधा ने उस बच्ची का नाम रखा था ‘नयना’ क्योंकि उसकी आंखें बहुत बड़ी बड़ी और खूबसूरत थीं। धीरे धीरे नयना बड़ी होने लगी, गुप्ता जी ने उसे हर तरह की सुख सुविधा दी। उसे कभी कोई कमी महसूस नहीं होने दी।
वो उसके साथ खेलते भी थे और उसे पढ़ाते भी थे। नयना भी विलक्षण व्यक्तित्व की मालिक थी। पढ़ाई लिखाई में अव्वल, खेल कूद में भी अव्वल और स्वभाव से सौम्य। कोई भी माता पिता ऐसी संतान पाकर धन्य हो जाते। स्कूल में नयना को जानते तो सभी थे लेकिन उसके दो ही अच्छे दोस्त थे – स्वाति और अब्बास। दोनों अक्सर नयना के घर आते जाते थे और गुप्ता जी और उनकी पत्नी से भी मिलते रहते थे। स्वाति अच्छे परिवार से थी तो अब्बास के घरवाले भी समझदार पढ़े लिखे लोग थे। नयना भी अक्सर दोनों के घर आती जाती थी।
धीरे धीरे नयना का स्कूल खत्म हो गया और उसका दाखिला आई. आई. टी, कानपुर में हो गया। अब तो गुप्ता जी के पैर ज़मीन पर नहीं टिक रहे थे, उन्हें बेटी की सफलता पर गर्व हो रहा था। नयना के साथ साथ अब्बास का चयन भी आई. आई. टी, कानपुर में हो गया। दोनों ने साथ ही कॉलेज शुरू किया। क्योंकि दोनों पहले से अच्छे दोस्त थे सो उन्हें अकेलापन महसूस नहीं हुआ। दोनों का ज्यादातर समय साथ ही बीतता था। धीरे धीरे दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे मगर कभी एक दूसरे से कहते नहीं थे, दोनों को लगता अगर दूसरे ने मना कर दिया तो दोस्ती भी ख़त्म हो जाएगी।
यूं ही कुछ साल बीत गए और कॉलेज के अब बस कुछ महीने ही बचे थे। अब्बास की नौकरी मुंबई में एक अच्छी कंपनी में लग गई लेकिन नयना आगे पढ़ना चाहती थी सो उसने सोचा वो भी मुंबई के ही किसी कॉलेज में दाखिला ले लेगी। उसने ये बात अब्बास को बताई तो उसे विश्वास हो गया कि नयना उसी के लिए मुंबई जा रही है। अब उसमें कुछ हिम्मत आ गई और एक दिन मौका देखकर उसने अपने प्यार का इज़हार नयना से कर दिया। नयना तो पहले ही उस से मोहब्बत करती थी बस फिर क्या दोनों ने बिना किसी झिझक के एक दूसरे से अपने मन की बात कह डाली। दोनों को लगा जैसे हवा में मधुर संगीत बजने लगा और चारों तरफ़ सब कुछ ख़ूबसूरत हो गया था।
कॉलेज खत्म होने के बाद नयना और अब्बास दोनों घर चले गए। दोनों के घर में अब धीमे स्वर में शादी का विषय छिड़ने लगा था; अब्बास ने जल्दी शादी करने से मना कर दिया तो नयना ने भी कहा कि वो आगे पढ़ना चाहती है, अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है उसके बाद ही शादी के बारे में सोचेगी। कुछ दिन बाद अब्बास नौकरी करने मुंबई चला गया और नयना का दाखिला भी वहीं एक अच्छे कॉलेज में हो गया। थोड़े दिन अलग रह कर ही दोनों समझ गए थे कि वो दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते। जब नयना मुंबई आई तो मानो दोनों को पंख लग गए।
शनिवार इतवार का दिन दोनों ज्यादातर साथ ही बिताते थे। पढ़ाई के दो साल बाद नयना की नौकरी अब्बास की ही कंपनी में लग गई। बस दोनों के मन की मुराद पूरी हो गई अब तो दोनों पूरा दिन साथ रह सकते थे। अब्बास अपने काम में निपुण था इसलिए दो ही साल में उसने काफ़ी तरक्की कर ली थी। नयना चाहती थी कि अब्बास को सेटल होने का कुछ समय मिल जाए जिस से जब दोनों के घर में शादी की बात हो तब तक अब्बास ठीक ठाक कमाने लगे, ये सोचकर ही तो उसने दो साल और पढ़ाई की थी। दोनों ने अपने हिसाब से सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से किया था जिस से घरवाले उनकी शादी से इनकार न कर सकें।
उनके हिसाब से तो उन दोनों को एक दूसरे के घर में सब पसंद करते थे और तो और दोनों के घरवाले आपस में एक दूसरे को जानते भी थे। अब्बास भी अच्छी नौकरी कर रहा था और नयना को भी नौकरी करते करीब एक साल हो गया था। लेकिन दोनों ने नहीं सोचा था कि आगे कौन सी समस्या मुंह खोले खड़ी थी। अब दोनों के माता पिता शादी को लेकर दोनों पर दबाव बनाने लगे थे। जब नयना और अब्बास को लगा कि अब बात को और नहीं टाल सकते तो दोनों ने अपने अपने घर में अपने मन की बात बता दी। दोनों घरों में मानो एटम बम गिर गया हो। ना ही गुप्ता जी और उनकी पत्नी ना अब्बास के माता पिता गैर मज़हब में शादी करने को तैयार थे।
नयना और अब्बास ने सोचा घर जाकर सबको मनाया जाए सो दोनों एक हफ्ते की छुट्टी लेकर घर आ गए। नयना ने जब अपने माता पिता को समझाने की कोशिश की तो उन्होंने साफ़ कह दिया कि लड़का कितना भी अच्छा हो हम तुम दोनों की शादी के सख़्त खिलाफ़ हैं। नयना ने गुप्ता जी से कहा कि वो शादी करेगी तो अब्बास से ही इस पर गुप्ता जी इतना आग बबूला हुए कि उन्होंने नयना को वापस मुंबई भेजने से मना कर दिया। नयना को कुछ समझ नहीं आया कि वो क्या करे तो उसने बीमारी का बहाना बनाकर एक हफ्ते की छुट्टी और ले ली।
उधर अब्बास के घर में भी कुछ ऐसा ही माहौल था। उसके मां बाप भी सिर्फ़ इसीलिए इस शादी के खिलाफ़ थे क्योंकि वो मुसलमान थे और नयना हिंदू। अब्बास ने बहुत कोशिश की उन्हें ये समझाने की कि उन्हें इस दकियानूसी सोच छोड़ देना चाहिए लेकिन वो नहीं माने आखिर अब्बास ने भी उनसे दो टूक कह दिया कि शादी तो वो नयना से ही करेगा और मुंबई लौट आया। वैसे नयना और अब्बास दोनों साथ लौटने वाले थे लेकिन नयना के घर जो हुआ उसे पता था और नयना ने उससे कहा था कि वो कैसे भी एक हफ़्ते बाद लौट आएगी। कुछ दिन नयना ने गुप्ता जी को समझाने का प्रयास किया लेकिन वो भी उसी पुरातनपंथी सोच का शिकार थे।
जब नयना ने देखा कि उसके माता पिता टस से मस नहीं होंगे और न ही उसे वापस मुंबई जाने देंगे तो उसने एक योजना बनाई। उसने उनसे कहा कि वो अब्बास को छोड़ देगी लेकिन वो मुंबई जाकर नौकरी से इस्तीफ़ा देकर दो महीने का नोटिस पीरियड पूरा करके लौटना चाहती है। गुप्ता जी के मन में ना जाने क्या आया वो मान गए लेकिन उन्होंने नयना से कहा कि वो वहीं अपने घर से ही अपनी कंपनी को अपना इस्तीफ़ा भेज दे। नयना के पास कोई चारा नहीं था उसने ऐसा ही किया और दो महीने बाद लौटने की बात कहकर मुंबई चली गई।
अब्बास बेसब्री से नयना का इंतज़ार कर रहा था वहीं नयना को भी उसके बिना एक एक दिन एक साल जैसा लग रहा था। इतने दिन अलग रहने के बाद दोनों समझ गए थे कि अब उनका अलग होना असम्भव था। दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। वो अलग होना नहीं चाहते थे और उनके घरवाले उन्हें साथ रहने नहीं देना चाहते थे। यूं ही दो महीने पूरे हो गए अगले दिन नयना को वापस जाना था। गुप्ता जी का फोन आया तो उसने उनसे कहा कि वो अगले दिन चलेगी और उसके अगले दिन घर पहुंच जाएगी।
नयना और अब्बास बेहद दुखी थे उन्होंने जुहू बीच जाकर सूर्यास्त देखने का मन बनाया। समुद्र किनारे बैठे बैठे ना जाने दोनों के दिमाग में क्या कौंधा, दोनों ने एक दूसरे की आंखों में देखा और हाथ पकड़कर समुद्र की ओर बढ़ गए। जब तक आस पास के लोग कुछ समझ पाते दोनों उस गहरे समुद्र की लहरों में खो गए। लोगों के शोर मचाने पर गोताखोर समुद्र में कूदे और दोनों को बाहर निकाल लाए लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दोनों एक साथ अनंत यात्रा पर चल पड़े थे जहां कोई उन्हें अलग नहीं कर सकता था। पुलिस ने आकर उनकी तलाशी ली तो दोनों की जेब से पहचान पत्र निकाल कर दोनों के घर सूचना दी। दोनों घरों में जैसे आसमान टूट पड़ा।
गुप्ता जी जल्दी से मुंबई के निकले और अब्बास के पिता भी मुंबई जाने को रवाना हुए। दोनों एक साथ ही शव गृह पहुंचे, दोनों ने एक साथ ही नयना और अब्बास की शक्ल देखी और फिर एक दूसरे की तरफ़ देखा। दोनों एक दूसरे की तरफ़ बढ़े और गले मिलकर खूब रोए। रोते रोते अब्बास के पिता ने कहा, ” काश हम पहले गले मिले होते”। गुप्ता जी के मुंह से भी अनायास ही निकला, “काश”! बस दोनों साथ ही अब्बास और नयना के शव लेकर अपने अपने घर लौट आए। नयना ने जिस दिन घर लौटने का वादा किया था ठीक उसी दिन वो अपने घर पहुंच गई। उसने ना अपने पिता से किया हुआ वादा तोड़ा ना अब्बास से।
इस घटना के बाद से गुप्ता जी कभी खुद को माफ़ नहीं कर सके। जिस समाज की वो बात करते थे वही लोग उन्हें संकुचित सोच का बता रहे थे। जब भी घर से निकलते तो लोगों की निगाहें देखकर उन्हें लगता जैसे वो कह रहे हों, “इस सदी में भी ऐसी दकियानूसी सोच का शिकार नहीं होते तो बेटी आज ज़िंदा होती”। ज़्यादा दिन गुप्ता जी ये सह नहीं सके और अपना दिल्ली का मकान बेचकर अपने पुश्तैनी मकान में लखनऊ चले गए। नयना को याद करते करते यूं ही रात से सुबह हो गई। उगते हुए सूरज को देखकर गुप्ता जी का ध्यान भंग हुआ और नम आंखों से उन्होंने एल्बम एक बार फिर अलमारी में बंद कर दी। अब उन्हें शर्मा जी की बातें याद आईं और उन्होंने मन में सोचा कि, “काश आलोक मेरे जैसी गलती न करे”।
फिर उठकर गुप्ता जी अपने रोज़ के कामों में लग गए और शाम को पार्क में जाकर शर्मा जी से मिले। आज शर्मा जी परेशान नहीं थे। उन्होंने गुप्ता जी का मुंह मीठा करवाया और उन्हें बताया कि उन्होंने खुद जाकर बेटे का रिश्ता उसकी मनपसंद लड़की से तय कर दिया। गुप्ता जी बेहद खुश हुए और शर्मा जी से बोले,” इस दुनिया में अपने बच्चों की खुशी से बढ़कर और कोई खुशी नहीं है। लोगों का क्या है वो गीत तो तुमने सुना ही होगा, कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना”। इतना कहकर उन्होंने शर्मा जी को गले लगकर बधाई दी और अपने घर लौट गए।
परिचय
गीतिका सक्सेना का जन्म 18 सितंबर 1982 को मेरठ में हुआ। आपने उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स में बी.टेक किया और कुछ वर्ष एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सॉफ्टवेयर डिवेलपर के पद पर कार्यरत थीं । आप एक गैर सरकारी संगठन होलीफेथ वेलफेयर सोसाइटी की मेंबर हैं जिसका उद्देश्य कन्याओं को आगे बढ़ाना है। हिंदी प्रधान परिवार में जन्म लेने के कारण बचपन से ही हिंदी में आपकी गहरी रुचि रही। आपके नाना स्व. कवि श्री भारत भूषण जी एक जाने माने कवि थे। आपने अब तक अनेकों कथाएं, लघु कथाएं और कविताएं लिखी हैं जो कि प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय एवम् राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको नव प्रज्ञा फाउंडेशन द्वारा “नारी रत्न सम्मान – 2023”, साहित्य के सितारे, पश्चिम बंगाल द्वारा “आधुनिक मीरा सम्मान – 2023”, सुरभि साहित्यिक संस्थान, मुंबई और शांति फाउंडेशन, गोंडा (उत्तर प्रदेश) द्वारा “ओजस्विनी नारी सम्मान – 2023”, काशी कविता मंच द्वारा – “मानवीय मूल्य सम्मान – 2023”, “क्रांतिवीर सम्मान -2023” जैसे सम्मानों से सम्मानित किया गया है।