क्या करें, क्या न करें

सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
जीवन जीना कोई आसान काम नहीं है। अच्छा जीवन जीना भी एक कला है और जो उस कला को जान गया, समझो उसका जीवन धन्य हो गया। चूंकि जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, जिसके कारण इंसान परेशान रहता है। ऐसे समय उसके सामने क्या करें, क्या न करें कि स्थिति पैदा हो जाती है। आज स्थिति यह है कि लोग हर समय अपनी प्रशंसा सुनने को तत्पर रहते हैं। इसलिए उनके मुख पर उनकी प्रशंसा कर दीजिए। यह उस पर आपका बहुत बड़ा उपकार होगा, क्योंकि हमारी झूठी प्रशंसा से किसी को खुशी मिलती है तो इसमें हमारा क्या गया।
हमारा किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ कि हम उसकी चिंता करें। आज समाज में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो अपनी ही संतानों से दुखी हैं। जैसे एक शिक्षक बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर भारत का आदर्श नागरिक बनाता है, वहीं दूसरी ओर उसकी संतान पढ़ाई को एक बोझ समझकर येन-केन प्रकारेण दसवीं कक्षा पास कर इतिश्री कर रही है। कोई समाज की सेवा में अपने आप को समर्पित कर रखा है, वहीं दूसरी ओर उसकी संतान दिन-रात, आये दिन लड़ाई-झगड़े कर रही है।
जो समाज सुधारक है, तो घर में उसकी पत्नी और बच्चे उसकी एक नहीं सुनते। यह एक तरह की विडंबना है। अब करें तो क्या करें. आज समाज में हम जो अराजकता, हिंसा और अपराध जैसा माहौल देख रहे हैं, उसके मूल में टूटते संयुक्त परिवार और बच्चों में आदर्श संस्कारों का अभाव ही है। जो बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी और परिवार के बड़ों से आदर्श संस्कार मिलते थे, वे अब नहीं मिल पा रहे हैं।
आदर्श संस्कार बाजार में तो मिलते नहीं हैं, कि जब चाहे तब उस मात्रा में खरीद लें। लेकिन टूटते संयुक्त परिवारों के कारण दादा-दादी, नाना-नानी और परिवार के अन्य बड़ों से मिलने वाले आदर्श संस्कारों से बच्चे दूर हो रहे हैं और हो भी गए हैं। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि फिर से संयुक्त परिवारों की स्थापना की जाए और जो संयुक्त परिवार हैं, उन्हें टूटने से बचाया जाए।
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