कविता : अपनी आंखों के सपने
राजेश ध्यानी सागर
अपनी आंखों के सपने
मुझें भी दिखा दें ,
समेट ले उन सपनों के
लम्हों को
आ कर मुझें भी बता दें।
पर तुझें फुरसत कहां
मेरी पीड़ा का ज्ञान नहीं ,
अरे गुस्सें मे ही आजा
अपनी झलक दिखा दे।
तेरी कयामत सी आंखों को भूलने लगा हूं
आ उन आंखों से अपना
गुस्सा उतार दे।
तू चलती हें कैसे ?
सोच के वो भी भूल गया
आ चल कर मेरे सामने ,
ज़मी को हिला दे।
होंठों की करू क्या बात मैं ,
आ कर मेरे सामने
थोड़ा इन्हें हिला दे।
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजेश ध्यानी “सागर”वरिष्ठ पत्रकार, कवि एवं लेखकAddress »144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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