व्यंग्य : हे लक्ष्मी माता, कैसे दीपोत्सव मनाऊं…?

व्यंग्य : हे लक्ष्मी माता !! कैसे दीपोत्सव मनाऊं? इंसान को रिचार्ज कर एक फिर से सजग, सतर्क व जागरूक व चेतनावान बनाइयें। तभी दीपोत्सव का महत्व है अन्यथा इस दीपोत्सव का अर्थ लकीर का फकीर बना रहना ही कहा जायेगा । क्षमा कीजिए लक्ष्मी माता !! इस कलमकार की कलम से सच्चाई उजागर हो गई है उस पर गंभीरता से ध्यान देकर राहत दिलायें। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
हे लक्ष्मी माता !! दीपावली का यह पावन दिवस कैसे हर्षोल्लास एवं उमंग के साथ मनायें। देश भर में मंहगाई का तांडव मचा हुआ है। व्यापारियों ने मनमाने तरीके से दाम बढा रखे हैं व सरकारों ने नाना प्रकार के टैक्स लगा कर आम आदमी को नीम्बू की तरह निचोड़ कर रख दिया है। हालात यह हो गये है कि दो वक्त की रोटी का जुगाड करना भी भारी हो गया हैं।
सब्जियां, खाधान्न, रसोई गैस, कपडे लते, सिलाई, मिष्ठान, नमकीन, पकवान सभी तो मंहगाई की भेंट चढ चुके हैं। अब आप ही बताइए कि लक्ष्मी जी वाला चांदी का सिक्का कैसे खरीदूं। पूजा कि थाली में पकवान, फल, मिष्ठान, काजू की कतली, दाल की चक्की कैसे सजाऊं। कैसे आपकी थाली में नोटों की गड्डियां रखूं। हे लक्ष्मी माता, आप से कुछ भी छिपा हुआ नहीं है।
दीपावली के दीपक कैसे जलाऊं। तेल के भाव तो आसमान छू रहे हैं। जनता-जनार्दन का तेल तो पहले ही निकल चुका है। हे लक्ष्मी माता ! मुझ से जो भी बन पडा है, वैसा ही स्वीकार कर लीजिए। मंहगाई पर काबू पाकर सभी चीजों की कीमतें कम करा दीजिए। कालाबाजारियों, मिलावटखोरों, भ्रष्टाचारियों एवं बिचौलियों का सत्यानाश कर दीजिए। शिक्षा प्रणाली, स्वास्थ्य सेवाएं, पेयजल, विधुत सेवा, टूटी सडकों, नालों को ठीक कर दीजिए।
आम जनता को मूलभूत सुविधाएं सुलभ करा दीजिए। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में आम आदमी की सोचने-समझने व मंहगाई, भ्रष्टाचार, बढती गुंडागर्दी व बढती स्कूलों की फीस के विरूद्ध आवाज बुलंद करने की शक्ति न जाने कहां गुम हो गई है। इंसान बेसुध हो गया है। जहां उसे आवाज उठानी चाहिए वहां वह गूंगा हो गया है और जहां चुप रहना चाहिए वहां बिना वजह बोले जा रहा हैं। हे लक्ष्मी माता !!
इंसान को रिचार्ज कर एक फिर से सजग, सतर्क व जागरूक व चेतनावान बनाइयें। तभी दीपोत्सव का महत्व है अन्यथा इस दीपोत्सव का अर्थ लकीर का फकीर बना रहना ही कहा जायेगा । क्षमा कीजिए लक्ष्मी माता !! इस कलमकार की कलम से सच्चाई उजागर हो गई है उस पर गंभीरता से ध्यान देकर राहत दिलायें। तभी घर घर दीपोत्सव का महत्व है अन्यथा दीपोत्सव के नाम पर फिजूल की खर्ची है।