एक राह बनी थी

राजेश ध्यानी सागर

एक राह बनी थी
उसमें मुझमें
वो अभागीं टूट गयी ,
एक छोंर पर मैं खड़ा
एक छोंर पर वो खड़ी।

उस राह की
वो थी ज्ञानी
मै अज्ञानी रह गया
गुस्सा भी था प्यार भी
तभी तो वो हिलती रहीं
गुस्सा सहन कर ना सकी
वो अभागी टूट गयी।

अब जोडूं तो कैसे जोंडू
वो मदद करती नहीं
मैं अज्ञानी बोलू कैंसे
गुस्सा वो पीतीं नहीं।

प्यार की डोंर थमा दे
मुझकों
उसे पकड़ कर आऊंगा
तेरे ज्ञान की छांव मे
मैं ज्ञानी बन जाऊंगा।

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¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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राजेश ध्यानी “सागर”

वरिष्ठ पत्रकार, कवि एवं लेखक

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144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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