अपनी प्रतिभा को पहचानें और निडर बनें

सुनील कुमार माथुर
आज का समय प्रतिस्पर्धा का हैं और इस दौर में वही टिक सकता हैं जो प्रतिभावान हो , निडर व स्मार्ट हो । वरना आपको कोई टिकने नहीं देगा । चूंकि की आरक्षण ने पहले ही स्वर्ण जातियों के लिए पाल बांधकर उन्हें प्रतिस्पर्धा की दौड से बाहर कर दिया गया हैं और ओ बी सी , अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को बढावा देने के नाम पर सरकारें अपना वोट बैंक चला रही हैं और स्वर्ण जातियों के लोगों का हक खा रही हैं ।
आजादी के 75 वर्षों के बाद भी आरक्षण जारी हैं आखिर कब तक इन जातियों को आरक्षण की बैशाखी के सहारे सरकार इन्हें पंगु बनाये रखेगी । क्यों नहीं आरक्षण को पूरी तरह से समाप्त कर इन जाति के लोगों को अपनी प्रतिभा को निखारने का मौका क्यों नहीं देती । एक ओर सरकार समानता के अधिकारों की बात करती हैं वहीं दूसरी ओर आरक्षण को जारी रखकर प्रतिभाओं के साथ असमानता का व्यवहार कर रही हैं ।
आज स्वर्ण जाति में जन्म लेना भी गुनाह हो गया हैं । साठ व इससे अधिक अंक लाने वाला स्वर्ण जाति का विधार्थी सडक छाप बना घूम रहा हैं व आरक्षण प्राप्त विधार्थी पच्चास प्रतिशत से भी कम अंक लाकर सरकारी कार्यालय में कार्यरत है । यह स्वर्ण जातियों के हितों पर कुठाराघात नहीं तो और क्या हैं ।
आज के प्रतिस्पर्धा के दौर में पैसों का बोलबाला और बढ गया हैं । भ्रष्टाचार ने सभी सीमाओं को लांघ दिया हैं । चांदी के सिक्कों की पोटली के साथ ही साथ अब तो नारी की अस्मिता पर भी डाका डाला जा रहा हैं जिसके समाचार समाचार पत्रों में सुर्खियों के साथ प्रकाशित भी होते हैं ।मगर जब पूरे कुएं में ही भांग पडी हो तो भला कौन क्या कर सकता हैं । यह तो भुगतभोगी ही जानता हैं ।
गर्वित ने कहानी प्रतियोगिता में बाल साहित्यकार के रूप में भाग लिया । उसकी कहानी सोलह आना सही थी और वर्तमान परिपेक्ष्य को मद्देनजर रखते हुए लिखी गयी लेकिन निर्णायक महोदय ने यह कह कर उसकी कहानी को अस्वीकार कर दिया कि यह कहानी दार्शनिक स्तर की हैं । हमें तो बच्चों के स्तर की कहानी चाहिए थी ।
जब गर्वित ने अपने दादा को सारी बात बताई तो उन्होंने उसका मनोबल बढायें रखा और कहा कि बेटा ! कहानी बच्चों के स्तर की ही है लेकिन निर्णायक महोदय इसे जांचने व परखने योग्य नहीं था । गर्वित के दादा ने कहा बेटा हिम्मत रखों और अब तुम इस कहानी को स्थानीय , राज्य व राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओ में प्रकाशनार्थ भेज दीजिए ।
गर्वित ने दादा की बात पर गौर करते हुए अनेक पत्र पत्रिकाओ में प्रकाशनार्थ हेतु भेज दी । कुछ ही दिनों में सभी पत्र पत्रिकाओ में गर्वित की लिखी कहानी प्रकाशित हो गयी अब दादाजी सभी पत्र पत्रिकाएं व गर्वित को लेकर उन निर्णायक महोदय के पास गये और कहा कि जिस बच्चे की कहानी को आपने बिना वजह अस्वीकार कर बच्चे को हतोत्साहित किया वही अस्वीकृत कहानी स्थानीय , राज्य व राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओ में प्रकाशित हुई हैं जिससे साबित होता हैं कि आप निर्णायक मंडल के योग्य नहीं हैं ।
गर्वित के दादाजी की बात सुनकर निर्णायक महोदय ने दादा जी से क्षमा मांगी व भविष्य में ऐसा न करने का वचन दिया ।जब स्कूल के संचालक महोदय को इस बात का पता चला तो उसने उन सज्जन को निर्णायक मंडल से हमेशा-हमेशा के लिए निकाल दिया ।
कहने का तात्पर्य यह है कि आज अनेक ऐसी प्रतिभाएं छिपी हुई है जो योग्य होते हुए भी निर्णायक मंडल के सिरफिरों की शिकार होकर कुंठाओं के बीच जीवन जी रहे हैं । अतः युवाओं को चाहिए कि वे अपनी प्रतिभा को पहचाने और उसे निरन्तर निखारते रहें । चूंकि हमें निरन्तर रोज कुछ न कुछ नया सीखते रहना हैं । जीवन में हमेशा मानसिक तौर पर तैयार रहे । निडर बनें , निर्भय बने और स्मार्ट बनें ।
याद रखिये कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता हैं । आप जीवन में जितना संघर्ष करते जायेगे उतना ही मजबूत होते जायेंगे । आप अपने भीतर जो ताकत है उसे पहचाने और खुद पर भरोसा करें । जीवन में जिसके पास आत्मविश्वास हैं वही सफलता की सीढियां चढ पाता हैं वरना यहां टांग खिंचने वालों की कोई कमी नहीं है ।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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