हवा का झोंका

सुनील कुमार माथुर
ठंडी – ठंडी हवा का झोंका आया और
गुलाब के फूलों को हिला दिया
पुष्प पर बैठे भंवरे को मजा आ गया
सर्द हवा ने सवेरे-सवेरे उसे झुला झुला दिया
झुला झुल कर भंवरे का आनंद चार गुणा हो गया
ठंडी-ठंडी हवा का झोंका आया और
पुष्पों की खुशबू को चारों ओर फैला गया
जिधर हवा बह रही थी
उसी ओर खुशबू फैल गई
ठंडी-ठंडी हवा का झोंका आया और
गुलाब के फूलों को हिला दिया
भंवरे को झुला झुला दिया
हे इंसान ! तेरे पास बुध्दि है
चिंतन – मनन करने की शक्ति हैं
फिर भला तू अपनी ऊर्जा और नई सोच व
अपनी प्रतिभा और हुनर का जादू
चारों ओर महकने दीजिए और
मानवता का धर्म को निभाइये
राष्ट्र विरोधी ताकतों को भगाइये और
अंहकार , ईर्ष्या , लोभ लालच व
घंमड का त्याग कीजिए और
सर्वत्र शांति , प्रेम , स्नेह व विश्वास ,
दया , करूणा , ममता व वात्सल्य का
संदेश घर – घर फैला दीजिए
तभी नये भारत का नव निर्माण हो पायेगा
सुखी परिवार , सुखी समाज व सुखी राष्ट्र
यही हैं भारत की असली पहचान
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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