बाल साहित्य लेखन के प्रति घटता रूझान

सुनील कुमार माथुर
बाल साहित्य लेखन के प्रति आज साहित्यकारों का रूझान दिनों दिन कम होता जा रहा है जो एक चिंताजनक बात हैं । चूंकि बाल साहित्य लेखन हेतु पहले लेखक को बालक बनना पडता है तभी वह बच्चों के अनुरूप बाल साहित्य का सर्जन कर सकता है। आज से तीन – चार दशक पहले पत्र – पत्रिकाओ के कार्यालय में बाल साहित्य हेतु अलग से व्यवस्था हुआ करती थी जिसके लिए अलग से संपादक मंडल हुआ करता था।
दैनिक समाचार पत्रों के रविवारीय परिशिष्ट में बाल कहानियां , चुटकुले , पहेलियां , सामान्य ज्ञान की प्रश्नोंतरी , अनमोल वचन , बूझो तो जाने , प्रश्न आपके जवाब हमारे, देश भक्ति से ओतप्रेत कविताएं, बाल मंच के सदस्यता हेतु कूपन प्रकाशित हुआ करते थे। इसके अलावा बिन्दु महिलाओं और चित्र बनाओं , भूल भुलैया , अधूरा चित्र पूरा करों , दो एक जैसे चित्र में से गलतियां ढूंढो , चित्र में रंग भरों , दिमागी कसरत , आदि – आदि प्रकाशित हुआ करते थे और वह भी पूरा का पूरा पृष्ठ । इसी के साथ रचनाकार को पारिश्रमिक व पत्र – पत्रिकाओ की लेखकीय प्रति निशुल्क डाक से भेजी जाती थी।
तीज-त्यौहार , पन्द्रह अगस्त व छब्बीस जनवरी पर विशेष अंक प्रकाशित होते थे जिसमें ढेर सारी पठनीय सामग्री होती थी और वे अंक संकलन योग्य हुआ करते थे लेकिन आज के विशेषांकों में पठनीय सामग्री कम व विज्ञापन अधिक होते है जो मात्र कहने के विशेषांक होते है। चूंकि आज पत्र – पत्रिकाएं व्यवसायिक हो गई हैं जिन्हें साहित्य से कोई लेना देना नहीं है । यही वजह है कि आज अनेक पत्र- पत्रिकाओ का या तो प्रकाशन बंद हो गया है या वे बंद होने के कगार पर हैं ।
ऐसी बात नहीं है कि आज बाल साहित्य प्रकाशित नहीं हो रहा है । वह आज भी प्रकाशित हो रहा है लेकिन नेट पर से उठाकर छाप रहे हैं । आज संपादक मंडल रचनाकार को न तो पारिश्रमिक दे रहे है और न ही प्रकाशित रचना की प्रति डाक से भेज रहे हैं अपितु मेल से व व्हाटसएप से सामग्री मंगाकर मुफ्त का चंदन घीस रहे हैं । वही इस वक्त छपाक के रोगियों के मजे हैं चूंकि संपादक मंडल स्वंय कह रहा है कि पुरानी पत्र पत्रिकाओ व नेट से मेटर उठाओं और तोड मरोड कर अपने नाम छपा लो । ऐसी सीख रचनाकार के लिए घातक सिध्द होगी । अतः ऐसी गलती कभी न करे । अपनी कलम खुद चलाएं व अपने विचारों को पिरोना सीखें।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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