साहित्य लहर
कविता : सीरत नहीं सूरत चाहने वाले

आशी प्रतिभा, मध्य प्रदेश,ग्वालियर
मिलते है सूरत चाहने वाले
सीरत कहां कोई जान पाया
दिखावा तो बड़ा सरल रहा
मन का किया कहां पहचाना ।।
उम्र गुजरती गई तमाम यूहीं ,
नहीं किरदार मिला समझने वाला
मैं दूर होता गया सबसे धीरे धीरे
यहां कौन था कभी समझने वाला ।।
लोग मिलते है तमाशबीन बनकर
एक मैं था मोहब्बत लुटाने वाला
नहीं सीखा था खफा रहना किसी से,
लोगों ने मेरा अस्तित्व ही मिटा डाला ।।
अब जो संभला हूं ,,,,,,बड़ी मुश्किल हुई
मुझे चोटिल करने को कोशिशें तमाम रही
लोग घाव देते हैं यहां अपना बनाकर ही
मैं अपनों की झूठी दुनियां से निकल आया ।।
मैंने भी दरवाजा बंद कर लिया इस दिल का
लोग ढूंढ ही लेंगे कोई सूरत को चाहने वाला
मुझे फूल से ज्यादा काटे पसंद रहे सदा से ही
कोई तो हो साथ ,झूठे लोगों से बचाने वाला ।।