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नृत्य: कला, संस्कृति और अभिव्यक्ति का शाश्वत प्रवाह

सत्येन्द्र कुमार पाठक

सनातन धर्म संस्कृति के ग्रंथों में नृत्य का उल्लेख किया गया है। नृत्य, मानव इतिहास की गहराइयों से उपजी एक जीवंत कला है, जो शरीर, मन और आत्मा के सामंजस्यपूर्ण समन्वय से साकार होती है। यह न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह संस्कृति, परंपरा, भावना और पहचान की अभिव्यक्ति का एक शक्तिशाली माध्यम भी है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक युग तक, नृत्य ने मानव समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों के ताने-बाने में गहराई से बुना हुआ है।

नृत्य के देवता भगवान शिव नटराज हैं। नृत्य की देवी अम्बा भवई मानी जाती हैं और विश्व का प्राचीन ओडिसी नृत्य इस परंपरा का उदाहरण है। भारत में लगभग 30 प्रमुख लोक नृत्य हैं। नृत्य के प्राचीनतम प्रमाण गुफा चित्रों और पुरातात्विक अवशेषों में मिलते हैं, जो इंगित करते हैं कि यह कला मानव के प्रारंभिक सामाजिक और धार्मिक जीवन का अभिन्न अंग थी। शिकार, अनुष्ठान, उत्सव और शोक जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर नृत्य ने समुदाय को एक साथ लाने, भावनाओं को व्यक्त करने और पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान व परंपराओं को हस्तांतरित करने का कार्य किया।

भारत में नृत्य की जड़ें अत्यंत प्राचीन हैं। सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 2500 ईसा पूर्व) से प्राप्त मोहनजोदड़ो की कांसे की नर्तकी की मूर्ति और हड़प्पा से मिली नृत्य मुद्रा वाली पत्थर की मूर्ति इस क्षेत्र में नृत्य की सुदीर्घ परंपरा का प्रमाण हैं। वैदिक साहित्य (लगभग 1500–500 ईसा पूर्व) में भी नृत्य के उल्लेख मिलते हैं, जहाँ इसे न केवल शारीरिक व्यायाम बल्कि देवताओं की आराधना और सामाजिक समारोहों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता था। ऋग्वेद में इंद्र को प्राणियों को नचाने वाला कहा गया है, जो नृत्य की सर्वव्यापकता और महत्व को दर्शाता है।

भारत में नृत्य कला ने एक समृद्ध और विविध रूप विकसित किया, जिसने शास्त्रीय और लोक नृत्यों की विभिन्न शैलियों को जन्म दिया। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र, जो संभवतः दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी के बीच लिखा गया था, नृत्य और नाट्य कला का एक व्यापक ग्रंथ है। यह न केवल नृत्य की तकनीकों और मुद्राओं का विस्तृत वर्णन करता है, बल्कि संगीत, मंच, वेशभूषा और दर्शकों के महत्व पर भी प्रकाश डालता है। नाट्यशास्त्र भारतीय शास्त्रीय नृत्य की नींव है और इसने सदियों से विकसित हुई विभिन्न शैलियों को आकार दिया है, जिनमें भरतनाट्यम, कथक, ओडिसी, मणिपुरी, कथकली, मोहिनीअट्टम, कुचिपुड़ी और सत्त्रिया प्रमुख हैं। प्रत्येक शैली की अपनी विशिष्ट तकनीक, वेशभूषा, संगीत और कथा कहने का तरीका है, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।

भारत के अलावा, दुनिया भर की विभिन्न संस्कृतियों में नृत्य की अपनी अनूठी परंपराएं विकसित हुई हैं। अफ्रीका के लयबद्ध और ऊर्जावान जनजातीय नृत्य, मध्य पूर्व के रहस्यमय और भावुक बेली डांस, यूरोप के सुरुचिपूर्ण और अनुशासित बैले, लैटिन अमेरिका के जीवंत साल्सा और टैंगो, और एशिया के जटिल और प्रतीकात्मक नृत्य शैलियाँ प्रत्येक संस्कृति की आत्मा और इतिहास को दर्शाती हैं। धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर सामाजिक समारोहों और कलात्मक प्रदर्शनों तक, नृत्य ने हमेशा मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

20वीं शताब्दी की शुरुआत में, शास्त्रीय बैले की कठोरता और औपचारिकता के विरुद्ध एक आंदोलन उभरा, जिसने आधुनिक नृत्य को जन्म दिया। इसाडोरा डंकन, मरथा ग्राहम और लूयी फुलर जैसी अग्रगामी नर्तकियों ने पारंपरिक नियमों को चुनौती दी और अधिक व्यक्तिगत, भावनात्मक और स्वाभाविक आंदोलनों पर जोर दिया। आधुनिक नृत्य ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गुरुत्वाकर्षण का उपयोग और शरीर की प्राकृतिक गति की खोज को प्रोत्साहित किया। इसने नृत्य को नए विषयों और शैलियों के साथ प्रयोग करने के लिए एक मंच प्रदान किया, जिससे समकालीन नृत्य का विकास हुआ, जो आज भी विकसित हो रहा है और नई सीमाओं को तोड़ रहा है।

नृत्य के महत्व और विविधता को सम्मानित करने के लिए, 1982 में यूनेस्को की सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्था की सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय नाच समिति ने 29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में स्थापित किया। यह दिन आधुनिक बैले के जनक जीन-जॉर्जेस नोवरे की जयंती का प्रतीक है और इसका उद्देश्य नृत्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना, इसे एक कला रूप, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और शैक्षिक उपकरण के रूप में मान्यता दिलाना है।

प्रत्येक वर्ष, अंतर्राष्ट्रीय नृत्य परिषद द्वारा विश्व नृत्य दिवस के अवसर पर एक आधिकारिक संदेश जारी किया जाता है, जिसे दुनिया भर की विभिन्न भाषाओं में अनुवादित किया जाता है। इस दिन, दुनिया भर में नृत्य प्रदर्शन, कार्यशालाएँ, सेमिनार और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो नृत्य की शक्ति और सार्वभौमिक भाषा का जश्न मनाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों और व्यक्तियों को नृत्य को बढ़ावा देने और इसे सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, चाहे उनकी आयु, लिंग या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।

नृत्य सिर्फ मनोरंजन से कहीं बढ़कर है। यह शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, समन्वय और संतुलन में सुधार करता है और तनाव को कम करने में मदद करता है। यह रचनात्मकता, आत्म-अभिव्यक्ति और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। सामाजिक स्तर पर, नृत्य लोगों को एक साथ लाता है, सामुदायिक भावना को मजबूत करता है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है। शिक्षा में, नृत्य बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रिय रहने, लय और संगीत की समझ विकसित करने और टीम वर्क व अनुशासन सीखने में मदद कर सकता है।

आज, नृत्य विभिन्न रूपों में फलता-फूलता है — शास्त्रीय नृत्यों की सदियों पुरानी परंपराओं से लेकर हिप-हॉप, जैज़ और समकालीन नृत्य की नई और गतिशील शैलियों तक। प्रौद्योगिकी ने नृत्य के लिए नए रास्ते खोले हैं, जिससे नर्तक और कोरियोग्राफर डिजिटल मीडिया और इंटरैक्टिव प्रदर्शनों के साथ प्रयोग कर सकते हैं। नृत्य की यह निरंतर विकासशील प्रकृति इसे एक जीवंत और प्रासंगिक कला रूप बनाए रखती है, जो मानव अनुभव के बदलते परिदृश्य को दर्शाती है।

नृत्य मानव संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, जो इतिहास, परंपरा और अभिव्यक्ति का एक शक्तिशाली संगम है। प्राचीन अनुष्ठानों से लेकर आधुनिक मंचों तक, नृत्य ने हमेशा मानव समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है — भावनाओं को व्यक्त करने, कहानियों को बताने और समुदायों को जोड़ने का एक अनूठा तरीका प्रदान करता है। अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस हमें इस सार्वभौमिक कला के महत्व को पहचानने और उसका जश्न मनाने का अवसर प्रदान करता है, जो हमारी साझा मानवता की सुंदरता और विविधता को दर्शाता है।


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