संगत

सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
व्यक्ति को हमेशा अच्छे लोगों की संगत करनी चाहिए। चूंकि संगत ही हमारी पहचान बनती हैं। अगर आप शिक्षित लोगों, धर्म प्रेमियों, श्रेष्ठ साधु संतों का संग करते हैं, धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों का संग करते हैं तो आपकी पहचान अच्छे लोगों के रूप में की जाती हैं लेकिन आपकी संगत शराबी, जुआरी, चोर उचक्कों के संग होती है तो लोग आपकों बुरा ही कहेंगे। इसलिए जीवन में संगत का बड़ा ही महत्व है। सूई अगर अकेली होती हैं तो हर कोई भयभीत रहता हैं कि कहीं यह चुभ न जाये। भले ही वह किसी के हाथ में ही क्यों न हो। लेकिन जब यह धागे के साथ होती हैं तो कपड़े को जोड़ने का काम करती हैं। बस यह संगत का ही असर हैं। इसलिए जीवन में सदैव अच्छे लोगों की संगत करें।
अंदर-बाहर झांकना : समाज में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति वहीं कहलाता है जो अपने भीतर झांकता हैं और भीतर की गंदगी (बुराइयों को) को बाहर निकाल फेंकता हैं। ऐसे लोगों को परमात्मा सदैव प्यार करते हैं और उन पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। लेकिन जो व्यक्ति हर समय बाहर झांकता रहता हैं अर्थात् दूसरों में खामियां खोजते रहते हैं और उन्हें फिर बढ़ा-चढ़ाकर दूसरों को सुनाते हैं ऐसे लोग कमजोर प्रवृत्ति के होते हैं और सदैव दूसरों की प्रगति व उन्नति को देखकर मन ही मन जलते रहते हैं व दुःखी रहते हैं। परमात्मा कभी भी किसी को दुःख नहीं देते हैं। दुःख तो हम स्वयं पालते हैं और फिर रोते फिरते हैं कि परमात्मा हम से नाराज़ हैं। अरे बंधु! दूसरों के घरों में ताक-झांक करना छोड़िए और अपने भीतर झांकना सीखें। जिस दिन तुमने भीतर झांकना सीख लिया तो समझो उसी दिन से तुम्हारे दुखों का अंत हो जाएगा। बस अपनी सोच को सकारात्मक रखिए।
कुछ भी असंभव नहीं : इस नश्वर संसार में कुछ भी असंभव नहीं है। जब तक हम किसी कार्य को करना आरंभ नहीं करते हैं तब वह हमें कठिन लगता है लेकिन जैसे ही हमने उसे पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ आरंभ करते हैं तो वह स्वतः ही सरल होता जाता हैं और हम मार्ग में आने वाली कठिनाईयों को भी आसानी से दूर करते चले जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कार्य की शुरुआत सही ढंग से आरंभ करने पर ही पता चलता है कि वास्तव में कौन सा कार्य सरल हैं और कौन सा कठिन। इसलिए बिना सोचे समझे किसी बात का तत्काल निर्णय न लें। तनिक विचार अवश्य ही करें
ताकि बाद में पछताना न पड़े।
Nice article