कवि राजीव कुमार झा से पत्रकार विनोद आनंद की बातचीत
(देवभूमि समाचार)
विनोद आनंद : पिछले कुछ दिनों से आपकी कविताएं विभिन्न सोशल प्लेटफार्म पर लगातार पढ़ी जा रही है। ऐसी कौन सी परिस्थिति है, जिससे आप को कविताएं लिखने की प्रेरणा मिलती है?
राजीव कुमार झा : इसमें जीवन की तमाम परिस्थितियों का समावेश रहा है और अक्सर किसी अकेलेपन से कवि अपनी कविताओं में बाहर आकर व्यापक समाज जीवन व्यवस्था के भीतर का हिस्सा बनकर उसमें यथास्थिति की जगह नयी बातों को स्थापित करने की जद्दोजहद से जुड़ा दिखाई देता है.
विनोद आनंद : आपकी कविताओं का बिम्ब विधान और प्रतिपाद्य विषय प्रकृति होती है, प्रकृति से संवाद के माध्यम से आप क्या कहना चाहते हैं? प्रकृति के बहाने अगर मन की कोई टीस भावबोध के धरातल पर आप व्यक्त करना चाहते हैं तो इस पर आप कुछ खुलासा कर सकते हैं?
राजीव कुमार झा: कविता जिंदगी की तमाम बातों का खुलासा करती है और कबीर -तुलसी का काव्य इसका प्रमाण माना जाता है. हमारे मौजूदा जीवन में प्रकृति और परिवेश काव्य के उपादान के रूप में मनुष्य की मन: स्थितियों में भी वैयक्तिक स्तर पर कई तरह के विक्षोभों को जन्म देते रहते हैं . मेरी कविता आत्मिक धरातल पर प्रकृति से प्रेम के सहारे जीवन के इन संकटों में सबसे संवाद कायम करती है और यह निरंतर टीस का अहसास कराती रहेगी.
विनोद आनंद : आपकी कविताओं में प्रेम, प्रेयसी की याद, नदी और झरना के बहाने कुछ अतृप्त भावनाएं जो काव्य में प्रकट होना चाहती हैं,ऐसा क्या है जो आप कहना चाहते हैं।
राजीव कुमार झा : कविता तृप्त मन के सहारे ही लिखी जाती है और कवि अपने अतृप्त मन में दूसरों के जीवन के दुःख तकलीफों को समेटता है. हमारी इच्छाएं कामनाएं हमें जीवन पथ पर अग्रसर करती हैं . आपने मेरे काव्य के जिन प्रसंगों के बारे में जानना चाहा है, उनमें जीवन से संवाद के भाव हैं . नदी, झील , झरना के बिना कविता कैसे किसी बात को प्रकट कर पाएगी .
विनोद आनंद : आप एक प्रशासनिक अधिकारी के पुत्र रहे हैं, जीवन में बालपन एक सम्पन्न माहौल में बीता, फिर संघर्ष और संघर्ष से उत्पन्न पीड़ा आपकी भावनाओं को इन सब परिस्थितियों ने किस तरह से प्रभावित किया है..?
राजीव कुमार झा : जीवन में कुछ भी नहीं कर पाना और उसकी पीड़ा को निरंतर झेलना मेरा मन इससे सदा दूर बना रहा . समाज में ऊंचे दर्जे के लोगों का जीवन कई तथ्यों को उजागर करता है . मैं मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई के बाद फ्री लांसर के तौर पर डाक्यूमेंट्री और सीरियल वगैरह बनाने के बारे में सोचता रहा लेकिन टेलीविजन और वीडियो इंडस्ट्री का पूरा तंत्र कुछ खास किस्म के छोटे-बड़े माफियाओं की चपेट में है.पिछले आठ – नौ सालों से में गांव में हूं और यहां एक हायर सेकेण्डरी स्कूल में पढ़ाता हूं । मैं बराबर कमाता रहा और सामान्य रूप से घर परिवार की जिम्मेदारी को निभाता रहा .यह मुझे सबसे अच्छा लगता है. पिता जी की बात जहां तक है , वह बिहार सरकार के एक प्रशासनिक अधिकारी थे और उनकी बात अलग है.
विनोद आनंद : आप अपने परिवार ,और वर्तमान में अपने पेशा के बारे में बताएं। आप राजधानी दिल्ली में कई सालों तक रहे. साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों का सान्निध्य आपको मिला ,यह सब अनुभव कैसा रहा..?
राजीव कुमार झा : मेरे पिता जी ने मुझे 1989 में मुझे बी .ए .की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली भेजा था और यहां उस वक्त मेरे फुफेरे भाई मनोज कुमार झा रहते थे और वह जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इतिहास विभाग में शोध अध्येता थे . मैंने अपना नाम यहां लिखवा लिया और 1992 में बी .ए.की पढाई पूरी करने के बाद इसी यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में एम .ए.किया . जामिया मिल्लिया इस्लामिया का साहित्यिक परिवेश अच्छा था और यहां से प्रकाशित होने वाली वार्षिक पत्रिका तहजीब में ही सबसे पहले मेरी कुछ कविताएं प्रकाशित हुई थीं.यह पत्रिका एक ही फाइल में हिंदी,अंग्रेजी और उर्दू में प्रकाशित होती थी. इसके अलावा यहां हिदी समिति की पत्रिका दृष्टि में भी मेरी कविता प्रकाशित हुई थी.
यहां अक्सर साहित्यिक संगोष्ठियां भी हुआ करती थीं और एक ऐसी ही संगोष्ठी में मैंने एक बार त्रिलोचन और नामवर सिंह का भाषण सुना था .एक बार मैं हिंदी अकादमी, दिल्ली के द्वारा आयोजित कालेजों के विद्यार्थियों के काव्य समारोह उभरते स्वर में भी काव्य पाठ के लिए गया था और वहां मंगलेश डबराल मुख्यअतिथि के रूप में पधारे हुए थे.दिल्ली में आगे भारतीय ज्ञानपीठ में मेरा आना – जाना शुरू हुआ और यहां सुशील सिद्धार्थ, कुमार अनुपम और कुणाल सिंह से काफी अपनापन कायम हुआ और मैं यहां नौकरी भी करने लगा . रविन्द्र कालिया उस समय यहां निदेशक पद पर विराजमान थे! गुलाबचंद जैन यहां किताबों के प्रकाशन के प्रभारी थे.
विनोद आनंद : अगर आपके जीवन के रोचक प्रसंग जिसे आप जीवन भर नही भूल पाएंगे ऐसा कुछ है तो बताएं.!
राजीव कुमार झा : पिता जी का अचानक समय से पहले मुझे छोड़ कर चला जाना. उसके बाद उनकी जमा पूंजी का बर्बाद हो जाना. घर में गरीबी और अभाव का आ जाना. दिल्ली में कुछ निकट के दोस्तों से अचानक कायम होने वाला अलगाव. एक बार विवाहित होने के बावजूद किसी लड़की से प्रेम करने में संलग्न होना. दिल्ली से किसी दिन अपने गांव लौट आना यह सब ऐसी कुछ बातें हैं जो भुलाए नहीं भूलतीं.
विनोद आनंद : हाल में आपका एक काव्य संकलन शॉपिजन पर आया है. उस पर कुछ टिप्पणी दें और काव्य के बहाने आप समाज को क्या कहना चाहते हैं..?
राजीव कुमार झा : पहले कविता में जीव और परमात्मा का संवाद इसका प्रमुख प्रतिपाद्य हुआ करता था लेकिन अब नये प्रसंगों में कविता कई जगहों को घेरती दिखाई देती है और इसमें मेरे मन की अपनी कुछ वैयक्तिक बातें भी कविता के रूप में समाज के सामने आयी हैं . इन्हें पढ़कर आप सारी बातों को बेहतर ढंग से जान सकते हैं!
विनोद आनंद : अंत में अंतर्कथा के पाठकों से आप क्या कहना चाहेंगे..?
राजीव कुमार झा : जीवन में सबसे प्रेमभाव बनाए रखना और सच्चाई – न्याय के नाम पर लोकतंत्र के भीतर फैलते पाखंड आडंबर से बचते हुए इस सद्भावना संघर्ष में सभी लोग आगे बढ़ें यह बात विशेष रूप से मैं सबसे कहना चाहूंगा.