हर क्षण हमें कुछ न कुछ नया सिखाता है…
सुनील कुमार माथुर
जिन्दगी जीना एक अलग बात हैं और जिन्दगी को पढकर समझना अलग बात हैं । उम्र ही हमें बहुत कुछ नया सिखाती हैं । अतः हर उम्र सीखने-सिखाने की होती हैं और हम उम्र के साथ ही साथ अनुभव से ही सीखते है । इसलिए व्यक्ति को हमेशा अपने से बडे लोगों व बुजुर्गों से राय लेनी चाहिए चूंकि उनके पास हम से भी अधिक अनुभव होता हैं ।
जीवन का हर क्षण हमें कुछ न कुछ नया सिखाता रहता हैं । अतः कोई भी कार्य जल्दबाजी में नहीं अपितु सोच समझ कर करना चाहिए ताकि बाद में पछताना न पडें । हम सभ्य समाज में रह्ते है इसलिए हमें सभ्य बनकर रहना होगा । उधार लिया गया ऋण हम उतार सकते हैं लेकिन अपने माता पिता का ऋण अनेक जन्म लेकर भी नहीं उतार सकते हैं । गृह क्लेश से बचने के लिए व्यक्ति को अपनी संपत्ति विभाजित कर देनी चाहिए । उसे अपनी संपत्ति दान – पुणय बच्चों की शिक्षा , विवाह , मकान बनाने एवं कुछ राशि संकट की घडी में सहायता के लिए बचाकर रखनी चाहिए ।
जीवन में कितना भी धन कमायें उसमें से कुछ हिस्सा दान – पुण्य व जरूरतमंद लोगों की सहायता के नाम पर बचाकर रखना चाहिए व जरूरतमंद पडने पर उसे उस कार्य के लिए जरूर खर्च करें । जीवन में अगर सब कुछ बदल जायें तो कोई बात नहीं लेकिन हमारी सृष्टि नहीं बदलनी चाहिए । हमारी सभ्यता और संस्कृति नहीं बदलनी चाहिए और न ही नैतिक मूल्यों का ह्रास होना चाहिए ।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति विश्व की महान संस्कृति है जो अन्य देशों से सर्वश्रेष्ठ हैं लेकिन आज हम ही अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहें है और पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहें है जो बडी ही शर्म की बात हैं । जब व्यक्ति के अपने ही सभी लोग उसके दुश्मन बन जायें तो फिर उसे कहीं भी जगह नहीं मिलती हैं ।
समय कभी भी खराब नहीं होता हैं अपितु समय को हम अपनी मूर्खता के कारण खराब कर देते हैं । आज के समय में हर कोई अपने हिसाब से जीवन जी रहा हैं । कोई क्या खा रहा हैं । क्या पी रहा है । क्या पहन रहा हैं । किसके संग कहा रह रहा है उससे दूसरों को कोई लेना देना नहीं है । कोई भी रोकने टोकने वाला नहीं है । इंसान कुछ भी पहने , खाये पियें सब ओ के हैं । यहीं वजह है कि आज हमारी सभ्यता और संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति हावी हो रही है ।
मधुर बोलो और सबके साथ घुलमिल कर रहो
याद रखिये एकता में ही बल है व संगठन में ही शक्ति हैं । झाडू जब तक बंधी हुई हैं तब तक ही वह कचरे को बुहार सकती हैं साफ कर सकती हैं लेकिन जैसे ही वह बिखर जाती हैं वैसे ही स्वंय ही कचरा बन जाती हैं और फिर वह किसी भी काम की नहीं है । यानि जब तक वह सही सलामत बंधी हुई हैं तब तक ही वह काम की हैं ।
ठीक उसी प्रकार जीवन में जब तक प्रेम , करूणा, स्नेह , मधुरता है तभी तक जीवन जीने योग्य हैं । कलह पूर्ण वातावरण में भी जीना कोई जीना हैं । अतः जहां भी रहों वहां प्रेम पूर्वक रहों । भरोसेमंद बनकर रहों । इसी में आनंद हैं । यहीं असली आनंद की आदर्श पहचान है । सदा अच्छा भोजन करों । अच्छा सोचें और बोलों । अच्छा पहनों । मधुर बोलो और सबके साथ घुलमिल कर रहो।
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