विश्व गुरु के पथ पर पाँव, क्यों पिछड़े भारत के गाँव

गौरव हिन्दुस्तानी
बरेली, उत्तर प्रदेश

विश्व में फैलती आधुनिकता की डोरी का छोर भारत की मजबूत मुट्ठी में आ चुका है | भारत ने इस आधुनिकता को इतने कम समय में जितनी मजबूती से पकड़ा है यह दृश्य देखकर विश्व के आधुनिक देशों की आँखें खुली की खुली रह गईं हैं और ऐसा हो भी क्यों न आखिर यह वही वर्षों पुराना मुगलों द्वारा लूटा हुआ, अंग्रेजों के अत्याचारों से पीड़ित तथा कृषि प्रधान देश है जहाँ आज की पीढ़ी के पूर्वज खेतों में दिनभर धूल-मिट्टी में सने रहते थे, मजदूरी करके जीविका चलाते थे|

आज उसी भारत के नौजवानों की उँगलियाँ जब कंप्यूटर के कीबोर्ड पर पड़ती है तो कई देशों के दिमाग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं| विज्ञान का क्षेत्र हो, तकनीक का क्षेत्र हो, चिकित्सा का क्षेत्र हो या यूँ कहें कि भारत ने विकास के प्रत्येक क्षेत्र में अपने पाँव अंगद की भाँति जमा दिए हैं तो अतिशयोक्ति न होगी | जो विकसित देश (अमेरिका इंग्लैंड ब्रिटेन आदि) कभी भारत तथा भारत के लोगों की वर्ण और वाणी के आधार पर तंज कसा करते थे ,उनकी अवहेलना किया करते थे आज वे समस्त देश भारत की अगवानी के लिए पुष्प मालाएँ लिए खड़े रहते हैं तथा भारत में व्यापार के लिए अवसर खोजते रहते हैं |

भारतीयों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है | हम आज से हजारों वर्ष पूर्व भी इतने ही समृद्ध थे, इतने ही सम्पन्न थे, इतने ही तकनीकी विद्वान थे और इतने ही कलाओं में निपुण थे | यदि समृद्धता, विद्वता के प्रमाण चाहिए हों तो वेदों के पृष्ठों को उलट कर देख लीजिएगा | कलाओं की निपुणता के साक्ष्य चाहिए हों तो भारत के दक्षिण में विशालकाय मंदिरों को अवश्य देख लेना चाहिए जिनमें सूक्ष्म से सूक्ष्म आकृतियाँ स्पष्ट, सुन्दर एवं समान है | अमेरिका, रूस आदि जैसे देश शून्य (अन्तरिक्ष) में अपने विमान उड़ाकर तथा सेटेलाइट स्थापित करके इतरा रहे हैं परन्तु यदि भारत विश्व को शून्य और दशमलव न देता तो ये देश आज केवल शून्य ही होते |

आज भारत सुई से लेकर हवाई जहाज तक स्वयं ही निर्माण करता है यह बात जहाँ भारतीयों को गौरवान्वित करती है वहीं विदेशियों के लिए खटकती अवश्य होगी | स्पष्ट है कि सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत विश्व गुरु बनने से एक या फिर केवल आधा कदम दूर है | आगामी कुछ ही वर्षों में भारत की आन-बान-शान प्यारा तिरंगा भारत की विजयगाथा संपूर्ण ब्रह्मांड को लहरा लहरा कर सुना रहा होगा और यह दृश्य देखकर हर हिन्दुस्तानी की आँखें खुशी से झिलमिला रहीं होंगी | लेकिन खुशी से झिलमिलाती यही आँखें विकासशील भारत के अविकसित गाँवों को देखती हैं तब यही हर्ष करुणा और शोक में परिवर्तित हो जाता है|

निचले स्तर के कर्मचारी कार्य करने में बेईमानी कर जाते हैं परिणाम स्वरूप पिछड़े रह जाते हैं…

कुछ गाँवों के बच्चे नंगे पाँव कच्ची सड़कों से होकर मीलों दूर पैदल चलकर स्कूल जा रहे हैं कारण उनके गाँवों में व्यवस्थित स्कूल नहीं हैं | गाँवों के बच्चे अपने भविष्य के सुनहरे सपने देख रहे हैं लेकिन रात का अंधेरा उन्हें हतोत्साहित होने पर मजबूर कर रहा है कारण गाँवों में वर्षों से बिजली के खंभे तो खड़े हैं परन्तु बिजली नहीं है | न जाने कितने ग्रामीण लोग (बालक से लेकर वृद्ध तक) दूर शहरी अस्पतालों के चक्कर काटने में महीने के दो-चार दिन तो व्यतीत कर ही देते हैं|

इसका कारण यह है कि गाँवों में कोई अस्पताल नहीं है यदि किसी गाँव में कोई स्वास्थ्य केंद्र है भी तो वहाँ नर्स डॉक्टर या अन्य कर्मचारी नहीं हैं| आन- जाने वाली सरकारी देश के बड़े-बड़े कार्य बड़े चाव से करती हैं एवं कर रही हैं निसंदेह उनकी दृष्टि इन सूक्ष्म कार्यों पर भी पढ़ती होगी परन्तु निचले स्तर के कर्मचारी कार्य करने में बेईमानी कर जाते हैं परिणाम स्वरूप पिछड़े रह जाते हैं विकसित भारत के कुछ गाँव | “यह सत्य है कि भारत विकसित हो चुका है परन्तु भारत के कुछ गाँवों की दशा आज भी दयनीय है जिससे हम मुँह नहीं मोड़ सकते |

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