***
साहित्य लहर

लघुकथा : केक का टुकड़ा

लघुकथा : केक का टुकड़ा |  कमरे के अंदर बैठी मां जी सोच रही थीं कि बेटा या बहू अभी केक ले कर आएगी। इस उम्मीद में उनकी नजरें दरवाजे पर ही टिकी थीं। थोड़ी देर बाद… नोयडा, उत्तर प्रदेश से वीरेंद्र बहादुर सिंह की कलम से…

“छह बज गए, कब तक एसी में बैठी रहेंगी मां जी? हड्डियां दर्द करेंगी।” नीना ने खिचड़ी का बाउल तिपाई पर रख कर खिड़की खोलते हुए कहा, “नयन के बर्थडे की पार्टी रखी है। मेहमान आएंगे, इसलिए आप बाहर मत आइएगा।”

“ठीक है बेटा।” कह कर मां जी ने अकेलेपन, उदासी और उपेक्षा का कड़वा घूंट किसी तरह गले के नीचे उतार लिया। बंद कमरे के बाहर हंसी-मजाक के साथ धीमा कोलाहल सुनाई दे रहा था। “हैप्पी बर्थडे टू यू।” का गाना टेप में बजा दिया गया था। केक कटने के साथ तालियों की गड़गड़ाहट और चियर्स की आवाज…

कमरे के अंदर बैठी मां जी सोच रही थीं कि बेटा या बहू अभी केक ले कर आएगी। इस उम्मीद में उनकी नजरें दरवाजे पर ही टिकी थीं।

थोड़ी देर बाद कोलाहल थम गया। मां जी बाहर आईं। नाइट लैम्प के हल्के प्रकाश में इधर-उधर बिखरीं डिशों में केक के टुकड़ों और नाश्ते के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था। एक डिश में पूरा ‘केक का टुकड़ा’ देख कर निस्तेज आंखों में चमक और मुंह में पानी आ गया।

इसी के साथ इसी बेटे का पहला जन्मदिन मनाने के लिए वह दृश्य भी याद आ गया, जब वह अपने पति से शाम को जल्दी आने के लिए गिड़गिड़ा रही थीं।


👉 देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है। अपने शब्दों में देवभूमि समाचार से संबंधित अपनी टिप्पणी दें एवं 1, 2, 3, 4, 5 स्टार से रैंकिंग करें।

लघुकथा : केक का टुकड़ा |  कमरे के अंदर बैठी मां जी सोच रही थीं कि बेटा या बहू अभी केक ले कर आएगी। इस उम्मीद में उनकी नजरें दरवाजे पर ही टिकी थीं। थोड़ी देर बाद... नोयडा, उत्तर प्रदेश से वीरेंद्र बहादुर सिंह की कलम से...

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights