सच्चा प्रेम

सच्चा प्रेम, लेखक का कहना है कि प्यार यानी साथ जीना ही नहीं, एकदूसरे को पाए बगैर पूरी जिंदगी किसी भी तरह की अपेक्षा के बिना दूर रह कर भी साथ रहने का अहसास। यह लेखनी वरिष्ठ लेखक वीरेन्द्र बहादुर सिंह की है, जो जेड-436ए, सेक्टर-12, नोएडा-201302 (उत्तर प्रदेश) के निवासी हैं।
प्यार यानी साथ जीना ही नहीं, एकदूसरे को पाए बगैर पूरी जिंदगी किसी भी तरह की अपेक्षा के बिना दूर रह कर भी साथ रहने का अहसास। प्यार यानी केवल पाना ही नहीं, हम जिसे चाहते हैं, उसे पाए बगैर पूरी जिंदगी अपार प्यार दे सकते हैं, बस केवल दोनों के बीच एक विश्वास और चाहत की अटूट डोर होनी चाहिए। प्रेम के क्षणों का स्मरण भी एक अनोखा आनंद देता है और यहां दुष्यंत ऐसे ही क्षणों में पूरी जिंदगी जी लेना चाहता है।
छह साल पहले की बात है। सोशल मीडिया ने पूरी रफ्तार से गति पकड़ ली थी। श्यामली ने भी फेसबुक पर अपना एकाउंट बना लिया था। उसी साल उसका ग्रेजुएशन पूरा हुआ था। ग्रेजुएशन पूरा होते ही उसे एक मल्टी नेशनल कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी। स्वभाव से चंचल, शांत और हमेशा दूसरे के बारे में पहले सोचने वाली श्यामली आफिस का काम पूरा कर के फेसबुक में लाॅगइन कर के बैठ जाती थी। श्यामली की प्रोफाइल में उसकी एक फ्रेंड प्रियंका थी। प्रियंका और श्यामली अक्सर फेसबुक पर कोई न कोई पोस्ट डालती रहती थीं। उसके बाद उन पर कमेंट्स और लाइक भी आतें, जिन्हें वे ध्यान से पढ़तीं भी और जरूरी होता तो जवाब भी देतीं। फेसबुक चलाने में उन्हें इतना मजा आ रहा था कि वे उसकी दीवानी बन गई थीं।
उस दिन आफिस से निकलते ही श्यामली ने एक पोस्ट शेयर की। देखते ही देखते उस पर लाइक और कमेंट्स भी आने लगे। प्रियंका और श्यामली आने वाले कमेंट्स पर बातें कर रही थीं कि तभी प्रियंका के एक काॅमन फ्रेंड ने भी उस पोस्ट पर कमेंट्स किया। उसका नाम था दुष्यंत। इसके बाद दुष्यंत, प्रियंका और श्यामली कमेंट्स बाॅक्स में ही बातें करने लगे थे। दो दिन बाद जब श्यामली ने फेसबुक खोला तो उसमें दुष्यंत की फ्रेंड रिक्वेस्ट आई थी। दो दिनों तक सोचनेविचारने के बाद श्यामली ने उसकी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली। यहीं से शुरू हुई उस प्यार की शुरुआत जो कभी श्यामली को मिल नहीं सका।
दुष्यंत ने कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की पढ़ाई अभी जल्दी ही पूरी की थी। स्वभाव से शांत और भावनात्मक दुष्यंत हमेशा सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहता था। सोशल मीडिया पर ही श्यामली से उसकी मुलाकात हुई थी। श्यामली और दुष्यंत अब फेसबुक फ्रेंड बन गए थे। हायहैलो से शुरू हुआ यह संबंध अब पूरे जोश से आगे बढ़ रहा था।
मार्निंग शिफ्ट होने की वजह दुष्यंत सुबह जल्दी 5 बजे ही उठ जाता था। और उठने के साथ ही वह श्यामली को गुडमार्निंग का मैसेज भेजता था। यह उसका नियम सा बन गया था। दुष्यंत की सुबह श्यामली को मैसेज भेजने के साथ ही होती थी। इसके बाद श्यामली के मेसेज के इंतजार में उसका आधा दिन बीत जाता। उसे श्यामली अच्छी लगने लगी थी। किसी न किसी बहाने वह उससे बात करने का मौका खोजता रहता था। वह यही सोचता रहता कि श्यामली कब ऑनलाइन हो और वह उसे मैसेज करे।
दुष्यंत एक संस्कारी घर का लड़का था। इसलिए श्यामली को उस पर विश्वास करने में ज्यादा समय नहीं लगा। विश्वास होने पर श्यामली ने दुष्यंत को अपना फोन नंबर दे दिया था। वेसे तो श्यामली आज के आधुनिक जमाने की आधुनिक लड़की थी। फिर भी वह खुद को इस आधुनिक जमाने से दूर रखती थी। क्योंकि उसे पता था खि सोशल मीडिया पर दुनिया भर के गलत काम होते है। दुष्यंत को उसने एक महीने तक परखा था, उसके बाद उसने उसे दोस्त के रूप में स्वीकार किया था। बाकी तो उसे कोई लड़का पसंद ही नहीं आता था। नंबर मिलने के बाद ह्वाटसएप पर गुडमार्निंग के आगे भी बात बढ़ गई थी। जबकि श्यामली अभी भी उसे अच्छा दोस्त ही मान रही थी। जबकि दुष्यंत तो हमेशा श्यामली के ही सपनों में दिनरात खोया रहता था। इसके बावजूद दुष्यंत कभी श्यामली सेअपने प्यार का इजहार नहीं कर सका था।
दूसरी ओर दुष्यंत के स्वभाव से प्रभावित हो कर श्यामली के मन में भी उसके लिए प्रेम बीज अंकुरित होने लगा था। पर कोई संस्कारी लड़की कहां जल्दी अपने प्यार का इजहार करती है। फिर श्यामली तो वैसे भी अपने मन की बात जल्दी किसी से कहने वाली नहीं थी। उसी तरह दुष्यंत भी हमेशा सोचता रहता कि वह अपने मन की बात कैसे श्यामली से कहे। प्यार की बात कहने पर कहीं श्यामली नाराज न हो जाए। पता नहीं वह उसके बारे में क्या सोचती होगी? क्या वह भी उसी की तरह उसे प्यार करती है? अगर वह अपने मन की बात उससे कहेगा तो वह बुरा तो नहीं मानेगी? यही सब सोचतेसोचते दिन बीत रहे थे। दुष्यंत हमेशा इसी सोच में डूबा रहता कि आखिर वह करे तो क्या करे? वह किस तरह श्यामली से अपने मन की बात कहे?
आखिर एक दिन उसने हिम्मत कर के श्यामली से मन की बात कह ही दी। श्यामली ने कहा, “अरे … अरे अभी रुको, अभी तो दूसरा अध्याय बाकी ही है।” दुष्यंत श्यामली से अपने मन की पूरी बात यानी प्रेम का इजहार तो नहीं कर पाया, पर इतना तो जता ही दिया कि वह उसे पसंद करता है। उसने यह भी कह दिया था, “मैं तुम्हें तुम्हारे घर देखने आना चाहता हूं। तुम अपने मम्मी-पापा से कह देना। मैं अपने मम्मी-पापा के साथ आऊंगा।” इतना कह कर दुष्यंत सपनों की दुनिया में खो गया।
आखिर वह घड़ी आ ही गई, जब दुष्यंत जा कर श्यामली से आमनेसामने मिला। दोनों परिवारों मेंआपस में बातचीत हुई। श्यामली को भी दुष्यंत अच्छा लगा। पर बाॅडीगार्ड जैसा शरीर होने की वजह से श्यामली के पापा को दुष्यंत पसंद नहीं आया। श्यामली एकदम स्लिम और ट्रिम लड़की थी। दूसरी ओर 90 किलोग्राम वजन वाले 25 साल के युवक दुष्यंत को श्यामली के पापा ने रिजेक्ट कर दिया। इस बात से दुष्यंत को लगा कि वह श्यामली को पसंद नहीं है, इसलिए श्यामली ने उसके साथ शादी से मना कर दिया है।
समय समुद्र की लहरों की तरह पूरे जोश से बह रहा था। अब श्यामली और दुष्यंत के बीच बातें कम होने लगी थीं। कुछ दिनों में श्यामली की भी शादी हो गई और दुष्यंत को भी जीवनसाथी मिल गई थी। दोनों ही अपनीअपनी जिंदगी में बहुत खुश थे। फिर भी जब कभी दुष्यंत एकांत में होता, उसे श्यामली की याद आ ही जाती। उसे इस बात का हमेशा अफसोस रहता कि वह श्यामली से अपने दिल की बात खुल कर कह नहीं सका। किसी तरह अपने मन को मना कर उसका पहला प्रेम पूरा नहीं हुआ इस दर्द को दिल में छुपा कर अतीत से वर्तमान में आ जाता।
पूरे तीन साल बाद अचानक एक माॅल में दोनों की मुलाकात हो गई। दोनों के बीच हायहैलो हुई। दुष्यंत ने पूछा, “कैसी हो श्यामली?”
दोनों ने एकदूसरे के बारे में पूछा। हालचाल पूछने के बाद दोनों के बीच नार्मल बातें होने लगीं। बातचीत करते हुए दोनों अतीत में खो गए। उसी बातचीत में दुष्यंत ने हिम्मत कर के कह दिया कि वह उससे बहुत प्यार करता था, अभी भी वह उससे उतना ही प्रेम करता है और हमेशा करता रहेगा।
यह सुन कर श्यामली के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। यह बात तो वह तीन साल पहले सुनना चाहती थी। पर उस समय यह बात दुष्यंत नहीं कह सका था। उस समय श्यामली भी इस बात को नहीं समझ सकी थी। दोनों का यह अनकहा प्रेम तीन साल से हृदय में जीवंत रहा। पर दोनों ही अपने इस प्रेम को एकदूसरे से कह नहीं सके थे।
आज पूरे तीन साल बाद जब दोनों ने अकेले में बात की तो दुष्यंत ने अपने प्रेम का इकरार कर लिया। वह बहुत अच्छा दिन था। दोनों के ही मन में एकदूसरे के लिए अनहद प्रेम था।म पर समय उनके हाथ से निकल गया था। अब दोनों की ही शादी हो गई थी और दोनों ही उम्र से अधिक समझदार हो चुके थे। दोनों ही अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करने के बारे में सोच भी नही सकते थे। पर दोनों ने ही एकदूसरे को वचन दिया कि वे जीवन के अंत तक एकदूसरे के संपर्क में बने रहेंगे।
दुष्यंत और श्यामली आज भी एकदूसरे से बातें करते हैं, प्रेम व्यक्त करते हैं, एकदूसरे की भावना को समझते हैं, पर दोनों ही अपनेंअपने जीवनसाथी के प्रति पूरी तरह से वफादार बने हुए हैं। वे जीवनसाथी नहीं बन सके तो क्या हुआ, दोनों ही एकदूसरे से मन से जुड़ कर जीवन का आनंद ले रहे हैं। तो क्या अपने पहले प्रेम से दिल से जुड़े रहना अपराध है? क्या शादी के बाद अपने जीवनसाथी के प्रति वफादारी दिखाते हुए मनपसंद आदमी से बात करना अपराध है?
अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहते हुए दो प्रेमी जब अपने अधूरे रह गए प्रेम को एकदूसरे से इकरार करते हैं तो लोग इस संबंध को खराब नजरों से देखते हैं। पर दुष्यंत और श्यामली का कहना है कि अगर एकदूसरे से बात करने से दुख कम होता हो और खुशी मिलती हो तो इसमें गलत क्या है। प्रेम तो प्रेम होता है। शादी के पहले करो या बाद में, उसमें पवित्रता, विश्वास और बिना स्वार्थ का लगाव होना चाहिए, जो मात्र हृदय के भाव को जानसमझ सके।
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