इस नश्वर संसार में हमारा कुछ भी नहीं…

सुनील कुमार माथुर
इस नश्वर संसार में हमारा कुछ भी नहीं है अपितु जो कुछ भी हैं वह उस परमपिता परमेश्वर का हैं । वह हमें जैसा रखेगा हम वैसे ही रह लेंगे । हमें कभी भी भ्रम में नहीं जीना चाहिए व सदैव अच्छे व सद् कर्म करें । आज समाज में नाना प्रकार की बुराईयां, आपराधिक कृत्य, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, हिंसा, अंहकार व क्रोध का साम्राज्य व्याप्त है इसके बावजूद भी समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जो हर रोज दान-पुण्य करते हैं , निः स्वार्थ भाव से पीडित व दुखीजन की सेवा करते हैं ।
जीव जन्तुओं की सेवा करते हैं । ईश्वर भक्ति में लगें हुए हैं जिनके पुण्य कर्मों से यह देश चल रहा हैं।
भूखे को कोई रोटी देकर , कोई प्यासे को पानी पिलाकर उनकी भूख – प्यास को तो बुझा सकते हैं लेकिन किसी के कर्म के लेखों को कोई भी नहीं मिटा सकता हैं । आज का इंसान इस नश्वर संसार की चकाचौंध और सुख सुविधाओं को देखकर उसमें डूब गया और यही वजह है कि आज इंसान भजन – कीर्तन , कथा सत्संग , पूजा-पाठ व धर्म कर्म जैसे पुण्य कर्मों से दूर हो गया है ।
दुनिया के रंग में जीना तो बङा ही आसान है मगर भगवान के रंग में जीना बहुत ही मुश्किल है । रोना , हंसना, सजना सभी भगवान के लिए ही है । हम प्रकृति की रक्षा करें, वृक्ष लगाये, वातावरण साफ रखें तो वायु शुद्ध होगी और वायु शुद्ध होगी तो परमात्मा स्वतः ही खुश हो जायेगें । भगवान की कथा सुनते सुनते अगर भगवान से प्रेम न हो तो समझ लिजिये की कथा सुनने में या फिर कथा कहने में कहीं न कहीं कोई गलती जरूर हुई है । यह भारत देश संतों की भूमि का देश है । यह ज्ञानियो की भूमि है ।
मौज फकीर बन कर जीने में मिलती है । कुछ देर के लिए अमीरी-गरीबी को भूल कर फकीरी की जिंदगी जियें ।जीवन में प्रभु के नाम का स्मरण करने के लिए समय निकालिये । परमात्मा के नाम के स्मरण में जो आनन्द मिलता है वैसा आनन्द अन्यत्र दुर्लभ है । वास्तविक सुख जीवन में प्रभु का नाम लेने में ही है । ऊर्जा का घेरा हमारे आसपास ही है । जिसने ऊर्जा के घेरे को पहचान लिया मानों उसने सकारात्मक रूप को पहचान लिया ।
कथा के पांडाल से जब हम निकलते है तो अपने साथ ही बहुत सारी रचनात्मक ऊर्जा लेकर निकलते है । मगर मोबाइल पर लगातार काफी देर तक लगें रहने से हम काफी ऊर्जा बर्बाद कर देते है । घर एक मंदिर है । कन्या दुर्गा है और स्त्री शक्ति है । अतः भूर्ण हत्या न करें एवं अपनी प्रशंसा और अंहकार से सदैव दूर रहे । भगवान की मूर्ति भले ही पत्थर की बनीं होती हैं लेकिन भगवान बैठे – बैठे ही चुपचाप बहुत कुछ कर देते है । उसे बोलने की जरूरत नहीं पडती है भगवान की आंख में जादू है जिसने एक बार उसकी आंख में झांक लिया समझो वह हमेशा – हमेशा के लिए उन्ही का हो जाता है । फिर वह व्यकित दुनिया को नहीं देखता है ।
यह शरीर नौ द्वार वाला घर है । लोभ , कोध, मोह , अंहकार जैसी तमाम बुराइयां मेहमान है जो बिना बुलाये ही आ जातें है । जब हम इनकी ओर ध्यान नहीं देते हैं तो ये निराश होकर चले जाते है । इन मेहमानों के आने पर आप भगवान में बिजी हो जाइये । भगवान में स्मरण से ही सकारात्मक सोच आती है । यह शरीर शरीर नहीं है वरन यह ईश्वर का एक स्वरूप है । अतः भले ही चुप रह जाओ मगर कभी भी अपनी जुबान से अनुचित बोल न बोले ।
अगर आप पर गुरु की कृपा है । गुरु का आशीर्वाद है तो आपका कोई भी कुछ भी नहीं बिगाड सकता । जो आंसू भगवान की याद में आये हैं वे कभी भी नहीं सूखने चाहिए । भले ही सुख-दुःख में आये आंसू सूख जाए । जिस पर गुरु की कृपा होती है उसके मुख पर सदैव ही प्रसन्नता रहती है । भाव के आंसू रहते है । काम करते रहो और प्रभु का नाम जपते चलो । भगवान की लीलाऐं साधकों को साधना करनें में काफी मदद करती है।
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