कल्याण और शक्ति की देवी माता कात्यायनी
कालिका पुराण स्कन्द पुराण नागर खंड के अनुसार वैदिक ऋषि कात्यायन गुजरात के निवासी याज्ञवल्क्य त्रेतायुग में मिथिला के राजा जनक के क्षेत्र में और इनके पुत्र कात्यायन महस्राष्ट्र में रहकर माता शक्ति की उपासना करने पर माता शक्ति ने कात्यायनी के रूप में अवतरित हुई थी। #सत्येन्द्र कुमार पाठक, अरवल, बिहार
सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय के विभिन्न शास्त्रों के अनुसार नवदुर्गाओं में षष्ठम् रूप माता कात्यायनी का मंत्र चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥ अस्त्र कमल व तलवार , जीवनसाथी भगवान शिव , सवारी सिंह है । ” अमरकोष के अनुसार माता पार्वती के लिए दूसरा नाम कात्यायनी है । यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में माता कात्यायनी का उल्लेख है। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि माता कात्यायनी परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से अवतरण होकर सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया था।
वे शक्ति की आदि रूपा के संबंध में पाणिनि द्वारा पतञ्जलि महाभाष्य में दूसरी शताब्दी ई . पू. में रचित है। देवीभागवत पुराण, और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में 400 ई..से 500 ई. में किया गया था। बौद्ध और जैन ग्रंथों और तांत्रिक ग्रंथों, कालिका पुराण 10 वीं शताब्दी) में उनका उल्लेख में उद्यान या उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान है। साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित और योगसाधना में माता कात्यायनी की आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन । कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥स्कन्द पुराण के अनुसार कत महर्षि के पौत्र कत्य के पुत्र ऋषि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की इच्छा को पूर्ण करने के लिए माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म ली थी । ऋषि कात्यायन ने अपनी पुत्री का नामकरण कात्यायनी रखा था । माता कात्यायनी ने समय दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया।
महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम माता कात्यायनी की पूजा की थी । महर्षि कात्यायन की पुत्री कात्यायनी का जन्म चैत्र शुक्ल षष्टी तिथि को गंधार में जन्म लेकर जनकल्याण का कार्य की । द्वापर युग में भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने माता कात्यायनी की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर चार भुजाएँ हैं। माता कात्यायनी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित , वाहन सिंह है।
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। माँ कात्यायनी की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।। विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र–ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥ माँ कात्यायनी को सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होने पर मनोवांक्षित फल प्राप्त करते हैं। माता कात्यायनी द्वारा दैत्य राज शुम्भ और निशुम्भ को बध कर अत्याचार से मुक्त किया गया था।
माता कात्यायनी मंदिर उत्तरप्रदेश के मथुरा , वृंदावन , आद्या कात्यायनी मंदिर छतरपुर , बिहार का खगड़िया के कोसी नदी के किनारे , सिमरी वख्तियार पुर , गौहरपुर , बहौराना , भुवनेश्वर , वाराणासी का सिंधिया घाट , कानपुर ,गाजीपुर ,कोलकाता का बाघाजतिन , उत्तराखण्ड का ऋषिकेश और कटिहार जिले का दुधरी में कात्यायनी मंदिर एवं शाक्त स्थल है । ऋषि कत वंशीय सोमदत्त के पुत्र वररुचि कात्यायन के पुत्री चैत्र शुक्ल षष्टी को कात्यायनी माता का अवतार हुआ था।
कालिका पुराण स्कन्द पुराण नागर खंड के अनुसार वैदिक ऋषि कात्यायन गुजरात के निवासी याज्ञवल्क्य त्रेतायुग में मिथिला के राजा जनक के क्षेत्र में और इनके पुत्र कात्यायन महस्राष्ट्र में रहकर माता शक्ति की उपासना करने पर माता शक्ति ने कात्यायनी के रूप में अवतरित हुई थी । वैदिक वाङ्गमय तथा गणितज्ञ वैदिक ऋषि कात्यायन द्वारा माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को शिक्षा एवं अस्त्र की शिक्षा दिया गया था । ऋषि कात्यायन द्वारा माता कात्यायनी की उपासना का स्थल 2 री शताब्दी में विकसित किया गया था।