कविता : हे सूर्य देवता तुम इतने क्यों तपते हो

सुनील कुमार माथुर
हे सूर्य देवता तुम इतने क्यों तपते हो !!
बिना वजह गर्मी का प्रकोप बनाकर
तुम अपनी ऊर्जा को क्यों बर्बाद कर रहे हो
पहले लोग क्रोधित इंसान को देखकर
कहते थे कि…
गुस्सा व क्रोध तो हर वक्त इसके नाक पर रहता हैं
लेकिन हे सूर्य देवता तुम इतने क्यों तपते हो !!
बिना वजह गर्मी का प्रकोप बनाकर
क्यों जीव – जन्तुओं को परेशान कर रहें हो
अरे अपनी यह ऊर्जा इन सरकारों को देकर
तुम इनका विधुत संकट दूर कीजिए
सता की कुर्सी वाले ए सी में बैठे है और
घरों व फैक्ट्रियों में विधुत कटौती हो रही हैं
हे सूर्य देवता हम पर रहम कीजिए
तुम जीतना तेज तप रहें हो इतनी तपन तो
भट्टी और चूल्हे की लौ में भी नहीं है
हे सूर्य देवता ! तुम्हारी गर्मी से बचने के लिए
देखों जनता ने कैसे-कैसे जतन किये हैं
हे सूर्य देवता रहम कीजिए । तपना कम कीजिए
अपनी ऊर्जा इन सरकारों को देकर
उनका विधुत संकट दूर कीजिए
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() |
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
---|
Nice poem
Nice poem
Nice poem
Very nice
Nice
Nice