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एसिड एटैक और लचर कानून व्यवस्था

इस कहानी मे आप तेजाब/ऐसिड अटैक से पीडितों के बालिकाओं/महिलाओं की असहनीय पीडा के बारे में और लचर कानून व्यवस्था के बारे जानकारी देने की कोशिश की गई है।

डा. आकाश कुमार
जिला बिजनौर | Mob : 7500130689

किसी को मौत के घाट उतार देने से उसकी पूरी जिंदगी खत्म की जा सकती है, उसका हाथ पांव काट देने से उसको अपंग किया जा सकता है लेकिन अगर किसी पर तेजाब डाल दिया जाए तो वह इंसान ना मर पाता है ना ही जी पाता है.

तेजाब से बदसूरत हुई जिंदगी को हमारा समाज सर उठाकर जीने की इजाजत नहीं देता. तेजाब से सिर्फ चेहरा नहीं इंसान की आत्मा भी जलने लगती है. तेजाब से बर्बाद हुई जिंदगियों की कहानी बहुत लंबी है. भारत में हर महीने आपको कई ऐसी खबरें सुनने को मिल सकती हैं जो महिलाओं पर तेजाब फेंकने से संबंधित होती हैं.

यह कहानियां भारतीय समाज में महिलाओं के उस दर्दनाक कहानी को बयां करती हैं जिस सूरत में महिलाओं के लिए अपने वजूद को बचा पाना नामुमकिन होता है. आइए अब नम्रता (बदला हुआ नाम) जैसी साहसिक लड़की की कहानी पर भी एक नजर डालें जो कभी तो नेशनल कैडेट कोर की वर्दी पहनकर देश की सेवा के सपने देखती थी.

इस कहानी मे आप तेजाब/ऐसिड अटैक से पीडितों के बालिकाओं/महिलाओं की असहनीय पीडा के बारे में और लचर कानून व्यवस्था के बारे जानकारी देने की कोशिश की गई है।

नम्रता (बदला हुआ नाम) अकेली ऐसी युवती नहीं हैं जिन्हें एसिड अटैक यानि तेजाबी हमले का शिकार होना पड़ा है. समाज में मनचले अकसर एकतरफा प्यार को खारिज करने के दुस्साहस की सजा महिलाओं के चेहरे या बदन पर तेजाब फेंक कर देते हैं. बेशक ऐसे तेजाबी हमलों से महिलाओं की मौत तो नहीं होती, लेकिन विद्रूपता और विकृति की वजह से उसकी तमाम जिंदगी मौत से कम नहीं होती.

तेजाबी हमले से होने वाले नुकसान तेजाब के हमलों के कुप्रभावों पर हुए अध्ययन यह दर्शाते हैं कि तेजाब पीड़ित इंसान की त्वचा के साथ-साथ भीतर भी असर छोड़ता है. आंखों पर तेजाब पड़ने से आंखों की रोशनी चली जाती है. हड्डियां वक्त से पहले कमजोर पड़ जाती हैं.

कई बार सर्जरी कराने से प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है. तेजाब से जले हुए इंसान का इलाज बहुत महंगा होता है और कई बार सर्जरी कराने के बाद भी पीडि़त का विकृत चेहरा या बदन पूरी तरह ठीक नहीं हो पाता है. फिर काम करता है हमारे समाज का लैंगिक पूर्वाग्रह.

इस मानसिकता के चलते परिजन पीडि़त का पूरा इलाज कराए बिना ही उसे अस्पताल से घर ले आते हैं. समाज में भी ऐसी हिंसा की शिकार लड़कियों के प्रति उतनी संवेदनशीलता नजर नहीं आती, जितनी हिंसा की अन्य अभिव्यक्ति के प्रति दिखाई देती है.

तेजाबी हमलों को रोकने के लिए कानून हालांकि अपने देश में तेजाब हमलों से पीडि़त महिलाओं के अधिकृत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, पर अखबारों में ऐसी खबरें अकसर पढ़ने को मिलती हैं. ऐसी घटनाओं के बढ़ने के पीछे एक अहम वजह स्त्री विरोधी हिंसा के इस क्रूर अपराध के खिलाफ अलग से किसी कानून का नहीं होना भी है.

एसिड या तेजाब से हमला होने की सूरत में भारत में कोई सशक्त कानून नहीं है. यूं तो ऐसे अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 329, 322 और 325 के तहत दर्ज होते हैं. लेकिन इसके अलावा पीडि़तों के इलाज, पुनर्वास और काउंसलिंग के लिए भी सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि ऐसे हादसों में पीडि़त को अपूरणीय क्षति उठानी पड़ती है. इन हादसों का मन-मस्तिष्क पर लंबे समय तक विपरीत प्रभाव बना रहता है.

सरकार ने अभी भी तेजाब पीड़ितों के लिए कोई खास कानून नहीं बनाया है जिसकी वजह से समाज में कई महिलाएं पीडित हैं. भारत के लचर कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो तेजाब से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिला सके. और जो कानून हैं वह बहुत ही लचर हैं जिससे अपराधी आराम से निकल जाते हैं.

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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