राजीव कुमार झा
कविता में सामाजिक विमर्श के उस दौर में जब मुक्तिबोध से लेकर नागार्जुन और इनके बाद के दौर की हिन्दी कविता अपने शब्द संसार में निरंतर पूंजीवाद-समाजवाद, लोकजीवन, खेत-खलिहान, मजदूर-किसान, अन्याय उत्पीड़न और जनसंघर्ष के वाग्जाल में अभिव्यक्ति की अवरुद्धता और एकरसता के संकट से गुजरती प्रतीत होती रही थी.
इसी दौर में आलोक धन्वा की कविताएं समकालीन हिन्दी कविता को प्राणवत्ता की दृष्टि से एक नया भाषिक सौंदर्य और विलक्षण विचारतत्वों से इसे अभिव्यक्ति की नयी दिशा की ओर उन्मुख करती दृष्टिगोचर होती हैं.
आज अपनी उम्र के 75 वें वसंत में प्रवेश करने वाले इस कवि की कविताओं में हमारे समय और समाज की विद्यमान जीवन स्थितियों को लेकर एक गहरी चिंतनशीलता का भाव प्रवाहित हुआ है और और आत्मिक धरातल पर कवि इनमें समाज के साथ चलते हुए इसे निरंतर बदलने और बेहतर बनाने का आह्वान करता है.
आलोक धन्वा की कविताओं में एक दीर्घकाल की आवाजाही मौजूद है और इनमें देश की मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर आदमी के जीवन संकट को कवि काफी निकट से उसे देखने जानने को चेष्टा में निरंतर संलग्न प्रतीत होता है! आलोक धन्वा की कविताओं में
जीवन के प्रति गहरी आशा और विश्वास का भाव प्रकट हुआ है.
समाज में जीवन की निरंतरता के साथ इसमें समाहित होने वाले बदलावों को लेकर कवि किसी विमर्श की शैली में हमारे जीवन की तमाम छोटी – बड़ी बातों के सहारे यहां एक विलक्षण काव्य संसार की प्रतीति कराता है. आलोक धन्वा की कविताएं अपनी संरचना में सरल हैं.
इनका अर्थ अभिप्राय व्यापक है और उसकी मीमांसा एक बेहद दुरुह कार्य है! शायद इसी वजह से आलोक धन्वा की कविताओं को लेकर आलोचना में सदैव एक मौन पसरा रहा ! कविता की दुनिया में इस चुप्पी का टूटना भी तय है और तभी हिन्दी में कविता के प्रवाह का पथ भी प्रशस्त होगा !
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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