पत्र-पत्रिकाओं का बढता प्रकाशन और घटते पाठक

सुनील कुमार माथुर
आज देश में पत्र – पत्रिकाओं की बाढ सी आ गयी हैं और आये दिन पत्र – पत्रिकाओं का प्रकाशन बढता ही जा रहा हैं जो एक अच्छी बात हैं लेकिन साथ ही साथ पाठकों की संख्या लगातार घटती ही जा रही हैं । पाठकों की घटती संख्या के एक नहीं अनेक कारण हैं । अगर उन पर विस्तार से चर्चा की जाये तो न जाने कितने पन्ने रंगने पड जायें । लेकिन स्पष्ट शब्दों में कहें तो आज की पत्रकारिता मिशनरी पत्रकारिता न रहकर व्यवसायिक पत्रकारिता बन गयी हैं ।
आज न तो पत्र – पत्रिकाओं के संपादक व प्रकाशक साहित्य में रूचि रखते हैं और न ही वे इसके जानकार हैं । येन केन प्रकारेण कागज काला कर पत्र – पत्रिकाओं का प्रकाशन कर रहें । आज स्थानीय लेखकों की उपेक्षा हो रहीं है । उन्होंने सदैव स्थानीय मेलों , उत्सवों , स्वतंत्रता सेनानियों , तीज – त्यौहारों पर जमकर लेख व कहानियां स्थानीय भाषा व शैली में लिखी । नाटकों के मंचन की समीक्षा होती थी लेकिन आज नेट से उठाकर आलेख प्रकाशित किये जा रहें है जिसमें सत्य को तोडमरोड कर प्रस्तुत किया जा रहा हैं एवं खानापूर्ती की जा रही हैं ।
आज से 40 – 45 साल पूर्व की पत्र – पत्रिकाओं का अवलोकन करें तो पता चलता हैं कि उस समय आपराधिक गतिविधियों की खबरों को यदा – कदा ही प्रकाशित किया जाता था लेकिन आज अखबार के मुखपृष्ठ पर सुर्खियों में बलात्कार की खबरें , लूटपाट , मारधाड , हिंसा व दुर्घटनाओं के समाचार एवं भ्रष्टाचार के समाचार ही प्रकाशित होते हैं । यह सभी खबरें पाठकों के मन – मस्तिष्क को दूषित करते हैं । अतः ऐसे समाचार पाठकों को कोई अच्छी प्रेरणा नहीं देते हैं अपितु दिमाग़ को खराब करते हैं ।
जबकि पूर्व में जन समस्याओं को उजागर करने वाले समाचार प्रमुखता के साथ प्रकाशित होते थे । हर समाचार-पत्र में संपादक के नाम पत्र , पाठकों की प्रतिक्रिया , जनकलम , जनता की आवाज , आपकी बात , जनवाणी , निगाहें आपकी , ये क्या कहते हैं , जनता की अदालत , पत्र मिला , मंच हमारा बात आपकी , लोकमंच , जनता की डाक और भी न जानें किन – किन स्तंभ के नामों से पाठको के पत्र भरे पडें रहते थे और कई बार तो आधे – आधे पृष्ठों में पाठकों की शिकायतें प्रकाशित होती थी और उन पत्रों पर तत्काल कार्यवाही भी होती थी ।
लेकिन आज हर समाचार पत्र ने इन कालम को बंद कर दिया हैं और जन समस्याओं को उजागर करने के लिए उनके पास कोई पत्रकार नहीं है जो कार्यरत है वे केवल व्यवसायिक है जो जन समस्याओं को कम व व्यवसाय को अधिक देखते हैं वे उन समाचारों को प्रकाशित करते हैं जिनसे उनके हित जुडे हैं । जो उन्हें समय – समय पर विज्ञापन देते हैं ।
वे ही खबरे प्रकाशित होती हैं जो थानों से या कंट्रोल रूम से मिलती हैं । आज शायद ही कोई पत्रकार घटना स्थल पर जाकर वास्तविकता को देखता हैं और अगर देख भी लिया तो पूरा सत्य लिख नहीं पाता हैं चूंकि पत्र – पत्रिकाओं की अनोखी व अनूठी पॉलिसी के चलते उस पत्रकार के हाथ बंधे है ।
पहले जो मिशनरी पत्रकारिता थी वह आज व्यवसायिक हो गयी हैं । स्थानीय लेखकों की उपेक्षा हो रहीं है । इतना ही नहीं स्थानीय खबरे भी नहीं प्रकाशित हो रही हैं । मेल के जमाने में व कोरोना काल में मेल से भेजी खबरे भी नहीं प्रकाशित हो रही हैं फिर भला पाठक कैसे जुड पायेगा ।आज आधिकांश घरों में अखबार केवल उठावने के विज्ञापन व शोक समाचार देखने के लिए ही मंगाये जा रहें है चूंकि उनमें पढने लायक सामग्री तो होती नहीं है तब ऐसे में संकलन योग्य सामग्री की उम्मीद करना बेमानी होगी ।
आज प्रातः कालीन व सांयकालिन अखबारों की गिनती करें तो उनकी संख्या चौंका देने वाली हैं लेकिन आज विज्ञप्ति से समाचार बनाने वाले पत्रकारों की संख्या नगण्य सी हैं । पहले शक्कर व गेहूं का वितरण होता था तो भी प्रेस नोट जारी होता था और सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय से एक साईकिल सवार हर प्रेस में जाकर प्रेस नोट का वितरण करता था । आज अनेक तकनिकी सुविधाएं उपलब्ध हैं लेकिन फिर भी स्थानीय समाचार पत्र प्रेस विज्ञप्तियों की खबरों को कचरे के ढेर में डालकर इतिश्री कर लेते हैं तो पाठक कैसे जुड पायेगा ।
वर्तमान समय मे आन-लाइन पत्र – पत्रिकाओं का दौर चल निकला है । इनमें से कुछ पत्र – पत्रिकाओं का स्तर काफी अच्छा हैं लेकिन अब देखना यह है कि वे अपने मिशन में कितना कामयाब हो पाती हैं।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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