मानवता की सेवा सबसे बडी सेवा : डाॅ आरूषि
मानवता की सेवा सबसे बडी सेवा : डाॅ आरूषि, हम बच्चों को भले ही कितना बडा क्यों न बना दे , पर जब तक हम उनके मन में राष्ट्र, समाज, संस्कृति और अपने देश की महान विभूतियों के संस्कार नहीं देते है तब तक व्यक्तित्व का समग्र विकास संभव नहीं हो सकता। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
जिंदगी में हर क्षेत्र में प्रयास करना चाहिए। प्रयास किये बगैर आपकों यह पता ही नहीं चलेगा कि आप उक्त कार्य कर सकते हैं या नहीं। आपके मित्र भले ही कम हो कोई बात नहीं, लेकिन वे हर वक्त आपके साथ मजबूती से खड़े होने वाले होने चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि आपकों हर वक्त कुछ न कुछ नया सीखते रहना चाहिए।
डाक्टर आरूषि बताती है कि काम वह करों जिसमें मन को अपार खुशियां मिलें, यही तनाव मुक्त रहने का मूल मंत्र है। बुरा दौर हर किसी के जीवन में आता हैं, लेकिन जीत उसी की होती है जो आशावादी होते हैं। वे बताती है कि “स्वयं को जानने का सर्वश्रेष्ठ तरीका, अपने आप को औरों की सेवा में डूबो देना है डाक्टर आरूषि की दसवीं तक कि शिक्षा पोकरण के केंद्रीय विद्यालय से हुई।
इनके पिता अनिल कुमार माथुर पी एच ई डी वाटरवर्क्स पोकरण में सहायक अभियंता पद से रिटायर हुए व माता अर्चना माथुर ने एम एस सी केमिस्ट्री की पढ़ाई की व गृहणी है। डाक्टर आरूषि का कहना है कि बचपन से ही माता पिता ने पढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया। इस वजह से हर कक्षा में अव्वल नंबर आते रहे।
माता से प्रेरित हो के डा आरुषि ने ग्यारवी कक्षा में बायोलॉजी सब्जेक्ट का चयन किया और डॉक्टर बनने का सपना देखने लगी। उस समय वे जोधपुर शिफ्ट हो गए। शुरुआत में उन्हें विषय को समझने में काफी परेशानी हुई और परीक्षा में नंबर भी कम आते थे परंतु उन्होंने हार ना मानने की ठान ली थी। फिर एक साल घर पर पढ़ाई करने के बाद उनका गीतांजली मेडिकल कॉलेज उदयपुर में एमबीबीएस के लिए दाखिला हो गया।
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पढ़ने में एक मज़ा सा आने लगा। साढ़े पांच साल कैसे पूरे हुए पता ही नहीं चला। अब यह सवाल था कि आगे क्या करना है। दो साल अलग अलग अस्पताल में काम करने के बाद सर्जन बनने का निर्णय लिया। फिर नीट पीजी परीक्षा के ज़रिए डीएनबी जनरल सर्जरी नारायणा अस्पताल जयपुर में चयन हुआ।
रेजीडेंसी के इन तीन साल में टीचर्स ने कई मूल मंत्र सिखाए व हमेशा नई तकनीक सीखने के लिए उत्साहित किया। उनसे प्रभावित होकर डा आरुषि भविष्य में गैस्ट्रोसर्जन बनना चाहती हैं व आने वाले समय में बड़ी बीमारियों का रोबोटिक/मिनिमल इनवेसिव सर्जरी तकनीक द्वारा इलाज करना चाहती है जिससे ऑपरेशन के पश्चात दर्द कम होगा, जल्दी खाना पीना शुरू होगा, अस्पताल में कम समय के लिए रुकना व इन्फेक्शन कम होने की संभावना रहेगी।
डाक्टर आरूषि को पढ़ाई के अलावा चित्रकारी, डांस, विभिन्न तीज त्यौहारों पर घर के आंगन में मांडने मांडना, फोटोग्राफी, व ट्रैवलिंग का भी शौक है। आरुषि की छोटी बहन अंशुल माथुर डीआरडीओ जोधपुर में जूनियर रिसर्च फैलो के पद पर कार्यरत है व भाई गूगल कंपनी में जूनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
डा माथुर का कहना है कि हम मस्तिष्क में कितनी भी शिक्षा भर ले लेकिन यदि हृदय परिवर्तन नहीं करते है तो उस शिक्षा का कोई महत्व नहीं होता है। हम बच्चों को भले ही कितना बडा क्यों न बना दे , पर जब तक हम उनके मन में राष्ट्र, समाज, संस्कृति और अपने देश की महान विभूतियों के संस्कार नहीं देते है तब तक व्यक्तित्व का समग्र विकास संभव नहीं हो सकता।
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बड़ों का मान सम्मान से ही जीवन में आदर्श संस्कार प्राप्त होते हैं और ये आदर्श संस्कार बाजार में नहीं मिलते हैं। इन्हें तो बडों व अनुभवी लोगों की क्षत्र छाया में ही पाया जा सकता हैं।
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