लोरी: अबोध शिशु के लिए संजीवनी

सत्येन्द्र कुमार पाठक
लोरी एक ऐसी मधुर ध्वनि है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी माता-पिता से बच्चों तक चली आ रही है। यह वह जादुई स्पर्श है, जो रोते हुए शिशु को पल भर में शांत कर गहरी नींद में सुला देता है। जब कोई बच्चा बेचैन होता है या मां के हृदय में वात्सल्य उमड़ता है, तो लोरी सहज ही उसके होंठों से फूट पड़ती है। मधुर शब्दों और कर्णप्रिय संगीत से सजी लोरी शिशु के कानों में पड़ते ही उसके अशांत मन को शांति से भर देती है।
अक्सर जब छोटा बच्चा सोने में आनाकानी करता है, तो मां व्याकुल हो उठती है और उसे सुलाने के लिए सपनों की दुनिया से निंदिया रानी को पुकारती है। वह लाड़-प्यार से भरे शब्दों में निंदिया को रिझाने का प्रयास करती है। बच्चे को नींद आए, इसके लिए मां न जाने कितने जतन करती है। वास्तव में, बच्चों के लिए लोरी केवल सुलाने का एक तरीका नहीं है, बल्कि यह उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से भी मजबूत बनाती है।
हर मां अपनी भावनाओं और शब्दों से लोरी को एक नया रूप देती है। यह केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि पक्षी और जानवर भी अपने बच्चों को लोरी सुनाते हैं। उनकी चहचहाहट, फुसफुसाहट और अन्य ध्वनियों में भी लोरी का भाव छिपा होता है, जो उनके बच्चों को अपने विशिष्ट अंदाज़ में दुलारता है। भारत और लोरी का संबंध तो सदियों पुराना है। मार्कण्डेय पुराण में मदालसा का प्रसिद्ध प्रसंग इसका प्रमाण है, जिसमें वह अपने बच्चों को सुलाने के लिए सुंदर लोरियां गाती हैं। मदालसा को ही लोरी की जननी माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने ही सर्वप्रथम अपने पुत्र अलर्क को सुलाने के लिए लोरी गाई थी, जिसका वर्णन मार्कण्डेय पुराण के 18 से 24वें अध्याय में मिलता है।
रामायण काल में भी माता कौशल्या बालक श्रीराम को लोरी गाकर सुलाती थीं, जिसका उल्लेख तुलसीदास ने गीतावली में किया है। सृष्टि के आरंभ से ही प्रत्येक मां अपने बच्चे को लोरी गाकर और थपकी देकर सुलाती आई है। सुलाते समय वह न जाने कितनी बार अपने बच्चे को गोद में लेकर प्यार करती है। उस समय उसके मुख से अनायास ही ऐसी मधुर ध्वनियां निकलती हैं, जिनका कोई विशेष अर्थ नहीं होता, लेकिन वे अपनी मधुरता से बच्चे को सुलाने में सक्षम होती हैं। इन ध्वनियों को सुनकर रोता हुआ बच्चा भी शांत होकर सो जाता है।
गांव की श्रमिक महिलाएं भी, जो खेतों में काम करती हैं, अपने बच्चों को पेड़ की डालों पर कपड़े में लटकाकर दूर तक डोरी पकड़कर हिलाती रहती हैं और लोरी गाती हैं। काम करते-करते ही वे अपने बच्चों को सुलाने का प्रयास करती हैं। लोरी सुनकर बच्चे को यह अहसास होता है कि उसकी मां उसके पास ही है और वह निश्चिंत होकर सो जाता है, जबकि मां अपना काम करती रहती है। कुछ व्यस्त महिलाएं बच्चे को पालने में सुलाकर उसमें घंटी और घुंघरू लगा देती हैं। इन मधुर ध्वनियों से भी बच्चे को लोरी जैसा अनुभव मिलता है और वह सो जाता है।
चाहे देश हो या विदेश, अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी, लगभग सभी माताएं अपने बच्चों को सुलाने के लिए लोरी का प्रयोग करती हैं और बड़े प्यार व सम्मान से लोरी गाती हैं। लोरी के साथ-साथ मां के मुख से निकलने वाले सहज शब्द, हाथों की ताली, चुटकी और थपथपाहट भी बच्चे को सुखद नींद प्रदान करते हैं। लोरी के शब्दों में बच्चे के लिए मां की शुभकामनाएं और उसके भविष्य से जुड़ी आशाएं व उम्मीदें छिपी होती हैं। इसमें हास-परिहास भी होता है। लोरी मां और बच्चे के बीच आनंद, प्रेम और विश्वास के भावों को खोलती है।
लोरी मां का आशीर्वाद है, जिसे सुनकर नन्हा शिशु प्रसन्न होता है। यद्यपि लोरी के रचनाकार का कोई निश्चित नाम नहीं होता, यह वास्तव में एक मां के हृदय की सहज रचना होती है। लोरी के माध्यम से संसार की हर मां अपने बच्चे के चेहरे पर सुकून का भाव लाती है, जो उसे भी प्रसन्न करता है। निस्संदेह, लोरी अबोध और कोमल बच्चे के लिए संजीवनी है, जिसका प्रारंभ लगभग चार हजार वर्ष पूर्व हुआ था।