हर्षोल्लास श्रद्धा भाव के साथ बोया गया हरेला

भुवन बिष्ट

रानीखेत। भारत भूमि के साथ साथ हमारी देवभूमि उत्तराखण्ड भी कृषि प्रधान है। हरेला का संबध हरियाली और फसलों से भी रहा है। हरेला शब्द का संबध हरियाली से भी है। हरेले के पर्व के लिए नौ दिन पहले घर के भीतर स्थित मंदिर तथा गांव के सामूहिक मंदिर में व लोकदेवता के मंदिर में पाँच प्रकार अथवा सात प्रकार के अन्न जिनमें गेहूं ,जौं, मक्का, सरसों, गहत आदि को रिगांल की टोकरी अथवा लकड़ी के चाक में बोया गया।

हरेला बोने के लिए एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया को भी अपनाया जाता है। हरेला बोने के लिए साफ टोकरी अथवा साफ चाक का उपयोग किया जाता है। इसके लिए पहले टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछायी जाती है मिट्टी भी स्वच्छ स्थान से लाकर उपयोग में लायी जाती है। फिर इसमें बीज डाले जाते हैं, इसके बाद फिर मिट्टी डाली जाती है और फिर से बीज डाले जाते हैं यही प्रक्रिया पांच बार अपनायी जाती है।

हरेले को सूर्य की रोशनी से बचाया जाता है इसे दस दिन तक प्रकाश रहित जगह पर बड़े श्रद्धाभाव से रखा जाता है, सूर्य की रोशनी न मिलने से इसका रंग वासंती, पीला हो जाता है जिसे शुभ माना जाता है। नौंवे दिन हरेले की स्थानीय फल के वृक्ष की टहनी से गुड़ाई की जायेगी और फिर दसवे दिन हरेले को काटा जायेगा।

सभी घरों में श्रद्धाभाव उत्साह के साथ हरेला बोया गया तथा इसे श्रावण मास के पहले गते को काटा जायेगा तथा उसी दिन हरेला का त्यौहार धूमधाम से मनाया जायेगा।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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भुवन बिष्ट

लेखक एवं कवि

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रानीखेत (उत्तराखंड)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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