क्या कभी ऐसा वक्त आएगा…?
प्रेम बजाज
सच कहा है किसी ने मां का रिश्ता बिकता नहीं,
सारे जहां में मां जैसा दूसरा कोई रिश्ता नहीं।
होकर मजबूर एक मां, मां बनने से इंकार कर देती है,
अपने ही अंश की बनकर हत्यारिन गुनाह कर देती है।
उस पल उसके दिल पर क्या बीतती होगी, जब वो
अपने ही हाथों अपने कलेजे के टुकड़े बीनती होगी।
होकर लाचार गरीब से, दहेज जुटा पाने की जब उसमें ना हिम्मत होती,
तो मासूम सी अपनी कली को किसी बुढ़े,बीमार और वहशी के साथ ब्याह करके वो रोती।
मजबूर होकर एक मां अपनी ही बेटी का व्यापार करती है,
बेचकर बेटी बीमार पति के लिए इलाज का इंतजाम करती है।
कभी बेटी का तन ढकने और भरने को पेट उसका,
अपने तन का करती सौदा दो वक्त की रोटी से भरती पेट उसका।
जीते- जी मर जाती जब बनती बिन ब्याही मां बेटी किसी की,
कोई मां-बेटी कर लेती खुदकुशी, लूट ली जाती जब आबरू किसी की।
जब बेटी किसी की दहेज के लालच में जलाई जाती है,
दर-दर भटकती मां, लगाती गुहार, ना सुनवाई की जाती है।
कब तक ये बेटियां यूं डर-डर जिएंगी, कब तक खून के आंसू पीएंगी,
कब तक एक मां छोटी सी मासूम कली का हर वक्त ख़्याल रखेगी।
क्या कभी ऐसा वक्त भी आएगा, आज़ाद घूमेगी बेटी और बेफिक्र मां रहेगी,
कब एक मां की बेटी बेधड़क होकर अकेली घर से बाहर निकलेगी।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »प्रेम बजाजलेखिका एवं कवयित्रीAddress »जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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