
सुनील कुमार माथुर
स्वतंत्र लेखक व पत्रकार, जोधपुर (राजस्थान)
डॉ. आरुषि के ताऊजी सुनील सेवानिवृत्ति के बाद अपने आपको बिज़ी रखने के लिए हर समय कुछ न कुछ करते रहते थे और समय-समय पर माचिस की तिल्ली पर रुई लपेट कर कान साफ किया करते थे। वृद्धावस्था के कारण उनकी स्मृति भी कमजोर हो रही थी। आंखों में उनके लैंस लग चुके थे। इस कारण उनके दोनों कानों में न जाने कब रुई फंस गई, उन्हें पता भी नहीं चला।
समय निकलता गया और डॉ. आरुषि के ताऊजी सुनील की परेशानी भी बढ़ने लगी। एक वक्त ऐसा आया कि ताऊजी को दोनों कानों से सुनाई देना बंद हो गया। वे तेज आवाज में टीवी चलाते तो भी सुनाई नहीं देता। करीब 20–25 दिन हो गए। हर समय अपने आपको बिज़ी रखने वाले ताऊजी की दुनिया हिल गई और पांवों तले से जमीन सरक गई।
एक दिन ताऊजी ने डॉ. आरुषि से कहा कि “आपके कोई जान पहचान वाला डॉक्टर हो तो बताओ, मुझे कान दिखाने हैं,” और सारी बात बताई। डॉ. आरुषि ने तत्काल अपनी सहेली डॉ. नेहा शर्मा से बात कर वस्तुस्थिति से अवगत कराया। डॉ. शर्मा ने तत्काल समय देकर ताऊजी को बुलाया और उनके कानों की जांच की व उनके दोनों कानों में फंसी हुई रुई निकाली। कानों में से रुई निकलते ही ताऊजी को ऐसा लगा मानो उन्हें नया जीवन मिला है।
जब ताऊजी ने डॉ. नेहा शर्मा को धन्यवाद दिया तो उन्होंने कहा —
“बस आपका आशीर्वाद चाहिए। जैसे आप आरुषि के ताऊजी हैं, वैसे ही मेरे भी ताऊजी हैं। बस हम बच्चों पर आपका आशीर्वाद बना रहना चाहिए।”
वहीं दूसरी ओर आरुषि के ताऊजी ने भी तौबा कर ली। अब वे कभी भी रुई व माचिस की तिल्ली से कान साफ नहीं करते हैं व दूसरों को भी ऐसा न करने की सलाह देते रहते हैं। ताऊजी अपनी एक छोटी सी गलती से कितने परेशान रहे, इस बारे में वे सबको बताते रहते हैं और ऐसी गलती न करने की सलाह भी देते रहते हैं।