किसान पर सियासत या सियासत में किसान…?

ओम प्रकाश उनियाल

जब से किसान आंदोलन की शुरुआत हुई है तब से हरेक के मन में यह सवाल उठता आया है कि किसान पर राजनीति हो रही है या किसान राजनीति कर रहे हैं? आंदोलनरत किसान जिनके नेतृत्व में आंदोलन छेड़े हुए हैं उनका कहना है कि किसान को राजनीति से क्या लेना-देना। वे तो कृषि के काले कानून का शांतिपूर्ण ढंग से विरोध करते आए हैं। उनकी तीन मांगे सरकार पूरी कर दे तो आंदोलन खत्म। आंदोलन को किसी भी दल या नेता द्वारा समर्थन दिए जाने का मतलब यह नहीं कि किसान उस दल का ही है।

किसानों की बात जायज है। लेकिन आंदोलन के चलते ही जो घटनाएं घटी और किसान संगठनों के नेताओं द्वारा ही एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से आंदोलन बीच में हल्का भी पड़ा। इतने लंबे समय से किसान आंदोलन जारी रखे हुए हैं, उनके साथ जो भीड़ जुटती रही है या जुटती जा रही है यदि सारे किसान ही हैं तो फिर खेती कौन कर रहा है? क्योंकि गरीब या छोटे किसान हर समय आंदोलनरत तो नहीं रह सकते। यह सवाल जरा शंका पैदा करने वाला तो है ही।

दूसरी तरफ आंदोलन को समर्थन देने वाले दल या नेता तो अपनी राजनीति चमकाने और किसानों का वोट बैंक मजबूत बनाने का अवसर की तलाश में हैं। 2021 में उत्तरप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जीता-जागता उदाहरण तीन अक्टूबर को घटित उत्तरप्रदेश का लखीमपुर कांड है? हालांकि, जांच के बाद ही पता चलेगा कि कौन सियासी खेला खेलता आ रहा है?

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