आनंदमय जीवन जीने के लिए प्रसन्न रहना जरूरी
आनंदमय जीवन जीने के लिए प्रसन्न रहना जरूरी, जो मनुष्य के मन की बढ़ती लालसा को नियंत्रण में रखता है उसका चित एवं स्वभाव शांत, सरल और निष्कपट रहता है। वह सांसारिक जंजाल में उलझते … देहरादून से ओम प्रकाश उनियाल की कलम से…
जीवन को सुखमय बनाने के लिए नए-नए ताने-बाने बुनना, सपने देखना मनुष्य का स्वभाव होता है। जबकि, उसे पता होता है कि जितने भी ताने-बानों का जाल उसने बिछाया है या सपने संजोए हैं उनमें वह उलझकर रह जाएगा। लेकिन, मन की लालसा उसको उकसाती रहती है जो कि बेकाबू होती रहती है।
जो मनुष्य के मन की बढ़ती लालसा को नियंत्रण में रखता है उसका चित एवं स्वभाव शांत, सरल और निष्कपट रहता है। वह सांसारिक जंजाल में उलझते हुए भी बहुत ही सुगमता से जीवन का आनंद भोगता है। इंसान अपनी जिंदगी स्वच्छंदता से नहीं जी रहा है। विभिन्न कारणों से दबावभरी जिंदगी और अनेक प्रकार के संघर्षों से जूझने के कारण कुंठा का शिकार बनता रहा है।
इसीलिए शांति की तलाश में इधर-उधर भटकता फिरता है। जिसके पास सबकुछ है वह भी संतुष्ट नहीं है और जिसके पास कुछ भी नहीं है या कम है वह भी असंंतुष्ट। जीवन को गतिमान बनाए रखने के लिए सपने संजोना भी जरूरी है।
लेकिन संजोए सपने पूरे न होने पर उदासीनता, हताशा व निराशा का भाव मन में लाना जीवन को नरक बनाने के समान है। विषम परिस्थितियों में भी खुश रहना सीखिए। प्रसन्नता किसी भी प्रकार के तनाव से मुक्ति दिलाने की अचूक दवा है।
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