राजीव कुमार झा से कुमार बिन्दु की एक संक्षिप्त बातचीत

(देवभूमि समाचार)

राजीव कुमार झा का नाम हिन्दी कविता में कुछ खास जाना पहचाना नहीं है लेकिन यदाकदा उनकी कविताएं लेख समीक्षाएं और लेखकों के साक्षात्कार प्रकाशित होते रहे हैं. हाल में उनका कविता संग्रह शाम की बेला प्रकाशित हुआ है . यहां प्रस्तुत है उनसे कुमार बिन्दु की एक संक्षिप्त बातचीत!

कुमार बिन्दु : प्रकाशकों का कहना है कि आजकल हिंदी कविताओं के संग्रह बिक नहीं रहे हैं। क्या पाठक हिंदी कविता से परहेज़ करने लगे हैं ?

राजीव कुमार झा : समाज में कविता के प्रति लोगों के रुझान के बारे में कुछ कह पाना कठिन हो गया है. प्रकाशन के धंधे में अब काफी बदलाव आया है और डीजिटल वेब पर आधारित आन स्क्रिन कविता की लोकप्रियता ने प्रकाशकों के कारोबार को प्रभावित किया हो. हिंदी में मुख्यधारा के साहित्य के प्रकाशकों के अपने पाठक और उनका अपना बाजार है! अब कविता लेखन की प्रवृत्तियों में बदलाव के साथ नये कविता संग्रहों का भी खूब प्रकाशन हो रहा है.अब किताबें आनलाइन खूब खरीदी बेची जा रही हैं! कविता लेखन को विचारबोध और भाव परिष्करण का उपादान मानकर इसके प्रति प्रेम और लगाव का नया दौर समाज में शुरू हुआ है और समाज के अभिजात्य तबके में फेसबुक लाइव का प्रचलन भी व्यापक होता जा रहा है.समाज में कविता की बढ़ती लोकप्रियता के साथ नये कविता संग्रह भी रोज प्रकाशित हो रहे हैं!

कुमार बिंदु : क्या ऐसा नहीं है कि चंद कवियों को छोड़कर अधिकांश रचनाकारों की कविताएं कथ्य व शिल्प की दृष्टि से बेहद लचर होती हैं ?

राजीव कुमार झा : यह बहुत स्वाभाविक है और संवेदना और अनुभूति का बासीपन कविता के कलात्मक आवरण को निरंतर कमजोर कर रहा है.इसमें वैचारिकता की कमी के अलावा भावबोध की प्रचलित रूढ़ियां कविता लेखन को निरंतर बेजान और लचर बना रही हैं और इसके उदाहरण के तौर पर तमाम शैलियों में लिखी जाने वाली कविताओं को इस चर्चा विमर्श में शामिल किया जा सकता है. मुक्त छंद में लिखी जाने वाली कविताओं से लेकर कविता के पारंपरिक रूपरंग में रची बसी कविताएं और विभिन्न प्रकार की गजलें इन सबमें रूप और अंतर्वस्तु का संकट साफ – साफ उभरता दिखायी देता है. हिंदी के मुख्यधारा की कविता अपनी सर्जना में सदैव प्रतिभा का प्रदर्शन करती रही है! हाल के दिनों में लेखन का यह माहौल अब जरूर बदलता दिखाई दे रहा है . साहित्य के मुख्य लेखन की प्रवृत्तियों से बाहर जो लोग कविताएं लिख रहे हैं उनमें कई तरह के लोग शामिल हैं और उनकी कविताओं में देश समाज जनजीवन के संदर्भों से उपजे कलाबोध की प्राय: कमी दिखाई देती है .

कुमार बिन्दु : नए रचनाकारों में क्या प्रमुख कमी आप महसूस करते हैं ?

राजीव कुमार झा : नये रचनाकार साहित्य साधना को बहुत आसान काम समझते हैं और उनमें गहनता के स्तर पर भावबोध की कमी दिखाई देती है. वह साहित्य की दुनिया में किसी तरह से अपनी पहचान कायम करके प्रतिष्ठा पाकर लेखन में नाम कमाकर पुरस्कार सम्मान के फायदों को पाना ही अपने जीवन का लक्ष्य समझने लगते हैं.इससे उनके लेखन में कई तरह की कमियां दृष्टिगोचर होने लगती हैं .

कुमार बिंदु : केदारनाथ अग्रवाल ने स्वकीया प्रेम की कविताएं लिखी है। उर्दू के शायर फैज अहमद फैज, साहिर और कैफी आजमी ने भी अनेक प्रेम परक नज्में लिखी हैं। लेकिन, उन्होंने प्रेम परक रचनाओं को सामाजिक संदर्भ प्रदान किया है। हिंदी में यह प्रवृत्ति- परंपरा नहीं दिखती है। ऐसा क्यों ?

राजीव कुमार झा : केदारनाथ अग्रवाल की स्वकीया प्रेम की कविताएं उनके काव्य संग्रह हे मेरी तुम में संग्रहित हैं . समाज में व्यक्ति के लिए परिवार उसके जीवन का केन्द्रबिन्दु है और केदारनाथ अग्रवाल की कविताएं अपनी इस भावाभिव्यक्ति में सामाजिक जीवन की व्यापक अनुभूतियों को समेटती हैं . उनमें कवि ने आदमी के जीवन की सहज अनुभूतियों को काव्य गरिमा प्रदान की है. हिन्दी में प्रेम के माध्यम से जीवन की समस्त व्यथा और पीड़ा को कवियों ने सदैव उकेरा है और सूरदास, मीरा,रसखान से लेकर जयशंकर प्रसाद, निराला और महादेवी का काव्य इसका अप्रतिम साक्ष्य माना जा सकता है .फैज की कविताएं हमारी उसी काव्य परंपरा के विस्तार के रूप में देखी जा सकती हैं . उन्होंने हिंदी कविता की प्रगतिशील काव्यधारा को अपनी जीवन चेतना से गहराई से अनुप्राणित किया है. हिंदी की समकालीन कविता में शब्दों के समाहार को लेकर कोई भ्रम कायम नहीं होना चाहिए.

कुमार बिन्दु : फेसबुक पर रोजाना कविताएं पोस्ट की जाती हैं। कुछ कविताएं अवश्य हांट करती हैं। वो हृदय व मस्तिष्क को उद्वेलित करती हैं। लेकिन, अधिकांश रचनाओं में काव्यात्मकता- कलात्मकता का अभाव दिखता है। आपका क्या ख्याल है ?

राजीव कुमार झा : फेसबुक पर हिंदी के अच्छे कवि अपनी कविताएं पोस्ट नहीं करते और उन्हें लगता है कि हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं से बाहर चले जाएंगे . इस प्रवृत्ति में बदलाव आना चाहिए लेकिन यह आसान नहीं है और फेसबुक समूहों में पुराने प्रतिष्ठित कवियों की कविताएं तो आती हैं लेकिन आज के दौर के कवियों की कविताओं को भी उसमें शामिल किया जाना चाहिए.

कुमार बिन्दु : आप कवि व समीक्षक हैं। एक समीक्षक की दृष्टि से वर्तमान काव्य संसार कैसा है ? कौन- कौन कवि आपको प्रभावित करते हैं ?

राजीव कुमार झा : साहित्य से मेरा लगाव है और इसे मैं सबके भीतर देखना चाहता हूं. कवि या समीक्षक मैं खुद को ऐसा कुछ नहीं मानता . आज का समय और इसके भीतर आदमी के बदलते जीवन की व्यथा को प्रामाणिकता से उजागर करने वाला साहित्य मौजूदा दौर में ठीक से नहीं लिखा जा रहा है और इसे साहित्य लेखन की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखा जाना चाहिए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights