पद का मद

रावण और कंस से बड़ा पद किसका था l देवता जिससे भयभीत हों स्वर्ग जिसके चरणों मैं रखा हो उससे बड़ा कोई हो सकता है क्या? लेकिन पद के मद ने उनका विनाश कर दिया l
संसार मैं अनेक ऐसे प्राणी हैं जो अपने छोटे-छोटे पदों के मद में आकर कुछ का कुछ कर बैठते हैं l ज़रा-सा कोई मदद माँगने आ जाये तो पहले तो उसे अपनी फ़िजूल की आय-बाय सुनायेंगे अपने पद-प्रतिष्ठा का दबदबा दिखायेंगे l इसके पीछे उनका उद्देश्य स्वयं के अहंकार को पुष्ट करना होता है l
“कह रहा है आसमां, ये समा कुछ भी नहीं
रो रहीं हैं शबनमें, ये फ़ज़ॉं, कुछ भी नहीं,
जिनके महलों में जलते थे, रंग-बिरंगे फ़ानुस,
ख़ाक उनकी कब्र पर है, और निशाँ कुछ भी नहीं ll”
लेकिन ये सोचने योग्य तथ्य यह है कि आखिर पद का मद क्यों और कब तक ? एक दिन तो उस पद से नीचे आना होगा l संसार का कोई पद ऐसा नहीं जो शाश्वत हो वह तो काल क्रमानुसार बदलता रहता है, फ़िर हम क्यों उसके प्रभाव में आकर अपने स्वजनों से मतभेद कर बैठते हैं ? अरे ! जब संसार ही स्थिर नहीं है तो पद का क्या ?
कई लोगों का कहना है कि कई बार ऐसी स्थिति आ पड़ती है कि पद के प्रभाव को दिखाना आवश्यक हो जाता है l चलिए मान लेते हैं, लेकिन ध्यान देने योग्य बात ये है कि पद का प्रभाव पदाधिकारियों द्वारा ज्यादातर नकारात्मकता के परिप्रेक्ष्य में ही दिखाया जाता हैं l ऐसे कितने लोगों को आप और हम जानते हैं जो अपने पद का मद अर्थात ‘प्रभाव’ लोगों की भलाई के लिए दिखाते हैं ? ऐसे गिने-चुने लोग ही होंगे l
लेकिन पद के मद ‘अहंकार’ के वशीभूत हो न जाने कितने राजतन्त्र गर्त मैं चले गए l रावण और कंस से बड़ा पद किसका था l देवता जिससे भयभीत हों स्वर्ग जिसके चरणों मैं रखा हो उससे बड़ा कोई हो सकता है क्या? लेकिन पद के मद ने उनका विनाश कर दिया l क्या पुत्र, क्या परिवार, क्या सत्ता और प्रभाव सब धूल-धूसरित हो गए l अतः पद-मदांधता से सर्वथा बचें l
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