मन चंगा तो कठौती में गंगा

सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
व्यक्ति का मन गंगा की तरह पवित्र होना चाहिए। मन में किसी भी प्रकार का छल कपट, धोखाधड़ी की भावना, कटुता, राग ध्देष नहीं होना चाहिए। अगर मन में उपरोक्त प्रकार की गंदगी भरी पड़ी हुई हैं तो उसका मंदिर जाकर पूजा अर्चना करना, जल चढाना, धर्म स्थलों पर जाना सब व्यर्थ हैं। ईश्वर उन्हीं की प्रार्थना स्वीकार करते हैं जिनका मन गंगा की तरह पवित्र होता हैं। कहते है कि रैदास जी जूते ठीक करने का काम करते थे और जाति से मोची थे। लेकिन गंगा के बड़े भक्त थे। गरीबी के कारण वे कहीं आते जाते नहीं थे। फिर भी अपनी कमाई में से कुछ पैसा निस्वार्थ भाव से सेवा के कार्यों में नियमित रूप से लगाते थे। वे अपने नित्य कर्म के साथ ही साथ हर वक्त गंगा मैया का स्मरण करते रहते थे।
एक गंगा स्नान के लिए जाते समय दो राहगीर रैदास के पास अपना जूता ठीक कराने के लिए रूके। जब रैदास जी को पता चला कि ये राहगीर गंगा स्नान को जा रहे है तो रैदास जी ने उन राहगीरों को कुछ पैसे देते हुए कहा कि आप लोग गंगा स्नान को जा ही रहे हो तो मेरी ओर से भी ये कुछ पैसे गंगा मैया को चढा देना। राहगीरों ने रैदास जी से पैसे लिए और जूते ठीक करा कर गंगा स्नान को चले गए। गंगा स्नान करने के बाद उन्होंने अपनी ओर से तो गंगा मैया को पैसे चढ़ा दिए लेकिन रैदास जी ने जो पैसे दिए थे उन्हें अपने पास ही रख लिए। जब राहगीर वहां से जाने लगे तभी गंगा मैया ने राहगीरों को आवाज लगाई कि रैदास जी ने जो पैसे दिए वो कहां हैं।
अब राहगीरों के हाथ पांव फूल गए उन्होंने तत्काल अपनी भूल स्वीकार की और वो पैसे गंगा मैया को चढा दिए। गंगा मैया ने प्रसन्न होकर उन्हें एक सोने का कंगन दिया और कहा कि यह कंगन मेरी ओर से रैदास को दे देना। सोने का कंगन पाकर उन राहगीरों की नियत बिगड़ गई और उन्होंने वह कंगन सुनार को बेच दिया। सुनार ने वह कंगन राजा को बेच दिया। राजा ने वह कंगन रानी को जाकर दे दिया। एक कंगन को देखकर रानी ने कहा कि एक कंचन किस काम का। मुझे तो दूसरा ऐसा ही कंगन चाहिए। राजा ने सुनार को बुलाया। सुनार ने राहगीरों को बुलाया। तब राहगीरों ने सारी बात राजा को बताई।
राजा तत्काल सुनार, राहगीरों व अपने सिपाहियों के साथ रैदास जी के पास पहुंचे। जब रैदास जी ने यह मामला सुना तो गंगा मैया से मन ही मन प्रार्थना की कि हे गंगा मैया! आपने मुझे कैसे धर्म संकट में डाल दिया। तभी गंगा मैया ने रैदास जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारी भक्ति से मैं बहुत खुश हूं। आप अपने इस पानी के पात्र में (जिसमें मोची चमड़ा भिगोते हैं) हाथ डाल कर एक बार गंगा मैया की जय हो बोल दीजिए। तत्काल दूसरे हाथ का कंगन प्रकट हो जायेगा।
बस रैदास जी ने राजा, सुनार, राहगीरों व सिपाहियों के सामने ही गंगा मैया को निस्वार्थ भाव से याद किया और पानी के उस पात्र में कंगन प्रकट हो गया। यह देखकर वे सभी दंग रह गए। रैदास जी की गंगा के प्रति सच्ची भक्ति का ही यह परिणाम था। तभी से यह कहावत प्रचलित हुई कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। कहने का मतलब यह है कि आप जो भी कार्य करें वह निस्वार्थ भाव से करे और पवित्र मन के साथ कीजिए। आपके हर कार्य हर समय सफल होंगे। अतः मन को साफ रखें।
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