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फीचर

साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा डॉ पल्लवी का बचपन

डॉ पल्लवी सिंह अनुमेहा से पत्रकार राजीव कुमार झा की बातचीत...

साक्षात्कार : साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा डॉ पल्लवी का बचपन, डॉ पल्लवी सिंह अनुमेहा से पत्रकार राजीव कुमार झा की बातचीत... "बचपन से ही मेरा पूरा परिवेश साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा। इस कारण मेरा रुझान साहित्य की ओर स्वभावत: कायम रहा है। साहित्य का संस्कार मुझे मेरे पिता से मिला है।" मेरी दृष्टि में हिंदी भाषा ही है जो अपने सीधे और सरल रूप से जनजीवन तक अपनी बात को उन तक पहुँचा पाती है।साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा डॉ पल्लवी का बचपन, डॉ पल्लवी सिंह अनुमेहा से पत्रकार राजीव कुमार झा की बातचीत… “बचपन से ही मेरा पूरा परिवेश साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा। इस कारण मेरा रुझान साहित्य की ओर स्वभावत: कायम रहा है। साहित्य का संस्कार मुझे मेरे पिता से मिला है।” मेरी दृष्टि में हिंदी भाषा ही है जो अपने सीधे और सरल रूप से जनजीवन तक अपनी बात को उन तक पहुँचा पाती है।

  • आप अपने घर परिवार के बारे में जानकारी दीजिए।

मेरी जन्मभूमि हरदा म.प्र. है। मेरे पिता का तबादला मुलताई जिला बैतूल में होने के कारण मेरी सम्पूर्ण शिक्षा मुलताई में ही हुई है। मेरे पिता साहित्यिक अभिरुचि वाले रहें है और माँ संस्कृति से जुड़ी हुई, तो यही दोनों का समागम मुझे एवं हमसब भाई-बहनों को मिला है।मेरे पिता शहर के प्रतिष्ठित स्कूल में हिंदी के व्याख्याता के पद से रिटायर हुए थे। और मेरी माँ संगीत में पारंगत रहीं। आज वो दोनों ही अनन्त सत्ता में विलीन है किंतु उनका आशीर्वाद सदैव हमारे साथ है। मैं वर्तमान में बैतूल जिले के आठनेर तहसील के गांव माण्डवी में श्री गणेश महाविद्यालय में प्राचार्या के पद पर कार्यरत हूँ।

  • आप मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की हैं। यहां के साहित्यिक परिवेश के बारे में बताएं।

मध्यप्रदेश का बैतूल जिले को भौगोलिक दृष्टि से देखें तो यह भारत देश के केंद्र बिंदु है। यह सतपुड़ा के विध्यांचल में बसा हुआ प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण जिला है।यहां पर भगवान बालाजी का विशाल मंदिर है जो पांचवें धाम के रूप में जाना जाता है। यहाँ पर कई साहित्यिक गतिविधियां होती रहती हैं। अनेक साहित्यक संस्थाएं हैं जो समय-समय पर कवि सम्मेलन एवं संगीत से जुड़े हुए कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं। ताप्ती महोत्सव जैसे कार्यक्रम तीन – चार दिन के होते हैं। यह सम्पूर्ण जिला संस्कृति और साहित्य से जुड़ा हुआ है।

  • हिंदी भारत में जनभाषा है। शुरू से इसमें रचित साहित्य का समाज से गहरा लगाव रहा है। हिंदी भाषा और साहित्य जनता को क्या संदेश देती है ?


मेरी दृष्टि में हिंदी भाषा ही है जो अपने सीधे और सरल रूप से जनजीवन तक अपनी बात को उन तक पहुँचा पाती है।आज के संदर्भ में समाज में मानवीय मूल्य तथा पारिवारिक मूल्य धीरे – धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।ज्यादातर व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिये रिश्ते निभाते हैं।अपनी आवश्यकताओं के हिसाब से मिलते हैं तब साहित्यकारों की कलम ही है जो उन्हें उचित मार्गदर्शन देती है। क्योंकि साहित्य समाज की विविधता, जीवन शैली और लोक कलाओं का संरक्षण होता है। साहित्य समाज को स्वस्थ कलात्मक ज्ञानवर्धक मनोरंजन प्रदान करता है जिससे सामाजिक संस्कारों का परिष्कार होता है। यह कार्य एक रचनाकार की लेखनी से ही संभव है।

  • आपने मैत्रेयी पुष्पा के साहित्य पर शोधकार्य किया है। उनके साहित्यिक अवदान के बारे में बताएं।


मेरे द्वारा मैत्रेयी पुष्पा का कथा साहित्य पर शोध कार्य किया गया है। एक नही उनके नौ उपन्यासों पर संवेदना और शिल्प पर कार्य करते हुए पीएचडी की उपाधि बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा प्रदान की गई है। मेरी दृष्टि में मैत्रेयी पुष्पा ही एक ऐसी लेखिका रही हैं जिन्होंने ग्रामीण परिवेश के घोर यथार्थ को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया है और वे इसमे सफल भी हुई हैं।आलोचनाओं का शिकार होने के बावजूद उन्होंने सत्य को समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया है।

डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’ का परिचय


हिन्दी की बिंदास और बेबाक विचारों वाली लेखिका है। वे अपनी बात को एक सच्चाई के साथ लोगों तक पहुँचाती हैं। उन्होंने ग्रामीण स्त्री को अपने अधिकारों से परिचय कराया है। वे कहती हैं कि स्त्री की मुक्ति सिर्फ देह की मुक्ति नहीं है। उसके द्वारा वे औरतों में जागरूकता प्रदान करती दिखलाई देती हैं।इसलिए उन्होंने स्त्री विमर्श पर कार्य ज्यादा किया है और समाज को उससे परिचित कराया है।

  • आप अपनी किसी प्रिय कविता के बारे में बताइए।


महादेवी वर्मा की कविता-
“जो तुम आ जाते एक बार” मेरी, प्रिय कविता है। यह इस प्रकार है।
जो तुम आ जाते एक बार कितनी करुणा कितने सन्देश पथ पर बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार-तार अनुराग भरा उन्माद
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार हँस उठते पल में आद्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखे देती सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार।।

डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’ का परिचय


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साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा डॉ पल्लवी का बचपन, डॉ पल्लवी सिंह अनुमेहा से पत्रकार राजीव कुमार झा की बातचीत... "बचपन से ही मेरा पूरा परिवेश साहित्य और संस्कृति से जुड़ा रहा। इस कारण मेरा रुझान साहित्य की ओर स्वभावत: कायम रहा है। साहित्य का संस्कार मुझे मेरे पिता से मिला है।" मेरी दृष्टि में हिंदी भाषा ही है जो अपने सीधे और सरल रूप से जनजीवन तक अपनी बात को उन तक पहुँचा पाती है।

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