बेटियाँ

कविता नन्दिनी

ऐसी दुनिया बनानी अभी है हमें
जिसमें भरती उड़ाने रहें बेटियाँ
बेटी-बेटे तो आँखों की हैं पुतलियाँ
बेटों के साथ बढ़ती रहें बेटियाँ।

हों कुशल से कुशल नागरिक बेटियाँ
बेहिचक हर डगर पर चलें बेटियाँ
घर हो बाहर हो जीवन की हर राह में
मान सब का बढ़ाती रहें बेटियाँ।

अपने आँगन में पलती रहीं बेटियाँ
सारे रिश्तों में ढलती रहीं बेटियाँ
जब ज़रूरत पड़ी ज़िंदगी , जंग में
फर्ज़ की राह चलती रहीं बेटियाँ।

बेच पीहर भी ज्वाला बनी बेटियाँ
हैं अपहरण में रौंदी गई बेटियाँ
मान ‘कविता’ को घटना सहन है नहीं
सिर उठाने को मज़बूर हैं बेटियाँ।

मान – सम्मान पाती रहें बेटियाँ
विघ्न-बाधा से वंचित रहें बेटियाँ
ज़िंदगी में कभी मात खाएँ नहीं
जीतती जंग अपनी रहें बेटियाँ।

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