गांरटी वाला देश

गांरटी वाला देश, लोकतंत्र में गारंटी की बाते न करके धरातल पर जनता-जनार्दन को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसी में सबका हित और सबका भला हैं। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
कभी ऐसा भी वक्त था जब दुकानदार माल बेचते समय गांरटी लेता था। लेकिन समय के साथ साथ यही गांरटी वारंटी में बदल गई और गारंटी का नामोनिशान मिट गया। देश की जनता क्या जाने गारंटी और वारंटी। चूंकि यह हिन्दुस्तान है। यहां बाजार में वहीं टिकता है जो गारंटी देकर भी पालना नहीं करता है।
कामवाली बाई आज आयेगी या नहीं। इसकी कोई गारंटी नहीं। जिसे आपने पैसा उधार दिया है वह वापस लौटायेगा या नहीं। इसकी कोई गारंटी नहीं हैं। आपके बच्चे का एडमिशन बिना डोनेशन होगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है तो फिर इस लोकसभा चुनावों में राजनीतिक दलों ध्दारा जो गारंटी दी जा रही है वह चुनाव में जीत के बाद मिलेगी भी या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह तो मतदाताओं के साथ क्रूर मजाक ही कहा जा सकता हैं। क्या सरकारे भी गारंटी पर बनती है, गारंटी पर टिकती हैन। इसकी क्या गारंटी हैं।
यह लोकतंत्र है। जहां सरकारें गारंटी पर नहीं अपितु जनता-जनार्दन के विश्वास पर चलनी चाहिए। जनता-जनार्दन की भावना का सम्मान करते हुए जनता को तमाम मूलभूत सुविधाएं दी जानी चाहिए। उनकी समस्याओं को प्राथमिकता से सुन कर समय पर समाधान करना चाहिए। लोकतंत्र को गारंटी वाली सरकार नहीं, अपितु लोक कल्याणकारी सरकार चाहिए। चूंकि जनता-जनार्दन अपना जनप्रतिनिधि समस्याओं के समाधान के लिए ही चुनती है न कि जन भावनाओं की उपेक्षा करने हेतु।
अतः लोकतंत्र में गारंटी की बाते न करके धरातल पर जनता-जनार्दन को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसी में सबका हित और सबका भला हैं।
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