अंतर्राष्ट्रीय लेखक फ्रैंक हुजूर लेखन जगत के कोहिनूर थे : गोपेंद्र

गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
सामाजिक और राजनीतिक चिंतक, देवदत्तपुर, औरंगाबाद (बिहार)
बिहार के बक्सर जिले में 21 सितंबर 1977 को जन्मे फ्रैंक हुजूर उर्फ मनोज यादव मूलतः अंग्रेजी के लेखक और जर्नलिस्ट थे।फिक्शन और नॉन फिक्शन दोनों विद्या में कलम चलाने में उनकी कोई सानी नहीं थी। सेंट जेवियर्स रांची और हिंदू कॉलेज, नॉर्थ कैंपस, दिल्ली यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही क्रिएटिव राइटिंग के सफर में शामिल हुए थे। अंग्रेजी पोएट्री और ड्रामा, खासकर ‘हिटलर इन लव विद मैडोना’ से चर्चित हुए थे।इसके बाद इन्होंने अगला नाटक ‘ब्लड इज बर्निंग’ लिखा। तीसरा नाटक ‘स्टाइल है लालू की जिंदगी’ लिखा।
मात्र बीस की आयु में बन गए थे अंग्रेजी पत्रिका के संपादक : मात्र 20 वर्ष के उम्र में अंग्रेजी पत्रिका ‘यूटोपिया’ के संपादक बन गए थे।उसके बाद रुख पाकिस्तान की ओर किया तो वहां पहुंचकर प्रख्यात क्रिकेटर और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की बहुत चर्चित राजनीतिक बायोग्राफी ‘इमरान वर्सेस इमरान: दी अनटोल्ड स्टोरी’ लिख डाला। फिर सेंट्रल लंदन के मशहूर सेक्स और एडल्ट एंटरटेनमेंट केंद्र पर आधारित संस्मरण किताब ‘सोहो’ लिखी। लंदन, लाहौर, मुंबई, दिल्ली और लखनऊ के बीच उनकी लगातार आवाज जारी रही। साल 2015 में लांच हुई समाजवादी आंदोलन और बहस की मासिक पत्रिका ‘द सोशलिस्ट फैक्टर’ के संस्थापक-संपादक, साल 2020 तक रहे। क्रिकेट, वेस्टर्न पॉप म्यूजिक और फुटबॉल की दुनिया पर पैनी नजर रखने वाले फ्रैंक अब इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं।
एनिमल लवर खासकर कैट लवर फ्रैंक हुजूर दर्जन भर बिल्लियों के परिवार के साथ रहा करते थे। गली मोहल्ले के कुत्तों को खोज खाना खिलाना उनकी दिनचर्या में शामिल थी। पिछले दिनों ही कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। पांच मार्च के रात दिल्ली में अपने एक दोस्त के यहां ठहरे थे जहां देर रात हृदयाघात से उनकी अचानक निधन की खबर ने सबको स्तब्ध कर दिया। हालांकि फ्रेंड के परिजनों ने इनकी निधन की जांच की मांग की है।
फ्रैंक हुजूर ‘सोशलिस्ट मुलायम सिंह यादव’ पुस्तक में लिखते हैं : जब इमरान वर्सेस इमरान: दी अनटोल्ड स्टोरी’ लिखने के बाद दिल की बस्ती में तूफान उठा तो ऐसे में अक्सर सवाल यही होता था कि आगे क्या लिखा जाए ? लंदन और लहौर की गलियों में आवारागर्दी करते-करते एक से बढ़कर एक शख्सियतों के दिलचस्प अफसाने लिखने के मौके सामने थे। उसे वक्त जो ब्रिटेन के वजीरे आजम थे डेविड कैमरून उनसे भी राब्ता किया। डेविड मिलिबैंड से भी बात की। निक क्लेग से भी संपर्क हुआ।यह सब उस वक्त जवान खिलाड़ी थे और ब्रिटेन की सियासत को नई दिशा देने में मशगूल थे।मगर दिल था कि बार-बार हिलोरें मरता था कि कहानी अपनी जमीन की कहनी होगी, जहां एक से एक मदमस्त और तारीखी किरदारों का बीते तीन दशकों में शीर्ष पर पहुंचना एक नई कहानी बयां करता है। बक्सर में पैदा होने से लेकर और बलिया से लेकर दिल्ली की गलियों तक का मन मस्तिष्क में खाका जमा करके बिहार और उत्तर प्रदेश के सियासत अक्सर सवाल करती, मुझे उन लम्हों में ले जाती जहां मैकियावेली के प्रिंस से लेकर चाणक्य के अर्थशास्त्र की राजनीतिक पाठशाला खेत और खलिहानों में लगाई जाती है।
यूं ही एक दिन इमरान खान से हिंदुस्तान की हिंदी हर्टलैंड में करवट लेती सियासत की चर्चा हो रही थी। लाहौर के जमान पार्क की उनकी दो मंजिला कोठी में शाम का वह वक्त, सन 2009 को ठंडी होती शाम, इमरान कहते हैं कि आपके यहां मुलायम सिंह यादव ने जो हौसला बाबरी मस्जिद के हिफाजत में दिखालाया, संविधान की हिफाजत के लिए संवैधानिक दायरोम में रहकर जो कार्रवाई की, वह काबिले तारीफ है। इस तरह उन्होंने अपने को सही मायने में हिंदुस्तान का रफीक उल मुल्क पेश किया। मैं उस आदमी का कायल हूं उतना ही जितना विश्वनाथ प्रताप सिंह का, जिन्होंने भारत के पिछड़े वर्गों के लिए सत्ता से तौबा कर ली थी।
यही वह लम्हा था जब मुलायम सिंह की जिंदगी की दास्तां कहने की जिद मेरे जेहन में पत्थर की लकीर बनी। वे इमरान खान ही थे, पाकिस्तान के सियासत के दलदल में, जो बीपी सिंह, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद और मायावती के मायने जानते थे। मगर गलियों में जब भी आप निकलेंगे लाहौर, कराची और इस्लामाबाद में आप हैरान होने कि पाकिस्तान अपनी अवाम मुलायम, लालू और अटल बिहारी वाजपेई को ज्यादा शौक से याद करती है। जो लोग बाजारों में मेहंदी हसन की सीडी खरीदारी करते हैं, उनके लिए मुलायम भारत के अकेले बड़े सियासतदां हैं और शाहरुख खान और सलमान खान सबसे बड़े स्टार हैं।
बरहाल लाहौर की गर्मी और सर्दी ने जिसमें इमरान खान की जिंदगी का नशीला रोज भरपूर था, मुझे लखनऊ की गलियों में ला पटका और मैं चल पड़ा विक्रमादित्य मार्ग पर ‘विक्रमादित्य’ की खोज में। याद आया इमरान मुलायम की सियासत से खुद को रूबरू कर रहे थे मगर अखिलेश यादव के मुकाबले और राहुल गांधी की तारीफ ज्यादा करते थे। सन 2008-09 की बात है। बरहाल वक्त में करवट ली और फिर अखिलेश ने उत्तर प्रदेश की सियासत को इस तरह सींचा कि 20 करोड़ अवाम के दिल और दिमाग में ऐसी करिश्माई छवि स्थापित कर डाली कि उनकी हरक्युलिस जैसे छवि आगे खुद उनके वालिद मुलायम भी खो गए और राहुल गांधी की सियासत के सारे प्रयोग पर एक सवाल या निशान लग गया।
सामाजवादी विचारधारा के प्रवक्ता के तौर पर उनको जाना जाता था। उन्होंने लखनऊ में अनेक युवाओ को समाजवाद की तरफ मोड़ा उन्हें आगे बढ़ाने मे मदद की। वह मॉडल टाउन में अपने मित्र के यहाँ रुके थे। अपनी पत्रिका सोशलिस्ट फैक्टर के जरिये उन्होंने अपनी एक अलग पहचाई बनाई थी। फैंक हुजूर समाजवाद के पक्षधर थे। एक लेखक, पत्रकार और सामाजवादी विचारधारा के प्रवक्ता के तौर पर उनको जाना जाता था। उन्होंने लखनऊ में अनेक युवाओ को समाजवाद की तरफ मोड़ा उन्हें आगे बढ़ाने मे मदद की। उनका पहले का नाम मनोज यादव था। फ्रैंक हुजूर के अचानक चले जाने से उनके जानने और चाहने वाले हतप्रभ हैं।जहांगीरपुरी स्थित बाबू जगजीवन राम अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। जबकि अंतिम संस्कार पिता बबन सिंह यादव,परिजनों एवं शुभचिंतकों के उपस्थिति में लखनऊ के गोमती नदी तट पर किया गया।
फ्रैंक को श्रद्धांजलि देते हुए गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम लिखते हैं : फ्रैंक का सेक्युलरिज्म और सामाजिक न्याय की विचारधारा से उनका गहरा रिश्ता था और बिना रुके इन पर काम करते थे। फ्रैंक कम उम्र में बहुत काम कर गये लेकिन ऐसे ऊर्जावान व्यक्ति को अभी बहुत काम करना था। इन दिनों वो राहुल गांधी के संविधान सम्मान मिशन में काफी सक्रिय थे। जबकि लंबे समय तक समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के लिए उन्होंने काम किया।
देश के जाने-माने स्तंभकार उर्मिलेश फ्रैंक को श्रद्धांजलि देते हुए लिखते हैं-
प्रिय फ्रैंक हुजूर,
बहुत तकलीफ के साथ, सादर श्रद्धांजलि!
लेखक और सोशल एक्टिविस्ट फ्रैंक हुजूर से मेरा परिचय ज्यादा पुराना नहीं।पर कम समय में ही उनकी सामाजिक और बौद्धिक सक्रियता ने मुझे प्रभावित किया। उनकी एक किताब की मैने आलोचनात्मक समीक्षा भी की थी..उस समीक्षा से वह खुश हुए थे। वह किताब मुलायम सिंह यादव जी के जीवन पर केंद्रित थी।किताब की संक्षिप्त समीक्षा पर आभार प्रकट करने के लिए उन्होंने मुझे फोन किया। संभवत: यह बात 2023 की है। मैने कहा: ‘फ्रैंक, पढ़ना और लिखना तो हम लोगों का काम है। इसमें आभार क्या?’
राजनीतिक हलकों और सामाजिक-राजनीतिक जीवन के अनेक महत्वपूर्ण लोगों के बीच उनकी आवाजाही काफी थी। इसके बावजूद वह निजी तौर पर मुझे काफी विनम्र और सह्रदय लगे। हाल के कुछ महीनों में हमारी-उनकी कई बार बातचीत हुई। आज के कठिन दौर में उन जैसे लोगों का होना बहुत जरूरी था।
पर वह बहुत जल्दी चले गये!
हम लोगों की बहुत कम मुलाकात थी। पर फ्रैंक का इस तरह अचानक चले जाना बहुत दुखी कर रहा है।
सादर श्रद्धांजलि, डियर फ्रैंक!
परिवार के प्रति हमारी शोक-संवेदना
फ्रैंक को श्रद्धांजलि देते हुए सोशल एक्टिविस्ट चंद्र भूषण सिंह यादव लिखते हैं अंतर्राष्ट्रीय लेखक फ्रैंक हुजूर जी नहीं रहे…
बेहद स्तब्धकारी सूचना ने र लाखों लोगों को रुला दिया.. लिखूं क्या क्योंकि जो खुद दूसरों पर किताबे लिखते थे अब उनके लिए महज 48 वर्ष की उम्र में श्रद्धांजली लिखनी पड़ रही है। मैं स्तब्ध हूं अपने प्रिय साथी फ्रैंक हुजूर जी के निधन की ख़बर सुनकर क्योंकि अभी उनकी उम्र ही कितनी थी, अभी उन्हे लिखना कितना था लेकिन हम सबको छोड़कर जाने में उन्होंने बेहद जल्दबाजी कर दी। मैं फ्रैंक हुजूर जी से जब 2013 के आसपास मिला और उनकी योग्यता से वाकिफ हुआ तो उनका मुरीद हो गया।कितना गजब का टैलेंट था लिखने और बोलने में उनका?कितना अद्भुत और सहज,सरल व्यक्तित्व था उस महान लेखक का जिसने इमरान खान पर “इमरान वर्सेज इमरान” नामक ऐतिहासिक किताब लिखी।
फ्रैंक हुजूर जी के बारे में क्या लिखूं कि कितना स्नेहिल और आत्मीय संबंध था मेरा। लखनऊ से दिल्ली, लखनऊ से देवरिया, पटना से मधेपुरा, लखनऊ से प्रतापगढ़, लखनऊ से जेएनयू, लखनऊ से पटना आदि अनेक लंबी और कई दिनों की यात्राएं हमारी फ्रैंक हुजूर जी के साथ हुईं। कितना कुछ जानने,समझने,सीखने का अवसर मिला। फ्रैंक हुजूर जी ने “सोहो”,”मेडोना इन लव विद हिटलर”, “सोशलिस्ट मुलायम सिंह यादव”,” टीपू स्टोरी” सहित अनेक संग्रहणीय किताबें लिखीं।”सोशलिस्ट फैक्टर” इंग्लिश मंथली और हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र की एडिटिंग फ्रैंक हुजूर जी ने किया जिसमें मैं भी कंट्रीब्यूटिग एडिटर रहा।
फ्रैंक हुजूर साहब एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे जिनकी समाज और देश को अभी बहुत जरूरत थी। वैसा सोशल जस्टिस और सेक्युलरिज्म के लिए समर्पित लेखक मैने विरले पाया है। मैं निराश हूं इतनी अल्पायु में अपने अति प्रिय साथी के न रहने से जो निःसंदेह असाधारण था। क्या लिखूं, कितना लिखूं क्योंकि पूरी गाथा है अपने साथी फ्रैंक हुजूर जी से जुड़ी हुई जो अकथनीय और अवर्णनीय है। प्रकृति के प्रेमी, पशुओं से स्नेह रखने वाले कैट मैन फ्रैंक हुजूर जी आप चिरनिद्रा में चल गए लेकिन आपकी यादें चिरस्थाई रहेंगी।साथी! क्या लिखूं,दुनिया बडी जालिम है। अत्यंत दुःख के साथ भीगी पलकों से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि/नमन है फ्रैंक साहब!
विनम्र श्रद्धांजलि