धर्म-संस्कृति

अक्षय तृतीया एवं भगवान परशुराम

सत्येन्द्र कुमार पाठक

पुराणों के अनुसार, वैशाख शुक्ल तृतीया को शुभ कार्यों के लिए अक्षय फल मिलता है। इसे अक्षय तृतीया, आखा तीज, और अक्षय तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी, नए घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी, नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्थाओं या समाजों की स्थापना का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पितरों को तर्पण, पिंडदान, दान, गंगा स्नान और भगवत पूजा से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय होते हैं। यदि यह तिथि सोमवार और रोहिणी नक्षत्र में हो, तो किए गए कार्यों का फल बहुत अधिक बढ़ जाता है। यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो इसे विशेष रूप से श्रेष्ठ माना जाता है।

इस दिन, मनुष्य को अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों के लिए सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए, और भगवान उसे क्षमा कर देते हैं। साथ ही, इस दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में अर्पित कर सदगुणों का वरदान प्राप्त करने की परंपरा भी है। अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करना और भगवान विष्णु की शांति चित्त से पूजा करना चाहिए। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित की जाती है। फिर, फल, फूल, बरतन, वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी माना जाता है। सत्तू अवश्य खाना चाहिए, नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए, और गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र आदि का दान करना चाहिए।

अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घड़े, कुल्हड़, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना जाता है। लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल या सफेद गुलाब से करनी चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार, वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव, और परशुराम जी का अवतरण किया। श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है, और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन होते हैं।

कई स्थानों पर इस दिन परशुराम जी की पूजा का विशेष महत्व होता है। भगवान परशुराम के जन्म की कथा सुनाई जाती है और उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना जाता है। दक्षिण भारत में इस दिन परशुराम जयंती धूमधाम से मनाई जाती है, विशेष रूप से कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में। इस दिन, सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ गौरी-पूजा करती हैं और मिठाई, फल, और भीगे हुए चने बाँटती हैं। अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, और वे भृगुवंशी ब्राह्मण थे, जबकि उनका स्वभाव क्षत्रिय था।

जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने इस दिन तपस्या की थी। जैन धर्मावलंबी इस दिन विशेष पूजा और व्रत करते हैं। बुंदेलखंड में भी अक्षय तृतीया के दिन बड़े धूमधाम से उत्सव मनाए जाते हैं, और लोग शगुन बाँटते हैं। राजस्थान में इस दिन वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है। अक्षय तृतीया न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में सुख, समृद्धि, और शांति का प्रतीक भी है।


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