पुस्तक समीक्षा : मन पवन की नौका
शशांक दुबे, छिंदवाड़ा
कुबेरनाथ राय द्वारा रचित ललित निबंध संग्रह का शीर्षक “मन पवन की नौका” सार्थक सिद्ध होता जान पड़ता है।पुस्तक के सम्पूर्ण दस निबंधों में रचनाकार अपने मन की गति से चलने वाली नौका में सवार होकर पूर्वी द्वीप समूह एवं द्वीपांतर भारत की सम्पूर्ण यात्रा करता है।
निबंधों में लेखक ने दक्षिण पूर्व एशिया के द्वीप जैसे इंडोनेशिया,स्याम, वर्मा,जावा, सुमात्रा बाली एवं कंबोज आदि देशों से प्राचीन भारतीय संस्कृति का जुड़ाव को प्रमाणित कर लेखन करने का सफल प्रयास किया है।
जैसा कि कहा जाता है कि सभ्यता का विकास अधिकतर नदी तट पर ही होता है अतः “एक नदी इरावदी” और “मीकांग गाथा” जैसे निबंधों के माध्यम से लेखक ने नदी के विस्तृत वर्णन करने के साथ ही उनके किनारे बसने वाली सभ्यताओं पर विशेष प्रकाश डाला है।
“जावा के देशी पुराणों से” निबंध पढ़ना अत्यंत रुचिकर लगा।
भारतीय पुराणों और सुदूर जावा के पुराणों में पात्र और घटनाएं लगभग एक सी है जो कि भारतीय संस्कृति के तत्कालीन वैभव और विस्तार को प्रमाणित करती है इसी प्रकार “बाली द्वीप का एक ब्राह्मण” निबंध में भारतीय संस्कृति के अपभ्रंश हुए मंत्र भी वहां की लोकसंस्कृति का अभी तक अभिन्न अंग है सुनकर नई जानकारी प्राप्त होती है।
इसी प्रकार भारत के दो महान ऋषि अगस्त एवं कौंडिन्य के विषय में जानकारी प्राप्त हुई कि किस प्रकार इन दोनों ऋषियों ने सुदूर द्वीप समूह तक भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार किया जो कि आज तक वहां की परंपराओं में जीवित हैं जबकि वर्तमान में वहां अन्य धर्म के लोग बहुसंख्यक हैं।
इन द्वीपों में रामकथा और भारतीय पौराणिक चरित्र होने के संबंध में सुन रखा था किन्तु इस निबंध संग्रह ने मेरी जानकारी पर मुहर अंकित कर दी है।
द्वीपोत्तर भारत में भारतीय आर्य संस्कृति के अलावा आर्योत्तर संस्कृति एवं बुद्धिज़्म का अमिट प्रभाव भी है ऐसा इस संग्रह के माध्यम से सुंदर वर्णन प्राप्त हुआ है।साथ ही लेखक ने इस निबंध संग्रह के माध्यम से हमें रत्नाकर, महोदधि से लेकर क्षीर सागर तक की यात्रा मन पवन की नौका में बैठाकर करा दी है।प्राचीन समुद्र शास्त्र और नौका विज्ञान का वर्णन भी बहुत रोचक लगता है।
द्वीपोत्तर भारत के विषय में जानकारी चाहने वालों को ये ललित निबंध संग्रह अवश्य रुचिकर लगेगा।कुल मिलाकर निबंध संग्रह पठनीय जान पड़ता है.